दुर्जय पासवान, गुमला
कारगिल युद्ध में हमारे भारत देश के 500 से अधिक जवान शहीद हुए थे. फिर भी हमारे वीर जवानों के अदम्य साहस के कारण भारत की जीत हुई थी. इस युद्ध को ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है. कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच 1999 में जुलाई माह में कश्मीर के करगिल जिले में हुई थी. इसे सशस्त्र संघर्ष भी कहा जाता है. इस युद्ध में हमारे झारखंड राज्य के गुमला जिले के भी कई वीर सपूत शामिल थे. जिसमें गुमला जिले के तीन बेटे दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हुए थे.
इनमें शहीद जॉन अगस्तुस एक्का, शहीद बिरसा उरांव व शहीद विश्राम मुंडा के नाम शामिल हैं. इन तीनों सपूतों का नाम आज भी गुमला जिले में बड़े सम्मान से लिया जाता है. हालांकि आज भी सरकारी महकमें में ये शहीद गुमनाम हैं. लेकिन जब भी कारगिल दिवस गुमला में मनाया जाता है. इन शहीदों की जीवनी लोगों को सेना के अधिकारी, जवान व रिटायर सैनिकों द्वारा बताया जाता है.
भूतपूर्व सैनिक कल्याण संगठन गुमला के अध्यक्ष ओझा उरांव ने कहा कि गुमला से तीन बेटे 1999 के कारगिल युद्ध में शहीद हुए थे. हम उन्हें नमन करते हैं. इन तीनों बेटों को कभी भुलाया नहीं जा सकता है.
शहीद बिरसा उरांव सिसई के रहने वाले हैं
गुमला के सिसई प्रखंड के जतराटोली शहिजाना के बेर्री गांव निवासी बिरसा उरांव कारगिल में शहीद हुए थे. शहीद बिरसा उरांव ऑपरेशन विजय कारगिल में दो सितंबर 1999 में शहीद हो गये थे. शहीद की पत्नी मिला उरांव ने बताया कि बिरसा उरांव हवलदार के पद पर बिहार रेजिमेंट में थे. जवान से उन्हें लांस नायक व हलवदार पद पर प्रोन्नति हुई थी. उनकी प्रारंभिक शिक्षा राजकीय मध्य विद्यालय बेर्री व मैट्रिक की परीक्षा नदिया हिंदू उवि लोहरदगा से 1983 में की थी.
उनके पिता स्व. बुदू उरांव व माता बिरनी देवी थीं. शहीद के दो संतान हैं. वर्तमान में उनकी बड़ी बेटी पूजा विभूति उरांव वर्ष 2019 में दारोगा के पद पर बहाल हुई है. वे वर्तमान में गढ़वा में पोस्टेड हैं. वहीं, उनका बेटा चंदन उरांव वेस्कॉर्ट पब्लिक स्कूल रांची में शिक्षा ग्रहण कर रहा है. शहीद को छह पुरस्कार मिला है. जिसमें सामान्य सेवा मेडल नागालैंड, नाईन इयर लौंग सर्विस मेडल भारत सरकार, सैनिक सुरक्षा मेडल, ओभरसीज मेडल संयुक्त राष्ट्र संघ, प्रथम बिहार रेजिमेंट की 50वीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता मेडल व विशिष्ट सेवा मेडल मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा किया गया.
सेना के विभिन्न ऑपरेशनों में उन्होंने अपनी वीरता का दमखम दिखाया था. जिसमें ऑपरेशन ओचार्ड नागालैंड, ऑपरेशन रक्षक पंजाब, यूएनओ सोमालिया टू दक्षिण अफ्रीका, ऑपरेशन राइनो असम, ऑपरेशन विजय कारगिल है. पत्नी ने बताया कि इनके पति के शहीद होने के बाद सेना की ओर से पेंशन मिलता है. लेकिन न ही घर मिला है और न ही जमीन मिली है. अनुकंपा में भी किसी को नौकरी नहीं मिली है. अनुकंपा में नौकरी की मांग की गयी थी. लेकिन कोई पहल नहीं की गयी.