पाकिस्तान पर जब कहर बनकर टूटे अल्बर्ट एक्का, तब क्या कर रहे थे गुमला के सहदेव महतो और जयपाल नायक?

Albert Ekka Death Anniversary: 1971 के ऐतिहासिक भारत-पाक युद्ध में जब अल्बर्ट एक्का दुश्मन सेना पर कहर बनकर टूटे थे, तब गुमला के 2 जांबाज क्या कर रहे थे. जानें

By Mithilesh Jha | December 2, 2024 5:17 PM

Albert Ekka Death Anniversary|गुमला, जगरनाथ पासवान : भारत-पाकिस्तान के बीच वर्ष 1971 में हुए युद्ध में दुनिया ने गुमला के लाल अल्बर्ट एक्का का पराक्रम देखा था. अल्बर्ट एक्का जब पाकिस्तानी सैनिकों पर कहर बरपा रहे थे, उसी वक्त गुमला के 2 और जांबाज भी अपने शौर्य और पराक्रम दिखा रहे थे.

मेजर सहदेव महतो और कैप्टन जयपाल नायक भी लड़े थे युद्ध

गुमला के बह्मनी गांव के सूबेदार मेजर सहदेव महतो और डुमरडीह के कैप्टन जयपाल नायक ने भी 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भाग लिया था. दोनों ने प्रभात खबर (prabhatkhabar.com) के साथ युद्ध की अपनी यादें साझा कीं. उन्होंने परमवीर अल्बर्ट एक्का के बारे में भी हमें बताया.

पाकिस्तान पर जब कहर बनकर टूटे अल्बर्ट एक्का, तब क्या कर रहे थे गुमला के सहदेव महतो और जयपाल नायक? 5

सेना को हथियार और रसद पहुंचाते थे सूबेदार सहदेव महतो

भारत-पाक युद्ध के गवाह बने कई वीर जवान अब हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन जो लोग जीवित हैं, उन्होंने हमें युद्ध की कहानी बताई. यह भी बताया कि उनकी क्या भूमिका थी. गुमला के बह्मनी गांव निवासी सूबेदार मेजर सहदेव महतो, जो खुद इस युद्ध में शामिल थे, बताते हैं कि वह भारतीय सेना को हथियार और रसद (राशन) पहुंचाते थे.

निडर और बहादुर योद्धा थे अल्बर्ट एक्का

सहदेव महतो कहते हैं कि वे सेना में सूबेदार थे. भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय सेना के जवानों के लिए हथियार और भोजन पहुंचाने का काम करते थे. उन्होंने कहा कि परमवीर चक्र विजेता अल्बर्ट एक्का निडर और बहादुर योद्धा थे. भारत-पाक युद्ध के दौरान कई गोलियां खाईं, लेकिन अपनी जान की परवाह किए बगैर दुश्मनों से अंतिम क्षण तक लोहा लेते रहे.

सूबेदार मेजर सहदेव महतो. फोटो : जगरनाथ पासवान

अंतड़ियां बाहर आ गईं, फिर भी दुश्मन पर कहर बनकर टूटे अल्बर्ट

सूबेदार मेजर सहदेव महतो कहते हैं कि गोलियों से छलनी अल्बर्ट एक्का की अंतड़ियां बाहर आ गईं. अपने ही हाथ से उन्होंने अंतड़ियों को पेट के अंदर डालकर उसे गमछा से बांध दिया. इसके बाद दुश्मनों के बंकर में घुसे. पहले दुश्मन को गोलियों से मारा. फिर ग्रेनेड से बंकर को ध्वस्त कर दिया. तब तक वह बेहद गंभीर रूप से घायल हो चुके थे. इलाज हो पाता, उसके पहले ही वह वीरगति को प्राप्त हो गए.

कैप्टन जयपाल नायक ने तुर्रा से ढाका तक संभाला था मोरचा

गुमला जिले के डुमरडीह निवासी कैप्टन जयपाल नायक ने भी 1971 की भारत-पाक लड़ाई लड़ी थी. युद्ध के दौरान वे तुर्रा से ढाका तक मोर्चा संभाल रहे थे. कैप्टन जयपाल नायक 1964 में सेना में भर्ती हुए थे. सेना में अंदरूनी कैप्टन थे. उन्होंने सेना में 28 साल तक अपनी सेवा दी. उनकी बहाली बिहार रेजिमेंट के बिहार-06 में हुई थी. उसी समय अल्बर्ट एक्का की भी सेना में बहाली हुई थी. हालांकि, अलबर्ट एक्का की यूनिट अलग थी.

कैप्टन जयपाल नायक. फोटो : जगरनाथ पासवान

कैप्टन जयपाल नायक कहते हैं कि भारत-पाक युद्ध के दौरान उन्होंने कई पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. बाद में पता चला कि अल्बर्ट एक्का शहीद हो गये. मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र से नवाजा गया. देश उनकी शहादत को कभी नहीं भूलेगा. वे आज भले हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके युद्ध कौशल और उनकी वीरता के चर्चे आज भी होते हैं. सेना में भी उनके शौर्य और पराक्रम की मिसाल दी जाती है.

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