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गुमला में जहां बख्तर साय व मुंडल सिंह ने अंग्रेजों से लड़ते हुए गंवाई थी जान, वह जगह आज भी उपेक्षित

अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान बख्तर व मुंडल ने नवागढ़ क्षेत्र के गुफाओं को अपना घर बनाया. यह गुफा आज भी इस क्षेत्र में साक्षात है. जहां दोनों सेनानी रहते थे. आज वह गुफा जीर्णशीर्ण अवस्था में है.

गुमला, दुर्जय पासवान:

बख्तर साय व मुंडल सिंह का आज शहादत दिवस है. देश की आजादी में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है. ऐसे, गुमला में कई वीर पैदा हुए. जिन्होंने इस्ट इंडिया कंपनी (अंग्रेजों) से लोहा लिया, और अपनी साहस, शक्ति, सूझबूझ से अंग्रेजों को पराजित भी किया. इन्हीं वीर सपूतों में एक हैं गुमला जिला स्थित रायडीह प्रखंड के बख्तर साय व मुंडल सिंह हैं. जिन्होंने न सिर्फ इस्ट इंडिया कंपनी का विरोध किया. बल्कि उन्हें छोटानागपुर क्षेत्र में घुसने का सबक भी सिखाया.

हालांकि, इस लड़ाई में दोनों शहीद हो गये. लेकिन आज भी गुमला जिले में इन दोनों वीर सपूतों को याद किया जाता है. इन दोनों वीरों की वीरता की कहानी आज भी रायडीह प्रखंड के वादियों में गूंजती है और लोगों के जुबान से इन सपूतों का वीरभाव सुनने को मिलता है. इन दोनों ने जिस बहादुरी से अंग्रेजों को खदेड़ा है. यह इस क्षेत्र के लिए गर्व की बात है. आज वे हमारे बीच नहीं है. लेकिन बख्तर साय व मुंडल सिंह की पूजा आज भी गुमला जिले में होती है.

बख्तर व मुंडल ने जिस प्रकार से अंग्रजों का मुकाबला किया उसकी कहानी बेहद दिलचस्प है. इतिहास पर नजर डालेंगे तो हम पायेंगे कि अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान बख्तर व मुंडल ने नवागढ़ क्षेत्र के गुफाओं को अपना घर बनाया. यह गुफा आज भी इस क्षेत्र में साक्षात है. जहां दोनों सेनानी रहते थे. आज वह गुफा जीर्णशीर्ण अवस्था में है. चारों ओर झाड़ी उग आयी है. जिस तालाब का पानी पीते थे, वह आज भी है. इसके अलावा शिवलिंग जहां दोनों पूजा करते थे. वह भी नवागढ़ में है. वीर सेनानियों की यह भूमि आज भी अंग्रेजों के पराजय की कहानी बयां करती है.

बख्तर साय ने हीरा राम का सिर काट कर अंग्रेजों को भेजा था

बख्तर साय नवागढ़ परगना (वर्तमान में रायडीह प्रखंड) के जागीरदार थे. उन्होंने इस्ट इंडिया कंपनी मुकाबला करने के लिए खुली चुनौती दे डाली थी. इस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने जब उनकी चुनौतियों को स्वीकार किया तो बख्तर साय के सामने टिक नहीं सकी और उन्हें हार का सामना करना पड़ा. पराजय के बाद अंग्रेज छोटानागपुर के महाराजा ह्रदयनाथ शाहदेव से संधि किये.

उसके बाद अंग्रेज 12 हजार रुपये टैक्स वसूली करने लगे. उस समय अंग्रेजों ने टैक्स वसूली के लिए कड़ा रूख अपनाया था. इससे जागीरदार व रैयत पैसा दे देकर परेशान हो गये. अंग्रेजों से संधि के बाद महाराजा ह्रदयनाथ शाहदेव ने हीरा राम को टैक्स वसूली के लिए नवागढ़ भेजा. लेकिन बख्तर साय ने हीरा राम का सिर काट कर वापस महाराजा के पास भेज दिया. इससे वे अत्यंत क्रोधित हो गये. उन्होंने इसकी सूचना इस्ट इंडिया कंपनी को दी. 11 फरवरी 1812 को रामगढ़ मजिस्ट्रेट ने लेफ्टीनेंट एचओ डोनेल के नेतृत्व में हजारीबाग के सैन्य टुकड़ी को नवागढ़ के जागीरदार को पकड़ने के लिए भेजा.

