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Durga Puja: नागवंशी राजाओं ने गुमला के पालकोट में की थी दुर्गापूजा की शुरुआत, 257 साल पुराना है इतिहास

गुमला के पालकोट में नागवंशी राजाओं ने दुर्गापूजा की शुरुआत की थी. यहां का इतिहास 257 साल पुराना है. यहां चिंगारियों के बीच शुरू हुई थी मां दुर्गा की पूजा-अर्चना. मां दशभुजी से मांगी मुराद पूरी होती है.

Durga Puja 2022: इतिहास गवाह है. गुमला के नागवंशी राजा अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए देवी-देवताओं की पूजा करते थे. कई ऐसे मंदिर हैं, जो प्राचीन हैं. जहां वर्षों से पूजा होते आ रही है. आज भी श्रद्धा का केंद्र है. इन्हीं में एक है झारखंड प्रदेश के अंतिम छोर पर बसे गुमला जिले में शक्ति स्वरूपा मां दुर्गापूजा. इसका इतिहास काफी प्राचीन है. नागवंशी राजाओं ने जिले के पालकोट प्रखंड में सर्वप्रथम दुर्गापूजा की शुरुआत की थी. नागवंशी राजाओं द्वारा निर्मित मंदिर और मूर्ति आज भी पालकोट में है. आज भी यहां दुर्गापूजा की अपनी महता है.

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मां दशभुजी से मांगी मुराद होती है पूरी

नागवंशी महाराजा यदुनाथ शाह ने 1765 में दुर्गा पूजा की शुरुआत किये थे. यदुनाथ के बाद उनके वंशज विश्वनाथ शाह, उदयनाथ शाह, श्यामसुंदर शाह, बेलीराम शाह, मुनीनाथ शाह, धृतनाथ शाहदेव, देवनाथ शाहदेव, गोविंद शाहदेव और जगरनाथ शाहदेव ने इस परंपरा को बरकरार रखा. उस समय मां दशभुजी मंदिर के समीप भैंस की बली देने की प्रथा थी, लेकिन जब कंदर्पनाथ शाहदेव राजा बने, तो उन्होंने बली प्रथा समाप्त कर दी. दुर्गा पूजा 257 वर्ष पुराना है, लेकिन आज भी पालकोट का दशभुजी मंदिर विश्व विख्यात है. यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. मां दशभुजी से दिल से मांगी गयी मुराद पूरी होती है. दशभुजी मंदिर के समीप घनी आबादी के अलावा समीप में एक प्राचीन तालाब भी है.

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चिंगारियों के बीच शुरू हुई थी मां दुर्गा की पूजा

जब देश गुलाम था. अंग्रेजों की हुकूमत थी. भारतवासी अंग्रेजों के जुल्मों सितम सह रहे थे. ऐसे समय गुमला शहर में दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई. गुमला में दुर्गापूजा मनाने की परंपरा भी अनोखा है. यहां सभी जाति के संगम का मेल है. हिंदू, मुस्लिम, सिक्ख और इसाई. ऐसे इतिहास के पन्नों पर सर्वप्रथम गुमला शहर में बंगाली समुदाय के लोगों ने 1921 में दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी. बंगाली क्लब, जहां आज पक्का मकान और सुंदर कलाकृतियां नजर आती है. उस समय खपड़ानुमा भवन था. 1921 में जब पहली बार पूजा हुआ, तो गुमला ज्यादा विकसित नहीं था. यह बिहार प्रदेश का छोटा गांव हुआ करता था. दृश्य भी उसी तरह था, पर मां दुर्गा की कृपा और लोगों के दृढ़ विश्वास ने कलांतार में गुमला का स्वरूप बदला. आज सिर्फ गुमला शहर में दर्जन भर स्थानों पर दुर्गा पूजा होती है. बंगाली क्लब इस वर्ष दुर्गा पूजा के 100वां वर्ष मनाने जा रहा है. इसलिए इस वर्ष पूजा की उत्साह चरम पर रहेगी.

रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला.

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