गुमला, दुर्जय पासवान. झारखंड में नेतरहाट घाटी शुरू से ही पर्यटकों के अलावा स्थानीय लोगों के लिए जानलेवा साबित होता रहा है. इस रूट से सफर करने वाले लोग कैसे सुरक्षित सफर करें, इसके लिए यहां कोई इंतजाम नजर नहीं आता. अगर हम नेतरहाट घाटी में हुए हादसों पर नजर डालें, तो पायेंगे कि 13 जनवरी की रात एक कार खाई में गिर गयी, जिसमें दो छात्रों की मौत हो गयी. चार छात्र घायल हो गये, जो अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं.
वर्ष 2020 के अगस्त महीने में भी यहां एक बड़ा हादसा हुआ था. नेतरहाट घाटी के लुती मोड़ के पास बॉक्साइट लदा ट्रक खाई में गिर गया था. इसमें पांच ग्रामीणों की मौत हो गयी थी. कई अन्य घायल हो गये थे. इसके अलावा घाटी में हर महीने-दो महीने में हादसा होता ही रहता है. बॉक्साइट लदे ट्रक के अलावा पर्यटकों की गाड़ियां भी खाई में गिरती रहती हैं. इससे जान-माल की क्षति होती है.
नेतरहाट घाटी में जगह-जगह गार्डवाल क्षतिग्रस्त हो गया है. दो साल पहले इसकी मरम्मती हुई थी. कई जगह बारिश के कारण गार्डवाल बह गया, तो कई जगह ट्रकों की ठोकर से गार्डवाल टूट गये. कुछ जगह तो गार्डवाल हैं ही नहीं. बता दें कि नेतरहाट झारखंड की सबसे ऊंची घाटियों में एक है. नेतरहाट सनराइज और सनसेट प्वाइंट है. यही वजह है कि यह विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में एक है.
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झारखंड की राजधानी रांची के अलावा दूसरे राज्यों के पर्यटक गुमला जिला के बिशुनपुर प्रखंड से होकर ही नेतरहाट जाते हैं. साल भर पर्यटक यहां आते हैं. खासकर नवंबर से फरवरी के बीच पर्यटकों की भीड़ रहती है. हर दिन सैकड़ों ट्रक, बस व अन्य गाड़ियां चलती हैं. नेतरहाट घाटी में सड़क दुर्घटनाओं को रोकने की पहल अब तक प्रशासन ने नहीं की है. यह घाटी दो जिलों- गुमला व लातेहार में पड़ता है.
दुर्घटना संभावित स्थलों पर कर्ब साइनेज, ट्री रिफ्लेक्टर, क्रैश बैरियर, बुस कटिंग, रिफ्लेक्टिव मिरर, कैट्स आइबोर्ड एवं कृपया धीरे चलें जैसे बोर्ड की जरूरत है. कुछ गिनी-चुनी जगहों को छोड़ देंगे, तो पायेंगे कि पूरे मार्ग में यह व्यवस्था कहीं नजर नहीं आती. नेतरहाट घाटी में बोर्ड व बैरियर जरूरी हैं. इसके लिए प्रशासन को पहल करनी चाहिए.