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पेंशन के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे बुजुर्गों ने सुनायी दर्द भरी कहानी…

।। दुर्जय पासवान ।। गुमला : सड़क के किनारे एक शख्स मृत पड़ा था !. तड़प-तड़प के वह भूख से मर गया. शव कपड़ा से लपेटे हुए था. कपड़ा हटाकर देखा तो, पेट पर लिखा था, हरा-भरा झारखंड, कितना सुंदर मेरा झारखंड, जोहार झारखंड-जोहार झारखंड… कविता की यह पंक्ती गुमला के धोबी मुहल्ला निवासी 65 […]

।। दुर्जय पासवान ।।

गुमला : सड़क के किनारे एक शख्स मृत पड़ा था !. तड़प-तड़प के वह भूख से मर गया. शव कपड़ा से लपेटे हुए था. कपड़ा हटाकर देखा तो, पेट पर लिखा था, हरा-भरा झारखंड, कितना सुंदर मेरा झारखंड, जोहार झारखंड-जोहार झारखंड… कविता की यह पंक्ती गुमला के धोबी मुहल्ला निवासी 65 वर्षीय मोहम्मद शमीम शाह ने लिखी है.

कविता की इन पंक्तियों में मो शाह और उनके साथी 65 वर्षीय विलियम सोरेन (पालकोट रोड निवासी) के संघर्ष की कहानी बयां करती है. मो शाह और श्री सोरेन पेंशन के लिए दफ्तर और सरकारी बाबुओं के चक्‍कर काट-काट कर थक गये हैं, लेकिन इनकी बुढ़ापे की लाठी कोई बनने को तैयार नहीं है. मो शाह व श्री सोरेन बुधवार को लड़खड़ाते पैरों से सीढ़ी चढ़कर प्रभात खबर के कार्यालय पहुंचे.

दोनों के चेहरे पर मायूसी थी. शरीर थके हुए थे, लेकिन आज भी संघर्ष के रास्ते पर चलने को आतुर नजर आये. दोनों वृद्धों ने जो जानकारी दी. उसके अनुसार राज्य के 791 कर्मी पेंशन, पांचवां व छठा वेतनमान के लिए संघर्षरत हैं. दोनों वृद्धों की बात उनकी जुबानी सुनें.

* पेंशन शुरू हो जाये, तो बुढ़ापे का सहारा मिल जायेगा : विलियम

65 वर्षीय विलियम सोरेन गुमला शहर के पालकोट रोड निवासी हैं. दो बेटे हैं. एक काम करता है. एक बेरोजगार है. विलियम ने कहा : गुमला बस डिपो (जो अब बंद हो गया) में बिहार राज्य पथ परिवहन विभाग में लिपिक के पद पर काम करता था. 24 अगस्त 2011 को बिहार राज्य पथ परिवहन विभाग बंद हो गया. इसके बाद गुमला बस डिपो में जीतने भी कर्मचारी काम करते थे. उनका समायोजन विभिन्न सरकारी विभागों में कर दिया.

मैं 2008 तक गुमला बस डिपो में ही लिपिक के पद पर काम करता रहा. इसके बाद 2008 में ही रांची के जिला परिवहन पदाधिकारी के कार्यालय में मेरा ट्रांसफर कर दिया गया. काम के प्रति मैं शुरू से ईमानदार रहा हूं. पूरी लगन से काम किया.वर्ष 2013 में मैं रिटायर किया. इसके बाद से घर पर हूं, लेकिन दुख इस बात की है. रिटायरमेंट के बाद अभी तक पेंशन शुरू नहीं हुई है. न ही पांचवां व छठा वेतनमान का लाभ मिला है. पेंशन शुरू नहीं होने से इस बुढ़ापे में परेशानी हो रही है. खुद की जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही है.

* जीते-जी पेंशन मिल जाये तो तकलीफ नहीं होगी : शमीम

65 वर्षीय मोहम्मद शमीम शाह गुमला शहर के धोबी मुहल्ला में रहते हैं. इस उम्र में भी अच्छी शायरी व कविता लिख लेते हैं. उन्होंने कहा कि बिहार राज्य पथ परिवहन विभाग बंद हुआ तो मेरा समायोजन ट्रैफिक क्लर्क के रूप में किया गया.2011 में ही मुझे गुमला बस डिपो से डाल्टेनगंज जिला के चैनपुर प्रखंड भेज दिया गया. मैं वहां रिटायरमेंट तक नौकरी किया. 2013 में रिटायर होने के बाद गुमला अपने घर आ गया. लेकिन अभी तक मुझे पेंशन, पांचवां व छठा वेतनमान नहीं मिला है. जिससे खुद की जीविका के अलावा परिवार के पालन पोषण में परेशानी हो रही है.

शमीम बोलते हुए रोने लगे और कहा : क्या भूख मर जायेंगे.आंसू पोछने वाला कोई नहीं है. सरकार से उम्मीद है, लेकिन इस बुढ़ापे का सहारा कौन बनेगा. जीते जी पेंशन मिल जाये तो तकलीफ नहीं होगी. हमलोगों ने अपनी मांगों को लेकर हाईकोर्ट तक गये. हमारी जीत भी हुई, लेकिन अभी तक हमारी मांगों को पूरा नहीं किया गया है. नौकरी करते तक सरकार ने हर काम हमारे से लिया. अब हम समस्या में जी रहे हैं तो सरकार उसे दूर नहीं कर रही.

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