जब देश गुलाम था. अंग्रेजों की हुकूमत थी. उस समय स्वर्गीय जतरा टाना भगत की भूमि पर घाघरा प्रखंड में दुर्गा पूजा की शुरुआत की गयी. घाघरा में दुर्गा पूजा का इतिहास 95 साल पुराना है. 1926 में दुर्गापूजा सर्वप्रथम घाघरा के थाना चौक में बंगाली पद्धति से शुरू की गयी थी. घाघरा में उस वक्त थाना प्रभारी अभय बाबू थे, जो कि बंगाल के रहनेवाले थे.
उन्होंने ही दुर्गा पूजा की शुरुआत एक झोपड़ी से शुरू की थी. शुरुआती दौर में जब दुर्गा पूजा का दौर था, तब पूजा में कुल खर्च डेढ़ सौ रुपये आया था. अब वही दुर्गा पूजा में लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं. अखिलेश साहू व संजय सिंह ने बताया की उस समय रांची जाकर मूर्ति लायी गयी थी. आज जिस जगह में झोपड़ी से दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई थी.
वहां पर आज एक भव्य मंदिर बनवा दिया गया है. जहां दुर्गा मां की स्थायी प्रतिमा लगा कर प्राण प्रतिष्ठा भी करायी गयी है. वहीं बदलते समय के साथ साथ दुर्गा पूजा मनाने के लिए लोगों में उत्साह बढ़ता गया और 1993 में चांदनी चौक में भी दुर्गा पूजा की शुरुआत सुलेश्वर साहू के अलावा कई लोगों ने पहल कर की. आज यहां पर लाखों रुपये की लागत से पंडाल बना कर पूजा की जाती है. चांदनी चौक दुर्गा पूजा समिति के लोगों ने बताया कि पूजा को मनाने के लिए छोटे से बड़े सब उत्साहित रहते हैं और सबका सहयोग मिलता है.
दुर्गा पूजा के बाद नवमी की रात में प्रोग्राम होता है. जिसमें प्रखंड क्षेत्र के दूर-दूर से लोग देखने के लिए आते हैं. वहीं आदर में दुर्गापूजा की शुरुआत 1968 में किया गया था. उस समय आदर के मुखिया राजेंद्र प्रसाद व ग्रामीण छकौडी मियां (अब स्वर्गीय), मनराखन ठाकुर ने दुर्गा पूजा की शुरुआत की थी. उस समय दुर्गा पूजा करने में डेढ़ हजार रुपये खर्च आया था. वहीं मां दुर्गा का मूर्ति को लाने के लिए ट्रक में सवार होकर गांव के दर्जनों लोग रांची गये थे.
ट्रक में मां दुर्गा की मूर्ति को आदर लाया गया था. तब गांव के लोग में खासा उत्साह भी देखा गया था. आदर में भी अब उस जगह पर दुर्गा मंदिर बना दिया गया है. दिलचस्प बात यह है कि आदर को जो दुर्गा पूजा के लिए लाइसेंस मिला है. वह 1968 से ही स्वर्गीय छकौड़ी मियां के नाम से बनवाया गया है. यहां पर धार्मिक सदभावना का एक मिशाल भी दिखायी देता है. वहीं प्रखंड क्षेत्र के देवाकी, गम्हरिया, अरंगी, जलका में भी दुर्गा पूजा धूमधाम से की जाती है.