भाकपा माओवादी से नाता तोड़ जनकल्याण में जुटा है चिलगू

अपने देश में रत्नाकर और अंगुलीमाल डाकू के बारे में कौन नहीं जानता. इनका हृदय परिवर्तन हुआ, तो साधु बन गये. चंद्रशेखर उरांव उर्फ चिलगू का भी हृदय परिवर्तन हुआ. वह खूंखार उग्रवादी से समाजसेवी बन गया. आज गुमला के भरनो प्रखंड का जिला परिषद सदस्य है. सात साल तक आतंक का पर्याय रहे इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 15, 2016 6:03 AM
अपने देश में रत्नाकर और अंगुलीमाल डाकू के बारे में कौन नहीं जानता. इनका हृदय परिवर्तन हुआ, तो साधु बन गये. चंद्रशेखर उरांव उर्फ चिलगू का भी हृदय परिवर्तन हुआ. वह खूंखार उग्रवादी से समाजसेवी बन गया. आज गुमला के भरनो प्रखंड का जिला परिषद सदस्य है. सात साल तक आतंक का पर्याय रहे इस शख्स ने युवाओं को मुख्यधारा से न भटकने देने का संकल्प लिया है.
अंकित/सुनील
भरनो प्रखंड के वर्तमान जिला परिषद के सदस्य चंद्रशेखर उरांव उर्फ चिलगू हैं. गांव डुड़िया पंचायत का मरचाटोली है. एक समय था, जब चिलगू के नाम से गुमला जिले में आतंक था. बेरोजगारी के कारण भाकपा माओवादी में शामिल हुए चिलगू ने सात साल तक आतंक फैलाया.
लेकिन हिंसा से टूटते- बिखरते घर, उजड़ते परिवार और नक्सलवाद से समाज में उत्पन्न समस्या से उसका मन व्यथित हो उठा. उसका हृदय परिवर्तन हुआ और वह मुख्यधारा से जुड़ गया. अब समाज की सेवा में जुट गया है. गांव के लोगों की हर दुख-तकलीफ में वह अपना सुख ढूंढ़ रहा है. सिस्टम के खिलाफ बंदूक उठानेवाले चंद्रशेखर के मन में आज लोकतंत्र के प्रति गहरी आस्था है. इसलिए गांव की समस्याओं को दूर करने के लिए कभी हिंसा की बात नहीं करता.
चिलगू बताता है उसका जन्म 1977 में किसान परिवार में हुआ. उसका बचपन बेहद कष्ट में बीता. प्रारंभिक शिक्षा मरचाटोली गांव में हुई. मैट्रिक कुम्हारी स्कूल से 1993 में पास की. मैट्रिक के बाद रांची में इंटर की पढ़ाई की. इसी दौरान काम की तलाश भी करने लगे.
काम नहीं मिला, तो गांव वापस लौट आया. तब डुड़िया मरचाटोली और आसपास के गांवों में भाकपा माओवादियों का आना-जाना था. अक्सर गांव में माओवादी बैठक करते थे. चिलगू भी गांववालों के साथ माओवादियों की बैठक में शामिल होने लगा. उसके विचार बदलने लगे. 1995 में माओवादी नेता वीर भगत उर्फ चेतन के कहने पर उसने हथियार उठा लिया. चिलगू को वीर भगत ने भरनो क्षेत्र का एरिया कमांडर बना दिया. इसके बाद चिलगू आतंक का पर्याय बन गया.
वर्ष 2001 में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. जेल से छूटने के बाद फिर हथियार थामने की सोची. फिर नक्सलवाद से उभरनेवाली समस्या के बारे में सोचा, तो उधर जाने का मन नहीं किया. उसने समाज सेवा करने की सोची और गांव गरीबों की मदद में जुट गया. वर्ष 2015 में गांव की सरकार का चुनाव हुआ, तो दक्षिणी भरनो की जनता ने उसे भारी मतों से विजयी बना कर जिला परिषद सदस्य चुना.
अब मेरा एक ही मकसद है, युवाओं को सही राह दिखाना. किसी भी युवा को अब मुख्यधारा से भटकने नहीं दूंगा. मेरा पूरा जीवन जनता की सेवा के लिए समर्पित है.
चिलगू

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