गुमला के रेहे गांव में जंगली जानवरों को रोकने के लिए हो रही बांस की खेती, ग्रामीणों को मिलेगा दोहरा लाभ

jharkhand news: गुमला के बिशुनपुर प्रखंड स्थित रेहे गांव के पहाड़ की तलहटी में 50 हजार बांस की खेती हो रही है. इससे ग्रामीणों को दोहरा लाभ मिलेगा. एक तो जंगली जानवरों को गांव में आने से रोका जायेगा, वहीं बांस के सहारे ग्रामीण अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर सकेंगे.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 23, 2022 5:39 PM

Jharkhand news: गुमला जिला के बिशुनपुर प्रखंड अंतर्गत रेहे गांव में 50 हजार बांस की खेती हो रही. बांस की यह खेती वन एवं पर्यावरण विभाग, गुमला द्वारा करायी जा रही है. इसके लिए विभाग द्वारा रेहे गांव के पहाड़ की तलहटी का स्थल के रूप में चयन किया गया है. जहां एक कतार में लंबी लाइन से बांस लगायी जायेगी. बांस की खेती होने के बाद बांस जब बड़े होंगे, तो उससे ना केवल स्थानीय गांव के ग्रामीण लाभान्वित होंगे, बल्कि गांव में जंगली जानवरों के प्रवेश पर भी रोक लगेगा.

जनवरी जानवरों को गांवों में प्रवेश करने से रोकने की कोशिश

प्राय: ऐसा होता रहा है कि कई जंगली जानवर पहाड़ से उतरने के बाद गांव में घुस जाते हैं. जिससे स्थानीय लोगों को जान-माल की क्षति होती रही है. इस दौरान जंगली जानवरों को भी नुकसान होता है. गांव में प्रवेश करने वाले जंगली जानवरों को गांव से बाहर भगाने के प्रयास में जंगली जानवर घायल हो जाते हैं. कई बार तो जंगली जानवरों की जान तक चली जाती है.

बांस से ग्रामीणों को मिलेगी आर्थिक मजबूती

लेकिन, बांस की खेती के बाद जब बांस बड़े जायेंगे, तो बांस के चारों ओर कंटीला और नुकीला झाड़ी बनेगी. झाड़ियों के कंटीला और नुकीला होने के कारण जंगली जानवर उसे पार नहीं कर सकेंगे. जिससे वे गांव में भी नहीं घुस सकेंगे. वहीं, कई पर्व-त्यौहारों सहित कई कार्यों के लिए बांस की जरूरत पड़ती है. बांस के बड़े होने के बाद स्थानीय लोग उक्त बांस को ऐसे अवसरों पर बिक्री कर अपनी आर्थिक स्थिति भी मजबूत कर सकेंगे.

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गारा गांव में भी हो चुकी है बांस की खेती

बता दें कि पूर्व में विभाग द्वारा गांव में जंगली जानवरों के प्रवेश पर रोक लगाने के उद्देश्य से कामडारा प्रखंड के गारा गांव के किनारे एक कतार में बांस की खेती करायी है. जिसका प्रतिफल गारा सहित आसपास के गांव के लोगों को मिला. बांस की खेती होने से पहले जंगली जानवर जंगल से निकलकर गांव तक पहुंच जाते थे. लेकिन, अब बांस की खेती होने के बाद जंगली जानवर गांव तक नहीं पहुंच पा रहे हैं.

बैंबुसा बैंबुसा एवं अगरबत्ती बांस की हो रही खेती

रेहे पहाड़ की तलहटी में दो प्रजाति बैंबुसा बैंबुसा एवं अगरबत्ती बनाने वाली बांस की खेती हो रही है. बता दें कि बैंबुसा बैंबुसा बांस का उपयोग विभिन्न प्रकार के हैंडीक्राफ्ट जैसे सूप, दाउरा, बेना, डलिया, फुलदानी सहित घर को सजाने में उपयोग की जाने वाली विभिन्न प्रकार के सामग्रियों का निर्माण किया जाता है. इस बांस की अच्छी खासी कीमत भी मिलती है. बांस के बड़े होने के बाद स्थानीय लोग उक्त बांस का उपयोग अपनी आर्थिक उन्नति के रूप में भी कर सकते हैं.

बांस की खेती से ग्रामीणों को मिलेगा दोहरा लाभ : डीएफओ

इस संबंध में गुमला डीएफओ श्रीकांत ने कहा कि बिशुनुपर के रेहे गांव के पहाड़ की तलहटी में 50 हजार बांस की खेती करायी जा रही है. बांस की खेती करने का मुख्य उद्देश्य गांव में जंगली जानवरों के प्रवेश पर रोक लगाना है. बांस के बड़े होने से गांव के ग्रामीण भी इससे लाभान्वित होंगे. इसी प्रकार जिले के कई जंगलों के किनारे एवं पहाड़ों के तलहटी में एक कतार में बांस की खेती कराने का प्रयास किया जायेगा.

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रिपोर्ट : जगरनाथ पासवान, गुमला.

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