Jharkhand news: गुमला जिला अंतर्गत रायडीह प्रखंड के सिकोई पंचायत स्थित पारासीमा गांव के रिटायर्ड सिपाही 70 वर्षीय सिरिल एक्का 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में शामिल थे. 31 दिसंबर, 1990 को सेवानिवृत्त हुए. तब से वे अपने गांव में खेती-बारी कर रहे हैं. 1971 की जंग के संबंध में सिरिल एक्का बताते हैं कि मेरी बहाली होने के बाद मुझे ट्रेनिंग के लिए दानापुर सेंटर में भेजा गया था. उसी दरमियान 1971 में हमें युद्ध के लिए ले जाया गया. हम युद्ध के लिए ढाका गये. युद्ध के दरमियान बांग्लादेश के कुछ युवक हमारी मदद कर रहे थे. वे दुश्मनों की सूचना व लोकेशन हम तक शेयर करते थे. उन युवकों को मुक्तिबैनी कहा जाता था.
अधिकतर युद्ध रात के अंधेरे में होता था. ग्रामीण क्षेत्रों में युद्ध के दरमियान दिन में सभी सैनिक धान के खेत में छिपे रहते थे और रात में युद्ध होती थी. दोनों ओर से लगातार गोलियां चलती रहती थी. चार से पांच दिन तक लगातार सभी भूखे-प्यासे रहते थे. ग्रामीणों द्वारा काफी मदद मिला. वो हमें भूख मिटाने के लिए मुरही व मूली खाने के लिए लाकर देते थे. मुरही व मूली खाकर हम सभी युद्ध करते रहे.
पाकिस्तानी सैनिक ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों को उठाकर जबरदस्ती ले जाते और उनके साथ बलात्कार करते थे. उसका जवाब हमलोगों ने पाकिस्तान सेना को दिया था. भारत-पाक युद्ध के दौरान एक सूबेदार को गोली लगी और मेरे आंखों के सामने उसने दम तोड़ दिया था.
यह देख मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपना हथियार उठाया और पाकिस्तानी सेना के 10 सैनिको को मार गिराया. उनके हथियार भी जब्त कर लिए थे. पाकिस्तान सेना ने जब सरेंडर किया तो गुफा से 50 लड़कियों को रेस्क्यू किया गया था. कई लड़कियां अर्द्धनग्न, तो कोई गर्भवती थी. इन मुश्किलों के बावजूद 16 दिसंबर 1971 को हम हम विजय हुए.
रिपोर्ट: खुर्शीद आलम, रायडीह, गुमला.