Exclusive: गुमला का 350 साल पहले बना धोबी मठ अब बनेगा राष्ट्रीय धरोहर, ASI ने केन्द्र को भेजा प्रस्ताव
Gumla Dhobi Math: गुमला के सिसई नगर में स्थित इस धोबी मठ को राष्ट्रीय धरोहर बनने पर देश-दुनिया से कई शोधकर्ता यहां आकर अपना रिसर्च कर सकेंगे. इससे इतिहास के कई चीजें सामने आएगी.
गुमला के इलाके में 350 साल पहले बना धोबी मठ अब राष्ट्रीय धरोहर बनेगा. ASI यानी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस विरासत को राष्ट्रीय विरासत का दर्जा देने का प्रस्ताव भेजा है. गुमला के नगर सिसई का यह धोबी मठ झारखंड में बने टेराकोटा मंदिरों में से एक है. इसका निर्माण किसने कराया था. यह अभी तक ज्ञात नहीं है, लेकिन मंदिर के स्थापत्य को देखकर आर्कियोलॉजिस्ट्स ने अनुमान लगाया है कि इसे नागवंशी राजाओं ने बनवाया था.
2009 के आस-पास हुई थी पहचान
धोबी मठ की पहचान 2009 के आसपास हुई थी. धोबी मठ मंदिर छोटा है, लेकिन कलात्मक दृष्टिकोण से बड़ा है. पुराने समय में लोग गुफाओं में में रहते थे और अपने हाथों से कुछ चित्र या कोई आर्ट बनाते थे. उनके कलाकृतियों को अगले जनरेशन के लिए संरक्षित करके रखा गया हैं, ताकि इस पर आगे और भी रिसर्च किया जा सके. जैसे – जैसे रिसर्च आगे बढ़ेगा वैसे-वैसे नागवंशियों की और जानकारी सामने आएगी.
सांस्कृतिक पर्यटन का होगा विकास
राष्ट्रीय स्मारक बनने से झारखंड की समाजिक और धार्मिक संस्कृति के नये संदर्भों पर प्रकाश पड़ेगा. अब ये स्थान स्थानीय पर्यटकों, पुरातत्वविदों (आर्कियोलॉजिस्ट) एवं इतिहासकारों के लिए कौतूहल और जिज्ञासा का केंद्र बनेगा.
शोधकर्ताओं के लिए नया द्वार
गुमला के सिसई नगर में स्थित इस धोबी मठ को राष्ट्रीय धरोहर बनने पर देश-दुनिया से कई शोधकर्ता यहां आकर अपना रिसर्च कर सकेंगे. इससे इतिहास के कई चीजें सामने आएगी. इसके साथ ही यह धोबी मठ पर्यटकों का एक नया केंद्र भी बनेगा.
राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया
राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के लिए मूल्यांकन करने में लंबा समय लगता है. इस प्रक्रिया पर कई स्तर पर सत्यापन होता है, जिसमें काफी ज्यादा समय लगता है. इसको लेकर प्रभात खबर से बातचीत करते हुए रांची सर्कल के सुपरिटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट डॉ. राजेंद्र देहुरी ने बताया- “अनुमान है कि इस साल के अंत तक धोबी मठ को एएसआई द्वारा ए़डॉप्ट कर लिया जाएगा. इसके साथ ही इस्को रॉक आर्ट साइट हजारीबाग का प्रपोजल भी भेजा गया है.”
रांची मंडल के अंतर्गत कुल 13 राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक/पुरास्थल
आपको बता दें कि वर्तमान समय में रांची मंडल के अंतर्गत कुल 13 राष्ट्रीय संरक्षित स्मारक/पुरास्थल है जिनकी देखभाल एवं रखरखाव प्राचीन मॉन्यूमेंट्स एवं आर्कियोलॉजिकल साइट्स व ध्वंसावशेष अधिनियम 1958 एंव नियम 1959 के प्रावधानों के अनुसार किया जा रहा है. झारखंड में अब तक 13 ऐसे मॉन्यूमेंट्स हैं, जिसे एएसआई द्वारा संरक्षित किया जा रहा है. इसमें से दो ऐसे मॉन्यूमेंट्स और साइट्स हैं, जिसे बिहार से अलग होने के बाद पहचान की गई है. टेंपल ऑफ हाराडीह की पहचान एएसआई द्वारा जुलाई 2014 में की गई वहीं प्लेस एंड टेंपल कॉम्प्लेक्स ऐट नवरत्नगढ़ की पहचान सितंबर 2019 में की गई.
ये हैं झारखंड के संरक्षित पुरातत्व स्थल
- असुर पुरास्थल हंसा
- हाराडीह मंदिर समूह हाराडीह
- असुर पुरास्थल कठर टोली
- प्राचीन शिव मंदिर खेकपरता
- असुर पुरास्थल खूंटी टोला
- असुर पुरास्थल कुंजला
- असुर पुरास्थल सारिदकेल खूंटी
- संभावित भूमिगत कक्ष एवं सुरंग सह बारादरी अराजी मोखीमपुर
- जामा मस्जिद हदफ
- प्राचीन सरोवर एवं मंदिरों के अवशेष बेनीसागर
- प्राचीन सरोवर एवं मंदिरों के अवशेष बेनीसागर
- कूलूगढा एंव बांसपुट प्राचीन टीले ईटागढ
- राजमहल एवं मंदिर परिसर नवरतनगढ़ (डोइसागढ़)
नहीं हो सकता है संरक्षण का कार्य
आपको जानकारी के लिए बता दें कि जिस जगह को ASI यानी आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा चिह्नित कर लिया जाता हैं, उनके मेंटेनेंस की पूरी जिम्मेदारी सेंटर की होती है. ASI की संरक्षित मॉन्यूमेंट्स/साइट्स के आसपास, कोई कंस्ट्रक्शन का कार्य नहीं किया जा सकता है. ऐसा करने पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है.
धोबी मठ मंदिर छोटा है, लेकिन कलात्मक दृष्टिकोण से बड़ा है. पुराने समय में लोग गुफाओं में रहते थे और अपने हाथों से कुछ चित्र या कोई आर्ट बनाते थे. इसके साथ ही इस्कोरॉकआर्ट में पुराने कई चित्र और कई आर्ट शामिल हैं.
रांची सर्कल के सुपरिटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट डॉ. राजेंद्र देहुरी