सरकारी दावों को झुठलाता सारंगाडीह गांव, इस गांव में न शुद्ध पानी, बिजली और न ही सरकारी स्कूल
दुर्जय पासवान, गुमला छत्तीसगढ़ राज्य से सटे जारी प्रखंड के गोविंदपुर पंचायत में सारंगाडीह गांव है. यह गांव जंगल व पहाड़ों पर स्थित है. इस गांव के विकास की जो हकीकत है. वह सरकारी दावों को झुठला रही है. ग्रामीणों की माने तो यह गांव सरकारी योजनाओं से महरूम है. आज भी लोगों को किसी […]
दुर्जय पासवान, गुमला
छत्तीसगढ़ राज्य से सटे जारी प्रखंड के गोविंदपुर पंचायत में सारंगाडीह गांव है. यह गांव जंगल व पहाड़ों पर स्थित है. इस गांव के विकास की जो हकीकत है. वह सरकारी दावों को झुठला रही है. ग्रामीणों की माने तो यह गांव सरकारी योजनाओं से महरूम है. आज भी लोगों को किसी रहनुमा का इंतजार है तो इस गांव की जरूरतों को पूरा कर सके. प्रखंड मुख्यालय से 15 किमी की दूरी पर पहाडों एवं जंगलों के बीच बसा इस गांव 63 परिवार रहते हैं.
प्रभात खबर के प्रतिनिधि ने गांव पहुंचकर गांव की हालात की जानकारी ली. किस प्रकार लोग रह रहे हैं. क्या सरकारी सुविधा मिल रही है. इस सब बिंदुओं पर प्रतिनिधि ने ग्रामीणों से बात की. गांव के कृष्णा अहीर, सेरेफिना लकड़ा, कुंवर सिंह, आयोध्या सिंह, प्रकाश लकड़ा, इग्नासियुस लकड़ा, बसंत लकड़ा, सोहन खेरवार ने कहा कि हमारे गांव में किसी तरह की सुविधा नहीं है.
सरकार के द्वारा चलाये जा रहे योजना भी हमारे गांव को नहीं मिल रही है. स्वच्छ पानी भी नसीब नहीं हो रहा है. गांव के खेत में बने डाड़ी से पीने का पानी का प्रयोग करते हैं. गांव के किसी भी ग्रामीण को प्रधानमंत्री आवास की सुविधा नहीं मिली है. शौचालय भी नहीं बना है. 40 लोगों के घर में शौचालय बनना था. परंतु अभी तक पूरा नहीं हुआ है.
जल सहिया सरिता लकड़ा से शौचालय के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि पहाड़ी इलाका होने कारण यहां बालू, चिप्स, सीमेंट, ईट, छड़ लाने में दिक्कत होती है. मेटेरियल लाने के लिए पांची घाट में गाड़ी भी नहीं चढ़ पाता है. हालांकि कुछ रोड बन गया है. अब मेटेरियल गांव लाकर शौचालय को पूरा कराया जायेगा. गांव के सभी चापाकल खराब पड़े हैं. ग्रामीणों ने कहा कि इस चुनाव में हमलोगों ने इस उम्मीद से वोट दिया है कि जो विधायक बनेगा. वह हमारे गांव का विकास करेगा. आजादी के बाद भी गांव में बिजली नहीं है.
सरकारी स्कूल नहीं है
सारंगाडीह गांव में सरकारी स्कूल नहीं है. यहां आरसी स्कूल है. जहां एक से पांच तक पढ़ाई होती है. छठी कक्षा के बाद की पढ़ाई के लिए छात्रों को सात किमी की दूरी तय कर भिखमपुर स्कूल जाना पड़ता है. गांव में सरकारी स्कूल नहीं रहने के कारण कई छात्र छठवीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं.