Jharkhand news: गरीबी में जी रहे शहीद तेलंगा खड़िया के वंशज, पत्नी के इलाज के लिए परपोते ने जमीन रखी बंधक
jharkhand news: 9 फरवरी को शहीद तेलंगा खड़िया की जयंती है. शहीद तेलंगा ने अंग्रेजों से लोहा लिया, देश के लिए अपनी जान दी. इसके बावजूद वीर शहीद तेलंगा खड़िया आज भी गुमनाम हैं. वहीं, उनके वशंज गरीबी में जी रहे हैं. परपोता जोगिया खड़िया ने पत्नी की इलाज के 75 हजार रुपये में जमीन बंधक रख दी है.
Jharkhand news: अंग्रेजों से लोहा लिया. देश के लिए अपनी जान दे दी. ऐसे वीर शहीद तेलंगा खड़िया आज भी गुमनाम हैं. परिवार भी गरीबी में जी रहा. गुमला जिले के सिसई प्रखंड स्थित मुरगू गांव में वीर शहीद तेलंगा खड़िया का जन्म हुआ था. लेकिन, तेलंगा के शहीद होने के बाद जमींदारों का अत्याचार बढ़ गया, तो शहीद के वंशज मुरगू गांव से भागकर घाघरा गांव के पहाड़ी इलाका में आकर बस गये. आज शहीद का वंशज सरकारी योजनाओं को तरस रहे हैं.
तेलंगा खड़िया की शहादत को भुलाया नहीं जा सकतादेश के लिए जान देने वाले शहीद तेलंगा खड़िया की वीरता की गाथा आज गुमला तक ही सिमट कर रही गयी है. अंग्रेजों के जुल्मों सितम व जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले वीर शहीद तेलंगा खड़िया की कुरबानी जरूर चंद लोगों के जुबां पर है. लेकिन, उन्होंने जो काम किया है. उसे भुलाया नहीं जा सकता है. मुरगू गांव में ठुइयां खड़िया व पेतो खड़ियाइन के घर में जन्मे तेलंगा खड़िया बचपन से ही हिम्मतगर थे. पढ़ाई-लिखाई में पीछे रहनेवाले तेलंगा अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़कर अपनी एक अलग पहचान बनायेंगे. ऐसा कभी लोगों ने नहीं सोचा था.
तेलंगा खड़िया की शहादत को नहीं भुलाया जा सकता
देश के लिए जान देने वाले शहीद तेलंगा खड़िया की वीरता की गाथा आज गुमला तक ही सिमट कर रही गयी है. अंग्रेजों के जुल्मों सितम व जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले वीर शहीद तेलंगा खड़िया की कुरबानी जरूर चंद लोगों के जुबां पर है. लेकिन, उन्होंने जो काम किया है. उसे भुलाया नहीं जा सकता है. मुरगू गांव में ठुइयां खड़िया व पेतो खड़ियाइन के घर में जन्मे तेलंगा खड़िया बचपन से ही हिम्मतगर थे. पढ़ाई-लिखाई में पीछे रहनेवाले तेलंगा अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़कर अपनी एक अलग पहचान बनायेंगे. ऐसा कभी लोगों ने नहीं सोचा था.
परिजनों के अनुसार, सरकारी सुविधा के नाम पर शहीद आवास मिला है. वह भी अधूरा है. शौचालय बना. वह भी अधूरा है. राशन कार्ड बना, लेकिन राशन लाने के लिए चार किमी पैदल चलना पड़ता है. अभी भी शहीद के वंशज जो वृद्ध हो चुके हैं उन्हें पेंशन नहीं मिलती है. शहीद के किसी भी परिवार को सरकारी नौकरी नहीं मिली है. ना ही बच्चों की पढ़ाई के लिए किसी प्रकार की मदद की गयी है.
युवाकाल से अंग्रेजों के खिलाफ थे तेलंगा9 फरवरी, 1806 ईस्वी को तेलंगा का जन्म हुआ था. तेलंगा बचपन से ही वीर व साहसी थे. कुछ भी बोलने से पीछे नहीं रहते थे. वे बचपन से ही अंग्रेजों के जुल्मों-सितम की कहानी अपने माता-पिता से सुन चुके थे. इसलिए अंग्रेजों को वे फूटी कोड़ी भी देखना पसंद नहीं करते थे. यही वजह है कि वे युवा काल से ही अंग्रेजों के खिलाफ हो गये और लुकछिप कर अंग्रेजों को नुकसान पहुंचाते रहते थे. 40 वर्ष की आयु में तेलंगा की शादी रतनी खड़िया से हुई. तेलंगा का एक पुत्र जोगिया खड़िया हुआ. इस दौरान अंग्रेजों का जुल्म बढ़ गया.
23 अप्रैल, 1880 को शहीदतेलंगा ने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की बिगुल फूंक दी. तेलंगा गांव गांव में घूमकर लोगों को एकजुट करने लगा. इसी दौरान बसिया प्रखंड में जूरी पंचायत के गठन के समय कुछ लोगों के सहयोग से अंग्रेजों ने तेलंगा को पकड़ लिया. दो वर्ष तक तेलंगा जेल में रहे. जेल से छूटने के बाद तेलंगा मुरगू गांव वापस लौटे. मुरगू आने के बाद वे पुन: जमींदारी प्रथा के खिलाफ लोगों को एकित्रत करने लगे. इसी दौरान 23 अप्रैल, 1880 ईस्वी को अंग्रेजों का एक दलाल ने तेलंगा को गोली मार दी. जिससे वो शहीद हो गये.
