झारखंड : गुमला में आदिम जनजातियों के लिए बनी आवास योजना पर भ्रष्टाचार का ग्रहण, 70% बिरसा आवास अधूरे

गुमला जिले के जंगल एवं पहाड़ों में 3904 आदिम जनजाति परिवार निवास करते हैं, लेकिन इन्हें एक छत नसीब नहीं है. सात साल में 957 बिरसा आवास की स्वीकृति हुई है, पर 70 प्रतिशत आवास अब तक अधूरे हैं. लाभुके के बैंक खाते में आने वाली राशि दलाल डकार जा रहे हैं. डीसी ने मामले की जांच की बात कही है.

By Prabhat Khabar News Desk | June 8, 2023 5:58 AM

गुमला, दुर्जय पासवान : गुमला जिले में आवास योजना (Awas Yojana) में भ्रष्टाचार चरम पर है. आदिम जनजातियों के लिए सरकार ने बिरसा आवास योजना (Birsa Awas Yojana) शुरू की है. आदिम जनजातियों का आवास स्वीकृत होते ही दलाल सीधे लाभुक के घर पहुंच जाते हैं और घर बनवाने के नाम पर पैसे ले लेते हैं. वर्ष 2016 से लेकर 2022 तक 957 बिरसा आवासों को जिले में स्वीकृति दी गयी है, पर इसमें से 70 प्रतिशत आवास अधूरे पड़े हैं.

लाभुक के खाते में राशि जाते ही दलाल होते रेस

कल्याण विभाग, गुमला द्वारा अधिकांश लाभुकों के खाते में पहली, दूसरी व तीसरी किस्त की राशि दे दी गयी है. प्रभात खबर की टीम ने जब इसकी पड़ताल की तो पता चला कि लाभुक के खाते में पैसा जाते ही दलाल ले लेते हैं और उनका घर जैसे-तैसे बनवा देते हैं. कई के आवास अधूरे ही रह जाते हैं. कई लाभुकों का पूरा पैसा दलाल खा जाते हैं. कई बार आदिम जनजातियों ने आइटीडीए विभाग के अधिकारियों से मिल कर आवास बनवाने की मांग की] लेकिन किसी ने उनकी फरियाद नहीं सुनी.

एक घर की लागत 1,31,500 रुपये

एक बिरसा आवास की लागत एक लाख 31 हजार 500 रुपये है. जिसमें प्रथम किस्त में 40 हजार, द्वितीय किस्त में 75 हजार और तृतीय किस्त में 16,500 रुपये का भुगतान लाभुक को किया जाता है. लेकिन, आवास निर्माण का प्रथम व द्वितीय किस्त का पैसा लाभुकों के खाते में जाते ही बैंक से पैसा निकाल कर दलाल ले लेते हैं और भवन अधूरा बना कर छोड़ देते हैं.

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आईटीडीए विभाग के पास डाटा नहीं

आदिम जनजातियों के कल्याण के लिए आईटीडीए विभाग की स्थापना की गयी है. लेकिन, इस विभाग के पास आदिम जनजातियों के लिए संचालित योजनाओं का डाटा नहीं है. बिरसा आवास योजना कितनी स्वीकृत की, इसका डाटा है, लेकिन कितने पूरे हुए और कितने अधूरे हैं, उसका डाटा नहीं है.

इन योजनाओं में भी ठगे जा रहे आदिम जनजाति

बकरी-बकरा वितरण योजना : कागजों में बकरी व बकरा बांट कर आदिम जनजातियों का हक मार लिया गया है.

आवास निर्माण में गड़बड़ी : आदिम जनजातियों के रहने के लिए पक्का आवास बनना था, लेकिन नहीं बने.

आदिम जनजाति के घरों में शौचालय निर्माण : आजादी के 75 वर्ष हो गये, पर अब तक आदिम जनजाति गांवों में शौचालय नहीं है.

मामले की करायेंगे जांच : डीसी

गुमला डीसी सुशांत गौरव ने कहा कि बिरसा आवास में कुछ जगह गड़बड़ी हुई है. इस पर प्रशासन ने कार्रवाई भी की है. अगर कहीं भी कोई शिकायत मिलती है, तो उस पर कार्रवाई की जायेगी.

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