गुमला, दुर्जय पासवान: गुमला जिला अंतर्गत बिशुनपुर में मजदूर गुलशन मुंडा की ब्लास्टिंग से मौत के बाद कंपनी राज का खुलासा हुआ है. बिशुनपुर के बॉक्साइट माइंस इलाके के गांवों में कंपनी राज है. कंपनी के इशारे पर ठेकेदार और दबंग लोग हावी हैं. इसलिए गांव के लोग किसी मजदूर के मरने के बाद भी डर से मुंह नहीं खोलते हैं. क्योंकि रात के अंधेरे में दबंग लोगों व ठेकेदारों द्वारा ग्रामीणों को मारने-पीटने का डर लगा रहता है. इसके अलावा बॉक्साइट माइंस में काम करनेवाले मजदूरों को अपने काम से भी हाथ धोने का डर रहता है. इसलिए किसी भी छोटे-बड़े हादसे में मजदूर खुल कर नहीं बोलते हैं. हालांकि, मजदूर गुलशन की मौत के बाद कुछ राजनीति पार्टियों व मजदूर संघ के नेताओं के समर्थन के बाद अब ग्रामीण कंपनी राज के बारे में खुल कर बोलने लगे हैं. साथ ही किस प्रकार कंपनी के इशारे पर प्रशासन काम करता है. इसका भी खुलासा किया है.
डीसी-एसपी से जांच की मांग
इंटक के जिला अध्यक्ष अमित कुमार ने कहा कि मैं कोरकोपाठ गांव गया था, जहां मजदूर डर के साये जी रहे हैं. कंपनी के खिलाफ कोई मजदूर डर के कारण बोलने को तैयार नहीं है. ऐसे गुलशन मुंडा की मौत से लोग मर्माहत हैं. इसलिए लोगों ने इस बार कई महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं. अमित ने कहा कि प्रशासन कंपनी के लोगों से मिल कर काम करता है. इसलिए मजदूरों के साथ किसी प्रकार का अत्याचार होता है, तो प्रशासन कार्रवाई नहीं करता है. उन्होंने गुमला उपायुक्त व पुलिस अधीक्षक से मामले में जांच की मांग की है, जिससे लोगों के मन में बैठे डर को निकाला जा सके.
पझरा पानी पीते हैं गांव के लोग
बिशुनपुर के कोरकोटपाठ गांव के लोग सरकारी उपेक्षा का भी दंश झेल रहे हैं. प्रशासन का इस गांव की ओर ध्यान नहीं है. इस गांव के लोगों के लिए बस यही खुशी है कि ये खुली हवा में जिंदा हैं. अगर सरकारी सुविधा की बात करें, तो यहां कुछ नहीं है. पहाड़ से नीचे उतर कर लोग पझरा पानी जमा करते हैं. इसका उपयोग पीने के लिए किया जाता है. गांव में बिजली व सड़क की समस्या आम है. पीएम आवास, आंबेडकर आवास का लाभ नहीं मिला है. ग्रामीणों की माने, तो कभी प्रशासनिक अधिकारी गांव नहीं आये हैं. सुखमनिया मुंडा, अनु मुंडा, इलिजा बेक, मेरी रोशनी बेक, बेरोनिका आइंद ने कहा कि आजादी के 75 सालों से हम ऐसे ही जी रहे हैं. जब अधिकारी गांव आते नहीं, तो हम समस्या किसे बतायें. हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि हम ब्लॉक व जिला जाकर अधिकारियों के पास अपनी समस्या रख सकें. आग्रह है कि एक बार अधिकारी हमारे गांव आकर यहां की हकीकत जाने. इसके बाद पता चल जायेगा कि हम कैसे जी रहे हैं.
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कच्ची मिट्टी का है हर
सरकार की कई योजनाएं हैं. इसके बाद भी इन आदिवासी परिवारों के घर कच्ची मिट्टी के हैं. समीप में बॉक्साइट माइंस है. इसलिए हर घर लाल मिट्टी से भी रंगा नजर आता है. ग्रामीण कहते हैं कि हम बीमारी से भी मर रहे हैं. परंतु, हमारे इलाज की व्यवस्था नहीं है. सरकार हर घर नल जल योजना चला रही है. एक बार कोरकोटपाठ गांव की स्थिति की प्रशासन जांच कर लें. आखिर इस गांव में योजना का लाभ क्यों नहीं पहुंचा.