Jharkhand News, Coronavirus Lockdown in Jharkhand: रांची : कोरोना वायरस के संक्रमण और उसकी वजह से घोषित लॉकडाउन ने सभी वर्गों को प्रभावित किया. तरह-तरह की चुनौतियों से लोगों को रू-ब-रू होना पड़ा, लेकिन झारखंड के आवासीय स्कूलों को अलग तरह की समस्याओं से दो-चार होना पड़ा. बोर्डिंग स्कूल इस कदर प्रभावित हुए कि आज दूध विक्रेता बन गये हैं. लॉकडाउन में रांची के एक स्कूल को तो करीब 15 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
रांची का सबसे पुराना बोर्डिंग स्कूल है, विकास विद्यालय. इस स्कूल का उद्घाटन देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने वर्ष 1952 में किया था. 175 एकड़ में फैले इस स्कूल में 300 छात्र और करीब 130 स्कूल स्टाफ रहते हैं. इनमें शिक्षक भी शामिल हैं. इस आवासीय स्कूल के पास 120 गायें थीं.
लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में गुणवत्तापूर्ण चारा के अभाव में इनमें से 7 की मौत हो गयी. स्कूल के प्रिंसिपल पीएस कालरा बताते हैं कि जब से स्कूल की स्थापना हुई, तभी से यहां गायें पाली जाती रही हैं. अचानक हुए लॉकडाउन ने स्कूल के सामने बड़ी समस्या खड़ी कर दी.
उन्होंने कहा कि स्कूल की 120 गायें हर दिन 350 लीटर दूध देती हैं. इनका सेवन स्कूल के बच्चे और स्टाफ करते हैं. लॉकडाउन के बाद समस्या आ गयी कि इतनी दूध का करें क्या. इतनी संख्या में गायों को पालने का खर्च भी बहुत ज्यादा आता है. इसलिए शुरुआत में हमने वेदिक बिलोना घी बनाना शुरू किया. तीन महीने तक हमने यह घी बनाया, ताकि स्कूल खुलने के बाद बच्चों को इसे दिया जा सके.
इस विधि से एक किलो घी बनाने में 45-50 लीटर दूध की खपत होती है. जब स्कूल खुलने के आसार नहीं दिखे, तो हमने इसे 1700 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा. लेकिन, जुलाई में स्कूल के पूर्व छात्रों ने सलाह दी कि रांची के बाजारों में दूध की सप्लाई शुरू की जाये. उन्होंने कहा कि वे खुद इस दूध को खरीदेंगे. इसके बाद 10 जुलाई, 2020 से स्कूल के दूध की बाजार में सप्लाई शुरू हो गयी. आज 70 घरों में लोग विकास विद्यालय का दूध पी रहे हैं.
प्रिंसिपल ने कहा कि जिन 70 घरों को अभी दूध की सप्लाई की जा रही है, वह स्कूल खुलने के बाद भी जारी रहेगी. उन्होंने कहा कि जितनी दूध की बिक्री अभी की जा रही है, वह स्कूल के छात्रों एवं कर्मचारियों की जरूरत के अतिरिक्त है. उन्होंने कहा कि दूध बेचकर हम अपने कुछ नुकसान की भी भरपाई कर पा रहे हैं.
प्रिंसिपल श्री कालरा ने बताया कि एक लीटर दूध की लागत 50 रुपये आती है. लॉकडाउन के दौरान चारा की कीमतें अचानक तीन गुणा तक बढ़ गयीं. ऐसे में गायों को पालना मुश्किल हो गया. इतने एक अलग मुश्किल हमारे लिए बढ़ा दी.
एक और बोर्डिंग स्कूल ने दूध के कारोबार में कदम रख दिया है. इस स्कूल का नाम है टॉरियन वर्ल्ड स्कूल. इस स्कूल के पास 65 गायें और 15 घोड़े हैं. इसके प्रिंसिपल अमित बाजला कहते हैं कि उनके स्कूल में स्टाफ की संख्या भी बहुत ज्यादा है. हमें स्कूल बंद होने के बावजूद तमाम व्यवस्था करनी और रखनी होती है. हम टीचिंग और नन-टीचिंग स्टाफ को हटा नहीं सकते. हमारा 80-85 फीसदी खर्च फिक्स है.
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान बोर्डिंग स्कूल के खर्च में कमी के नाम पर सिर्फ ईंधन और भोजन का खर्च शामिल है. उन्होंने कहा कि इनके पास 65 गायें हैं. इनको पालने का खर्च बहुत ज्यादा है. वर्तमान में ये लोग गायों से मिलने वाली दूध को बाजार में बेच रहे हैं. घोड़े बेकार पड़े हैं. उन्होंने कहा कि पिछले 8 महीने में स्कूल को कम से कम 15 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है.
झारखंड एवं बिहार में कई स्कूलों का संचालन करने वाली विद्या विकास समिति को बहुत ज्यादा समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा है. इसकी वजह यह है कि उनके पास गायों की संख्या बहुत ज्यादा नहीं है. विद्या विकास समिति के सचिव महावीर सिंह ने बताया कि मधुपुर, बासुकिनाथ और गुमला में उनके बोर्डिंग स्कूल हैं. मधुपुर में 22 और अन्य दो केंद्रों पर 7-8 गायें हैं.
इसलिए चारा की बहुत ज्यादा समस्या नहीं आयी. चारा की उपलब्धता इसलिए भी बनी रही, क्योंकि इनके स्कूल गांवों के पास हैं. हालांकि, समिति के स्कूल भी दूध बेच रहे हैं. ये लोग मिठाई दुकानों में दूध की सप्लाई कर रहे हैं. महावीर सिंह बताते हैं कि लॉकडाउन के शुरुआती तीन महीनों के दौरान इन्हें नुकसान झेलना पड़ा, लेकिन अब ‘नो प्रॉफिट, नो लॉस’ में चल रहे हैं.
Posted By : Mithilesh Jha