झारखंड के गुमला में 7 साल पहले चरकाटोली नदी पर बना पुल हुआ था ध्वस्त, नहीं हुई कार्रवाई, कौन जिम्मेवार?

गुमला में सात साल पहले चरकाटोली नदी पर बना पुल ध्वस्त हुआ था, लेकिन आज तक न तो दोषियों पर कार्रवाई हुई और न ही पुल का निर्माण ही शुरू हुआ. पुल नहीं रहने से बरसात में 20 गांव टापू में तब्दील हो जाता है. वहीं, छात्रों का स्कूल जाना भी बंद हो जाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 13, 2023 5:07 PM

गुमला, दुर्जय पासवान : गुमला जिला के डुमरी प्रखंड में जुरमू पंचायत है. यहां नटावल से कठगांव जाने वाली सड़क पर चरकाटोली नदी पुल है. सात साल पहले पुल ध्वस्त हो गया था. जिसे अभी तक नहीं बनाया गया है. न ही घटिया पुल बनाने वाले दोषी ठेकेदार और इंजीनियर पर कार्रवाई हुई. पुल ध्वस्त होने के बाद से जुरमू पंचायत के 20 गांव हर बरसात में टापू में तब्दील हो जाता है. जिसमें कठगांव, बतसपुर, सरईटोली, गनीदरा, पहाडदीना, बैगाटोली, करमटोली, असुरटोली, डुमरटोली, महुआटोली सहित 20 छोटे बड़े गांव है. आबादी करीब पांच हजार के करीब है. इन गांवों में आदिवासी व आदिम जनजाति के लोग रहते हैं. नदी में पुल नहीं होने के कारण बरसात शुरू होने से पहले ग्रामीण तीन महीने का राशन जुगाड़ करके रख लेते हैं.

खटिया से मरीज को पार करना पड़ता है

20 गांव के ग्रामीण को प्रखंड, जिला मुख्यालय, बाजार हाट, स्कूल, अस्पताल आने-जाने के लिए यह एकमात्र रास्ता है. जिसमें कठगांव और नटावल गांव के बीच चरकाटोली नदी पड़ता है. पुल नहीं रहने से गांव तक दो-चार पहिया वाहनों का परिचालन नहीं होता है. बीमार मरीजों को इलाज के लिए खटिया में लाद कर नटावल तक लाते हैं. उसके बाद गाड़ी से मुख्यालय ले जाते हैं. घर में जो राशन व्यवस्था रहता है. उसी के सहारे बरसात के दिन गुजरना पड़ता है. ग्रामीण वर्षों से पुल बनाने की मांग कर रहे हैं. लेकिन, शासन और प्रशासन के लोग इस और ध्यान नहीं दे रहे हैं. जबकि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी पुल सरकारी कार्रवाई पर भी अंगुली उठा रहा है.

ग्रामीणों ने कहा : मुश्किल में जीते हैं

ग्रामीण सुमन कुजूर, शांति एक्का, रवि लकड़ा ने बताया कि बरसात के दिनों में गांव वालों को परेशनियों को सामना करना पड़ता है. नदी में पुल नहीं होने से यह क्षेत्र टापू बन जाता है. सभी विकास कार्य प्रभावित हो जाता है. ग्रामीण अपने गांव में सिमट कर रह जाते हैं. इन गांवों के ग्रामीणों को राशन लेने के लिए चार से पांच किमी नटावल पैदल आना पड़ता है.

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पुल ताश की पत्तों की तरह ढह गया था

चरकाटोली नदी में 12 वर्ष पूर्व ढाई करोड़ रुपये की लागत से पुल बनाया गया था जो वर्ष 2016 में हुई बारिश में पुल का पीलर दब गया. पीलर दबने के बाद उसे बोरा में बालू भरकर पुल को गिरने से रोका गया था. प्रभात खबर ने उस समय आगाह किया था कि बालू भरे बोरा पर टिके पुल को गिरने से बचा लीजिये. परंतु, प्रशासन ने इस और ध्यान नहीं दिया. जिसका नतीजा है. 2016 में जब भारी बारिश हुई, तो बालू भरा बोरा बह गया. जिससे पुल ताश की पत्तों की तरह ढह गया. इसके बाद से उक्त पुल का निर्माण आज तक नहीं किया गया है.

छात्रों ने कहा : स्कूल जाना बंद हो जाता है

छात्रों ने बताया कि बरसात के दिनों में नदी पार होकर नटावल विद्यालय जाते हैं. विद्यालय जाने के लिए यही एक मात्र रास्ता है. नदी में अधिक पानी या बाढ़ रहने पर हमलोग स्कूल नहीं जाते हैं. पानी कम होने पर जान जोखिम में डाल कर नदी पार होकर स्कूल जाते हैं. यह पुल बन जाता तो गांवों का विकास होता. बरसात के दिनों में सबसे बड़ी परेशानी राशन लाने, स्वास्थ्य, शिक्षा, विकास कार्य आदि प्रभावित होता है.

गांवों के विकास के लिए पुल जरूरी : विधायक भूषण तिर्की

गुमला विधायक भूषण तिर्की कहते हैं कि चरकाटोली नदी में जो पुल बना था. वह वर्षों पहले ध्वस्त हो गया था. क्षेत्र दौरा के क्रम में मैं पुल की स्थिति से अवगत हुआ हूं. सरकार से पुल बनाने की मांग करूंगा, ताकि लोगों को आवागमन का लाभ मिल सके. यह पुल गांवों के विकास के लिए बनना जरूरी है.

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