Also Read: Lata Mangeshkar Death: लता दीदी के साथ गुमला के रिटायर्ड DPRO ने साझा किया था मंच, गाया था यह गाना खड़िया समाज में तेलंगा संवतवीर शहीद तेलंगा की याद में आज भी खड़िया समाज में तेलंगा संवत की प्रथा प्रचिलत है. गुमला शहर से तीन किमी दूर चंदाली में उनका समाधि स्थल बनाया गया है. वहीं, पैतृक गांव मुरगू में तेलंगा की प्रतिमा स्थापित की गयी है. जबकि तेलंगा के वंशज आज भी मुरगू से कुछ दूरी पर स्थित घाघरा गांव में रहते हैं. घाघरा गांव में भी तेलंगा की प्रतिमा स्थापित की गयी है. जहां हर वर्ष नौ फरवरी को मेला लगता है.
शहीद के वंशज उपेक्षित हैंखड़िया जाति के लोग अपने को तेलंगा के वंशज मानते हैं और तेलंगा को ईश्वर की तरह पूजते हैं. लेकिन, सरकार की ओर से शहीद को अभी तक जो सम्मान मिलना चाहिए वह नहीं मिला है. इतिहास की पुस्तकों में जरूरी दो तीन पंक्तियों में शहीद का नाम जुड़ा हुआ है. लेकिन, आज भी वीर शहीद तेलंगा गुमनाम है. आज भी गुमला जिले के खड़िया समुदाय के लोग अपने ईश्वर तुल्य शहीद तेलंगा खड़िया के नाम से एक भव्य छात्रावास बनाने की मांग कर रहे हैं.
शहीद के परपोता जोगिया खड़िया ने कहा कि तेलंगा के वंशज जो घाघरा गांव में निवास करते हैं. इनकी दुर्दशा कुछ खास ठीक नहीं है. आवास मिला है, लेकिन पूर्ण नहीं हुआ है. कई घरों में शौचालय अधूरा है. शहीद के वंशजों को पीने के पानी के लिए भी तरसना पड़ता है. क्योंकि गांव में पेयजल की समुचित व्यवस्था नहीं है. शहीद के वंशज को पेंशन भी नहीं मिलता है. जबकि कई बार प्रशासन से पेंशन की मांग कर चुके हैं. परंतु प्रशासन ध्यान नहीं दी.
Also Read: Jharkhand News: झारखंड के इस गांव के बुजुर्गों व दिव्यांगों को नहीं मिल रही पेंशन, लगाये गंभीर आरोप 16 परिवार मुरगू से भागकर घाघरा गांव में बस गयेशहीद के वंशज सोमरा खड़िया ने कहा कि वीर स्वतंत्रता सेनानी शहीद तेलंगा खड़िया ने देश के लिए अपनी जान दी. परंतु आज शहीद के वंशज अपने हाल पर जी रहे हैं. प्रशासन मदद के लिए आगे नहीं आता है. खड़िया समुदाय के लोग मुरगू गांव में रहते थे. लेकिन, जब तेलंगा ने अंग्रेजों के जुल्मों सितम व जमींदारी प्रथा के खिलाफ आवाज बुलंद किया तो मुरगू क्षेत्र में रहने वाले जमींदारों ने खड़िया समुदाय को गांव से निकाल दिया. तेलंगा सहित खड़िया जाति की जितनी जमीन मुरगू गांव में थी. उसपर मुरगू क्षेत्र के जमींदारों ने कब्जा कर लिया. तेलंगा जब अंग्रेज व जमींदारों के खिलाफ बगावत पर उतरे तो उन्हें जंगलों में शरण लेनी पड़ी. हमारे जितने वंशज थे. वे लोग जमींदारों से डरकर मुरगू से भागकर घाघरा गांव में पहाड़ के किनारे आकर बस गये. तब से तेलंगा के 16 वंशज घाघरा गांव में रह रहे हैं. वंशावली में भी सभी का नाम है. लेकिन सरकार द्वारा अभी तक पांच शहीद व दो पीएम आवास दिया गया है. गांव में रोजगार नहीं रहने के कारण कुछ लोग पलायन कर गये हैं.
वृद्धावस्था पेंशन से भी महरूम शहीद के परिवारसाहब, हम वृद्ध हो गये हैं. फिर भी हमें वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिलती है. क्या शहीद के परिवार को वृद्धावस्था पेंशन देने की कोई व्यवस्था या प्रावधान नहीं है. यह कहना स्वतंत्रता सेनानी शहीद तेलंगा खड़िया के परपोता जोगिया खड़िया की पत्नी पुनी देवी ने कहा कि पेंशन नहीं मिलता. कई बार आवेदन दिया. लेकिन, हर समय अधिकारी वादा कर मुकर गये. कोई नेता भी हमारे गांव नहीं आते हैं. इन लोगों ने कहा कि कम से कम प्रशासन हमें पेंशन तो दिलवा दें. पुनी ने कहा कि अभी खेतीबारी का समय है. सभी लोग खेतीबारी करते हैं. धान की जो उपज होती है. उसे सुखाकर घर के कमरे में रखने के बाद शहीद के अधिकांश वंशज मजदूरी करने के लिए दूसरे राज्य के ईट भट्ठा में पलायन कर जाते हैं. वृद्ध जोगिया ने कहा कि पत्नी पुनी देवी की इलाज के लिए 75 हजार रुपये में एक एकड़ जमीन बंधक रख दी है. जमीन को बंधक से मुक्त कराने के लिए अब दूसरे राज्य में मजदूरी करने जायेंगे. वृद्ध हो गये हैं. लेकिन, अब कोई सहारा भी नहीं है. गांव में भी कोई काम नहीं है.
रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला.