दुर्जय पासवान, गुमला
12 दिसंबर 1912 को जतरा टाना भगत ने जमींदारी प्रथा, अंग्रेजी साम्राज्य व जुल्मों सितम के खिलाफ आवाज उठाया था. 1914 ईस्वी में महात्मा गांधी व सुभाषचंद्र बोस जैसे महापुरुषों से मिलकर टाना भगतों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था. लेकिन 1915 ईस्वी में जतरा टाना भगत को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था. छह माह तक वे जेल में रहे. जेल में उसे यातनाएं दी गयी. 1916 में वह जेल से छूटे. परंतु दो महीने के बाद उनका निधन हो गया.
जैसा वर्तमान समय के टाना भगत बताते हैं. उनके शव को गुमला जिला में ही दफनाया गया था. लेकिन आज तक जतरा भगत का एक समाधि स्थल नहीं बना है. उनके वंशज व अनुयायी चाहते हैं कि जतरा भगत का बिरसा मुंडा एग्रो पार्क के बगल में खाली पड़े जमीन पर समाधि स्थल बने. अंग्रेजों से हुए उनके युद्ध की कहानी शिलापट्ट में अंकित हो. ताकि वर्तमान पीढ़ी जतरा भगत के संघर्ष की कहानी के बारे में जान सके.
जतरा भगत के अनुयायियों ने पूर्व में गुमला डीसी को आवेदन सौंप चुके हैं. जिसमें समाधि स्थल बनाने की मांग की है. पोता विश्वा टाना भगत ने भी अपने दादा का समाधि स्थल बनवाने की मांग की है. जिससे विशेष अवसरों पर उनके समाधि स्थल पर फूल माला चढ़ाया जा सके.
कसपोड़या से जुड़ा है इतिहास, कुड़ू थाना को किया था कब्जा
घाघरा प्रखंड में कसपोड़या गांव है. यहां एक टोला टाना भगतों का है. जहां 12 परिवार टाना भगतों का रहते हैं. इस गांव का इतिहास भी गांधी जी के आंदोलन से जुड़ा हुआ है. इस गांव के कई सेनानी थे, जो गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया था. इनमें गाला टाना भगत, बिरसू टाना भगत, बिरिया टाना भगत, सोमा टाना भगत, मैरा टाना भगत, सुना टाना भगत व सनिया टाना भगत है.
ये लोग जतरा टाना भगत से मिलकर जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज उठाया था. जेल भी गये थे. इन लोगों ने सबसे पहले अंग्रेजों द्वारा कुडू़ में बनाये गये थाना पर कब्जा किया था. लेकिन आज उन महान हस्तियों के वंशज अपने ही गांव में बेगाने हैं. कसपोड़या गांव में रहने वाले टाना भगत गरीब हैं. इन सेनानियों की याद वर्तमान पीढ़ी करें. ऐसा कोई समाधि स्थल या शिलापटट गांव में नहीं बना है. परिजनों का कहना है कि गांव में एक शिलापटट बने. जहां देश के लिए लड़ने वाले सेनानियों का नाम अंकित किया जा सके.
इनसे सीखे : टाना भगत स्वच्छता के पुजारी हैं
गुमला जिले में रहने वाले टाना भगत स्वच्छता के पुजारी हैं. अगर स्वच्छ रहना है, तो हमें इन टाना भगतों से सीखना चाहिए. आज भी टाना भगत के घर व आसपास का क्षेत्र साफ सुथरा रहता है. इसका मुख्य कारण टाना भगतों का महात्मा गांधी के प्रति प्रेम व जतरा टाना भगत के संदेश हैं. सिर पर गांधी की टॉपी. बदन पर खादी वस्त्र. हाथों में शंख व घंट. यही टाना भगतों की पहचान है.
इसके अलावा ये टाना भगत स्वच्छता को अपने जीवन का अभिन्न अंग मानते हैं. आज भी बिहड़ जंगल व पहाड़ों के बीच रहने वाले टाना भगत शहरी क्षेत्र के लोगों को स्वच्छता का संदेश दे रहे हैं. इनकी परंपरा रही है. गांधी जी की टॉपी व खादी वस्त्र पहनते हैं. अखिल भारतीय टाना भगत विकास के रायडीह प्रखंड अध्यक्ष भिखराम टाना भगत ने कहा कि टाना भगत परिवार के हर घर के आंगन में सादा तिरंगा झंडा व तुलसी के पौधे का चबूतरा रखना अनिवार्य है.
टाना भगत समाज के लोग सुबह उठने के बाद अपने घर-आंगन व घर के आसपास साफ करते हैं. इसके बाद स्नान करने के बाद पहले तिरंगा झंडा व तुलसी पौधा की पूजा-पाठ करते हैं. इसके अलावा धरती माता, चांद, सूर्य, हवा, पानी, गो-माता व ठनका (वज्रपात) की पूजा की जाती है. उसके बाद ही घर में कोई काम होता है.
मेरे दादा का समाधि स्थल बनें : विश्वा टाना भगत
जतरा टाना भगत के पोता विश्वा टाना भगत ने कहा कि सरकार द्वारा दिये गये जमीन के 50 डिसमिल में गांव के बंधना उरांव ने कब्जा कर लिया है. मुझे मेरे जमीन वापस चाहिए. प्रशासन मेरी जमीन वापस करा दें. विश्वा ने अपने दादा की समाधि स्थल बनवाने व कच्ची मिटटी के घर को पक्का कराने की मांग की है.
जगह तय कर समाधि स्थल बनेगा : डीसी
गुमला डीसी शशि रंजन ने कहा है कि स्वतंत्रता सेनानी जतरा टाना भगत का समाधि स्थल व शिलापटट बनेगा. प्रशासन इसके लिए प्रयासरत है. टाना भगत के कुछ लोग शव दफनाने की अलग-अलग जगह बताते हैं. इस कारण समाधि स्थल बनाने के लिए जगह तय नहीं हो सका है. जगह तय होते ही समाधि स्थल बना दिया जायेगा. शोध संस्थान को पत्राचार कर जतरा टाना भगत के संबंध में जानकारी मांगी जायेगी. जिससे उनके जीवन का संक्षिप्त सरांश शिलापटट में लिखा हुआ रहेगा.