इस बीच रामगढ़ बटालियन के कमांडेंट आर गार्ट ने छोटानागपुर के बारवे (वर्तमान में रायडीह, चैनपुर व डुमरी), जशपुर व सरगुजा के राजा को पकड़ने के लिए एक पत्र लिखा. साथ ही पूरे क्षेत्र की नाकाबंदी करने के लिए सहायता मांगी. जशपुर राजा के साथ आर गार्ट का अच्छा संबंध था. इसका फायदा उठाते हुए लेफ्टीनेंट एचओ डोनेल ने हजारों सैनिकों के साथ मिलकर नवागढ़ को घेर लिया. अंग्रेजों के मंसूबों की जानकारी पनारी परगना के जागीरदार मुंडल सिंह को हो गयी थी. वे बख्तर साय की सहायता के लिए नवागढ़ पहुंच गये. दोनों ने मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया.

अंग्रेजों की कूटनीति में दोनों वीर फंस हुए थे शहीद

यहां बता दें कि नवागढ़ 1812 के आसपास घना जंगल था. ऊंचे ऊंचे पहाड़ थे. अंग्रेजों को मुंडल सिंह व बख्तर साय तक पहुंचने में परेशानी होने लगी. अंग्रेजों ने एक विशेष रणनीति के तहत नवागढ़ को चारों ओर से घेर लिया. बख्तर साय व मुंडल सिंह जगह बदल कर आरागढ़ा के गुफा में रहने लगे. अंग्रेजों को जब इसकी जानकारी हुई, तो वे गुफा तक जाने वाली नदी की धारा के पानी को गंदा कर दिया.

जिससे बख्तर साय व मुंडल सिंह अपने सैनिकों के साथ पानी पी न सके. अंग्रेजों की इस कूटनीति चाल के बाद बख्तर व मुंडल जशपुर (छत्तीसगढ़ राज्य) के राजा रणजीत सिंह के पास गये. जहां से दूसरे स्थान पर निकलने के कारण दोनों 23 मार्च 1812 को पकड़े गये. चार अप्रैल 1812 को दोनों को कलकत्ता के फोर्ट विलियम में फांसी की सजा दे दी गयी.

लेकिन उनकी शहादत आज भी रायडीह प्रखंड के वादियों में गूंजता है. हर वर्ष चार अप्रैल को बख्तर साय व मुंडल सिंह की शहादत दिवस गुमला जिले में मनाया जाता है. अंग्रेजों से लड़ते हुए अपनी जान गंवाले वाले बख्तर साय व मुंडल सिंह की धरती आज भी उपेक्षित है.

रूसु भगत को इंदिरा गांधी ने ताम्रपत्र दिया था

धर्मवीर सिंह ने कहा कि रायडीह प्रखंड के रूसु भगत जिन्हें 15 अगस्त 1972 ईस्वी को देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रांची दौरे के क्रम में ताम्रपत्र सौंपा था. अब रूसु भगत का निधन हो गया. लेकिन उनके परिवार के पास आज भी ताम्रपत्र साक्षात है. पालकोट, रायडीह, गुमला व चैनपुर प्रखंड में रौतिया जाति की भारी जनसंख्या है.

वासुदेवकोना गढ़पहाड़ जंगल में लगेगा शहीद मेला

मुंडल सिंह के वंशज महिंद्र सिंह ने बताया कि शहीद बख्तर साय एवं शहीद मुंडल सिंह की शहादत दिवस पर पहली बार मेला लगेगा. वासुदेवकोना गढ़पहाड़ जंगल (कर्मभूमि) में मेला लगाने की तैयारी की गयी है. क्योंकि उस जंगल में दोनों शहीदों की बहुत सारी निशानियां हैं. जिस गुफा में वो रहते थे वह आज भी उसी तरह है. इसके अलावा जिस स्थान पर उन्होंने अंग्रजों को मारा था वह खून तालाब का रुप ले लिया था. इस कारण यह निर्णय लिया गया है कि इस वर्ष चार अप्रैल को शहादत दिवस में लगने वाला मेला वासुदेवकोना गढ़पहाड़ जंगल के किनारे लगेगा. वहीं पूजा अर्चना व माल्यार्पण पतराटोली स्थित प्रतिमा में की जायेगी.

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