गुमला, जगरनाथ पासवान : हाल के वर्षो में गुमला में कई अलग काम हुआ है. जिसका सीधा लाभ ग्रामीण परिवेश में रहने वाले लोगों को मिल रहा है. इन्हीं में बांस का व्यवसाय भी है. गुमला के लोगों के लिए बांस जीविका व जीने का सहारा बन गया है. प्रशासन की पहल पर 1153 लोगों को बांस के व्यवसाय से जोड़ा गया है. इन 1153 बांस कारीगरों को प्रशासन की ओर से टूल किट भी दिया गया है.
बांस से बनी सामग्री की डिमांड
मुख्यमंत्री लघु एवं कुटीर उद्यम विकास बोर्ड द्वारा कारीगरों की पहचान कर उनका पंजीयन, कारीगर पहचान पत्र, आधार उद्यम, ई-श्रम कार्ड, श्रमिक निबंधन कराते हुए उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुसार टूल कीट दिया गया. जिससे यहां के बांस कारीगर बांस से अलग-अलग प्रकार के सामग्री बनाकर बाजारों में बेच रहे हैं. बांस से बनी सामग्री की डिमांड गुमला के अलावा रांची, छत्तीसगढ़, दिल्ली तक है. गुमला उपायुक्त सुशांत गौरव की सोच व पहल ने बांस व उससे जुड़े लोगों को एक नयी पहचान दी है.
आठ प्रखंडों में बना बांस विकास शिल्प केंद्र
गुमला जिले के आठ प्रखंडों में बांस विकास शिल्प केंद्र का निर्माण कराया गया है. साथ ही कारीगरों के आवश्यकता अनुसार और अन्य कारीगर स्थल पर भी बांस शिल्प विकास केंद्र का निर्माण कराने की योजना है. ताकि कारीगर बरसात, गर्मी, अन्य मौसम में भी आसानी से कार्य कर सके एवं अपना कार्य, प्रशिक्षण, आय व उत्पादन को बढ़ा सकें. सबसे ज्यादा फोकस डुमरी प्रखंड में है. यहां बड़ी मात्रा में बांस की खेती होती है. किसान भी बांस के कारीगरी जानते हैं. यहां 51 परिवार को आधुनिक समय के बैंबू टूल कीट का निशुल्क वितरण किया गया है.
800 कारीगरों को बैंबू टूल किट मिला
झारखंड के इतिहास में पहली बार लोक प्रशासन की उत्कृष्टता के लिए प्रधानमंत्री अवार्ड गुमला जिला को मिला है. इसमें बांस कारीगरों के लिए जिले में किये गये प्रयास भी शामिल है. उपायुक्त गुमला सुशांत गौरव के निर्देश पर प्रशासन द्वारा विशेष केंद्रीय सहायता मद से प्राप्त टूल-किट का वितरण जिला के कई क्षेत्रों में किया गया. साथ ही सभी चिन्हित 1153 बांस कारीगरों को आठ समूहों में विभाजित करते हुए उनके लिए बांस कला भवन सीएफसी निर्माण किया गया. जहां पर बांस कारीगर एक ही छत के नीचे बैठ कर एक साथ अपना कार्य कर रहे हैं. इसके अलावा बांस कारीगरों को आधुनिक समय की मांग के अनुसार उन्हें समय समय पर प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. ताकि लोग अधिक मात्रा में और दक्षता के साथ अन्य सामग्री का भी निर्माण कर सके. अब तक जिले के 800 से अधिक बांस कारीगरों के बीच बैंबू टूल किट का वितरण किया जा चुका है. टूल किट वितरण कार्यक्रम जारी है.
बांस की कारीगरी से कमाई बढ़ी
डीसी सुशांत गौरव ने बताया कि पहले बांस के कारीगर पेड़ की छांव के नीचे बैठकर कार्य किया करते थे. मौसमी प्रभाव के साथ प्रत्येक दिन पेड़ के नीचे कार्य करना संभव नहीं था. परंतु जिला प्रशासन के प्रयासों से बांस कला केंद्र के निर्माण से अब सभी बांस कारीगर एक छत के नीचे एक साथ मिलकर कार्य कर रहे हैं. साथ ही जिला प्रशासन की ओर से प्राप्त टूल किट से उन्हे बांस को शेप देने में साहयता मिल रही है. पहले जहां उनकी मासिक आय 10000 हो पाती थी. अब वे 20000 से 25000 तक की कमाई कर पा रहे हैं.