महिषासुर की पूजा करती है झारखंड की असुर जनजाति, मिट्टी का पिंड बनाकर की जाती है आराधना

दीपावली पर्व की रात महिषासुर की मिट्टी का छोटा पिंड बना कर पूजा करते हैं. इस दौरान असुर जनजाति अपने पूर्वजों को याद करते हैं. गुमला जिले के जंगलों व पहाड़ों में असुर जनजाति के लोग अधिक संख्या में निवास करते हैं. इसलिए बड़े पैमाने पर महिषासुर की पूजा होती है.

By Guru Swarup Mishra | October 14, 2023 4:46 PM

गुमला, जगरनाथ पासवान: दुर्गा पूजा में हिंदू धर्मावलंबी जहां मां दुर्गा की पूजा करते हैं. इसके विपरीत एक समुदाय आज भी महिषासुर की पूजा करता है. हम बात कर रहे हैं असुर जनजाति की. आज भी असुर जनजाति के लोग अपने प्रिय आराध्य देव महिषासुर की पूजा ठीक उसी प्रकार करते हैं, जिस प्रकार हर धर्म व जाति के लोग अपने आराध्य देव की पूजा करते हैं. झारखंड के गुमला जिला ही नहीं अन्य जिलों में जहां असुर जनजाति के लोग निवास करते हैं, वे महिषासुर की पूजा करते हैं. दुर्गा पूजा के बाद दीपावली पर्व में महिषासुर की पूजा करने की परंपरा आज भी जीवित है. ऐसे इस जनजाति में महिषासुर की मूर्ति बनाने की परंपरा नहीं है, लेकिन जंगलों व पहाड़ों में निवास करने वाले असुर जनजाति के लोग श्री दुर्गा पूजा की समाप्ति के बाद महिषासुर की पूजा में जुट जाते हैं. दीपावली पर्व की रात महिषासुर की मिट्टी का छोटा पिंड बना कर पूजा करते हैं. इस दौरान असुर जनजाति अपने पूर्वजों को याद करते हैं. गुमला जिले के जंगलों व पहाड़ों में असुर जनजाति के लोग अधिक संख्या में निवास करते हैं. इसलिए बड़े पैमाने पर महिषासुर की पूजा होती है.

देर शाम को होती है पूजा

असुर जनजाति के लोग बताते हैं कि सुबह में मां लक्ष्मी व गणेश की पूजा करते हैं. इसके बाद देर शाम को दीया जलाने के बाद महिषासुर की पूजा की जाती है. दीपावली में गोशाला की पूजा असुर जनजाति के लोग बड़े पैमाने पर करते हैं. जिस कमरे में पशुओं को बांध कर रखा जाता है. उस कमरे की असुर जनजाति के लोग पूजा करते हैं. वहीं हर 12 वर्ष में एक बार महिषासुर की सवारी भैंसा (काड़ा) की भी पूजा करने की परंपरा आज भी जीवित है. गुमला जिले के बिशुनपुर, डुमरी, घाघरा, चैनपुर व लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड के इलाके में भैंसा की पूजा की जाती है. बिशुनपुर प्रखंड के पहाड़ी क्षेत्र में भव्य रूप से पूजा होती है. इस दौरान मेला लगता है. पूर्वजों के समय से पूजा करने की जो परंपरा चली आ रही है, जो आज भी कायम है.

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पूर्वजों के साथ महिषासुर की भी पूजा

जनजाति नेता विमलचंद्र असुर ने कहा कि पूर्वजों के साथ महिषासुर की भी पूजा की जाती है. बैगा पहान सबसे पहले पूजा करते हैं. इसके बाद घरों में पूजा करने की परंपरा है. दुर्गा पूजा के बाद हमलोग अपनी संस्कृति व धर्म के अनुसार पूजा की तैयारी शुरू करते हैं. जिन गांवों में असुर जनजाति के लोग निवास करते हैं. उन गांवों में उत्साह चरम पर रहता है.

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