– सुरेश –
सिसई(गुमला) : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले वीर शहीदों में कुछ नाम भारतीय इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में अंकित हुए हैं. किंतु अधिकतर नाम गुमनामी में विलीन हो गये हैं. इस गुमनाम वीर शहीदों में कुछ नाम ऐसे हैं, जिनका त्याग, समर्पण, बलिदान व कुर्बानी इतिहास के पन्नों से अधिक मूल्यवान व महत्वपूर्ण रही है. गुमनामी के ऐसे नामों में झारखंड के वीर शहीद तेलंगा खड़िया भी शामिल हैं.
जिन्होंने अंगरेजों के शोषण, अत्याचार के खिलाफ जुरी पंचायत गठित कर गांव गांव में युवाओं को संगठित किया और पारंपरिक अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण देने लगा. ऐसे वीर तेलंगा खड़िया का जन्म गुमला जिले के सिसई थाना अंतर्गत दक्षिण कोयल नदी के तट पर बसा मुरगू ग्राम में नौ फरवरी 1806 ई को एक साधारण किसान परिवार में हुआ था.
इनके पिता का नाम होइया खड़िया व माता का नाम पेतो खड़ियाइंन था. तेलंगा खड़िया के पिता होइया खड़िया नागवंशी राजा के भंडारी व गांव के पाहन थे. तेलंगा खड़िया ने नागवंशी राजा के स्वतंत्रता सेनानी विश्वनाथ शाहदेव के संपर्क में आकर देश भक्ति व स्वतंत्रता संग्राम कूद पड़े और अंगरेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत छेड़ दी. गांव-गांव में तलवार, गदका, धनुष चलाने के संबंध में प्रशिक्षित किया. अंगरेजों के विरूद्ध लड़ने के लिए युवाओं के बीच उत्साह भरा. इसका मुख्य केंद्र सिसई के तेलंगा खड़िया बगीचा मैदान था. जहां गुरु-शिष्य पूरब मुंह कर घुटना टेक कर धरती माता, सरना माता, सूर्य भगवान व पूर्वजों की आराधना करते थे.
प्रार्थना के बाद शुरू होता था प्रशिक्षण का दौर. सन 1850 के बाद जब स्वतंत्रता आंदोलन तेज होने लगा तो बहादूर तेलंगा खड़िया ने स्वत: गठित जुरी समाज का विस्तार सिसई, कुम्हारी, महाबोआंग, कोलेबिरा, ढ़िढौली, गुमला, लोहरदगा जैसे क्षेत्र में फैला कर युवा फौज तैयार किया. इसी बीच अंगरेजों को तेलंगा खड़िया के फौज का पता चल गया और उसे गिरफ्तार करने के लिए अंगरेज पुलिस पीछे पड़ गयी. इसी बीच कुम्हारी ग्राम में जुरी पंचायत का प्रशिक्षण देते समय उसे अंगरेज पुलिस ने घेराबंदी कर गिरफ्तार कर लिया और कोलकाता जेल भेज दिया. कोलकाता जेल में 12 वर्ष सजा काटने के बाद वह रिहा हुए और सिसई पहुंचे. सिसई आने के बाद एक बार पुन: अंगरेजों के अत्याचार व शोषण उनसे देखा नहीं गया. और पुराने लय में आ गये. पूजा अर्चना करने के दौरान बगल में छिपे अंगरेजों के दलाल बोधन सिंह ने 23 अप्रैल 1880 को उन्हें गोली मार कर हत्या कर दी. तेलंगा खड़िया के शव को लेकर उनके शिष्यों ने गुमला की ओर ले गये और सोसो के नीमटोली ग्राम में एक खेत में शव को दफना दिया. उस समय से टांड़ को तेलंगा तोपा टांड़ से जाना जाता है.