Former PM अटल बिहारी वाजपेयी का गुमला से रहा है नाता, स्वतंत्रता सेनानी गणपत लाल साबू से कई बार मिले

आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि है. अटल बिहारी वाजपेयी कई बार गुमला आ चुके हैं. गुमला के स्वतंत्रता सेनानी गणपत लाल साबू से मिलने अजट बिहारी वाजपेयी कई बाद गुमला आ चुके हैं. 22 साल की उम्र में गणपत लाल आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 16, 2022 6:58 AM

Jharkhand News: देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पुण्यतिथि है. पूरा देश अटल जी को याद कर नमन कर रहा है. अटल जी का झारखंड के गुमला से भी नाता रहा है. स्वतंत्रता सेनानी गणपत लाल साबू से मिलने अटल बिहारी वाजपेयी, कड़िया मुंडा जैसे कई बड़े नेता गुमला आते थे.

स्वतंत्रता सेनानी गणपत लाल साबू को जानें

जब भारत देश गुलाम था. अंग्रेजी हुकूमत थी. भारतीयों पर अत्याचार हो रहा था. अंग्रेजों के अत्याचार के विरोध में महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था. इस आंदोलन में गुमला जिला के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता. गुलाम देश में गुमला में वर्ष 1922 में गणपत लाल साबू का जन्म हुआ था. गुमला में जन्मे गणपत लाल साबू आठवीं तक की पढ़ाई किये थे. पढ़ाई छोड़ने के बाद कपड़े के व्यवसाय में उतर गये थे. बचपन से ही उनमें देशप्रेम का जज्बा था. इसलिए वे अंग्रेजों के खिलाफ होने वाले हर आंदोलन में भाग लेते थे. वर्ष 1944 में अंग्रेजों के खिलाफ गुमला में जुलूस निकाला गया था. जिसमें गणपत लाल साबू सबसे आगे थे. जुलूस निकालने के कारण उनके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज हुआ था. परंतु तीन माह बाद उन्हें मुकदमे से बरी कर दिया गया था.

अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगों को जगाये

वे 22 साल की उम्र में ही आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे. गांव-गांव घूमकर लोगों को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जागरूक किया था. वे अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर बोलते थे. गुमला जिले में स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान अहम थे. वे कहा करते थे कि एक-एक व्यक्ति अगर अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा हो जाये तो अंग्रेजों को देश छोड़कर भागना पड़ेगा. उनकी यह बात सही साबित भी हुई. पूरा देश अंग्रेजों के खिलाफ जब खड़ा हुआ तो अंग्रेजों को भारत देश छोड़ना पड़ा और 15 अगस्त 1947 को भारत देश आजाद हुआ. देश की आजादी के बाद गणपत खंडेलवाल देश के बारे में सोचते रहते थे.

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जनसंघ की स्थापना में अहम योगदान था

वर्ष 1967 में भारतीय जनसंघ के राष्ट्रीय नेता गुमला आये थे. स्थानीय पोददार धर्मशाला में ठहरे थे. उनके भाषण सुनकर उनपर राजनीति में आने का भूत सवार हो गया. उन्हें गुमला व सिमडेगा क्षेत्र (उस समय रांची जिला) में भारतीय जनसंघ की स्थापना करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी. जबकि यह समय मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा का था. फिर भी 1967 के विधानसभा चुनाव में सिसई से ललित उरांव, गुमला सीट से रोपना उरांव, चैनपुर से गोपाल खड़िया को पार्टी का प्रत्याशी बनाया गया था. सिमडेगा में भी प्रत्याशी उतारा गया था. उस समय गुमला, सिसई व सिमडेगा सीट में जनसंघ की जीत हुई थी. उस समय पार्टी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी.

अटल बिहारी वाजपेयी इनसे मिलने गुमला आते थे

वे कहते थे कि आजादी की लड़ाई जिस मकसद से लड़ा गया और देश को आजादी मिली. आज भी वह मकसद पूरा नहीं हुआ है. राजनीति में अच्छे लोग आकर ही देश को तरक्की के मार्ग पर ले जा सकते हैं. जब गणपत साबू जीवित थे. तब अटल बिहारी वाजपेयी, कड़िया मुंडा जैसे कई बड़े नेता उनसे मिलने गुमला आते थे. उनका निधन 17 जुलाई 2012 को हुई थी. उन्हें राजकीय सम्मान के साथ तिरंगा से लपेटकर शव यात्रा निकाली गयी थी. पालकोट रोड मुक्तिधाम में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया था.

स्वतंत्रता सेनानी का परिवार आज गुमनाम

गणपत लाल साबू जबतक जीवित थे. देश के कई बड़े नेता उनके घर पहुंचे. उन्हें सम्मान दिये. लेकिन, उनके निधन के बाद सरकार एवं प्रशासन उन्हें भूल गया. आज परिवार भी गुमनाम है. हालांकि परिवार के लोगों का गुमला शहर में दुकान है. जहां वे अपना व्यवसाय करते हैं. परंतु कभी प्रशासन इस परिवार को सम्मान देने की पहल नहीं की.

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रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला.

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