देखरेख के अभाव में बेकार हो गया करोड़ों रुपये की लागत से बना गुमला का यह अस्पताल, मरीजों के इलाज की जगह लटका है ताला
Jharkhand news, Gumla news : गुमला जिले में 22 करोड़ रुपये से अधिक की राशि से बने अस्पताल भवन (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं उपकेंद्र) बेकार पड़ा हुआ है. करोड़ों रुपये का भवन तो बनाया, लेकिन इसकी देखरेख की कोई व्यवस्था नहीं है. इस कारण कोई भवन खंडहर हो गया, तो कोई बेकार पड़ा है. नागफेनी में बना भवन तो टूट कर गिर रहा है. कुछ भवनों रात में असामाजिक तत्वों को अड्डा बन जाता है. ये सभी भवन 2-3 साल पहले नया बना था, लेकिन आज तक इसका उपयोग नहीं हुआ. डॉक्टर नहीं बैठते हैं. नर्स भी नहीं बैठती है. देखरेख की कोई व्यवस्था नहीं है. जिस कारण सभी भवन बेकार पड़ा हुआ है.
Jharkhand news, Gumla news : गुमला (दुर्जय पासवान) : गुमला जिले में 22 करोड़ रुपये से अधिक की राशि से बने अस्पताल भवन (प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं उपकेंद्र) बेकार पड़ा हुआ है. करोड़ों रुपये का भवन तो बनाया, लेकिन इसकी देखरेख की कोई व्यवस्था नहीं है. इस कारण कोई भवन खंडहर हो गया, तो कोई बेकार पड़ा है. नागफेनी में बना भवन तो टूट कर गिर रहा है. कुछ भवनों रात में असामाजिक तत्वों को अड्डा बन जाता है. ये सभी भवन 2-3 साल पहले नया बना था, लेकिन आज तक इसका उपयोग नहीं हुआ. डॉक्टर नहीं बैठते हैं. नर्स भी नहीं बैठती है. देखरेख की कोई व्यवस्था नहीं है. जिस कारण सभी भवन बेकार पड़ा हुआ है.
प्रभात खबर ने 20 भवनों की स्थिति की जांच पड़ताल की. पड़ताल में पता चला कि तो भवन बना, लेकिन इसका कभी उपयोग हुआ ही नहीं. भले ही भवन के सामने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं उपकेंद्र लिखा हुआ है, लेकिन स्वास्थ्य से संबंधित कोई काम इन भवनों में नहीं हुआ है.
कई भवनों के खिड़की और दरवाजे तक गायब हो गये हैं. कुछ के गायब होने के कगार पर है. यहां तक की कीमती कई सामग्री भी अस्पताल भवन से गायब हो गया, लेकिन यह अभी तक तय नहीं हो रहा है कि ये भवन किसके लिए और क्यों बना है. इसे कैसे बचाया जाये. कुम्हारी, टुकूटोली जैसे बड़े भवन तो रात में असामाजिक तत्वों का अड्डा बना रहता है. कुम्हारी का आलीशान भवन सड़क किनारे लोगों को चिढ़ा रहा है. यहां से सभी कीमती सामान गायब हो रहे हैं.
डॉक्टर और नर्स की कमी, भवनों के उपयोग कैसे करें?गुमला जिले में करोड़ों रुपये के अस्पताल तो बन गये, लेकिन इसका उपयोग नहीं होने से बेकार पड़ा है. स्वास्थ्य विभाग, गुमला के एक अधिकारी ने बताया कि भवन तो बना दिया गया, लेकिन डॉक्टर और नर्स नहीं दिया. फिर किस स्थिति में अस्पतालों को चालू रखा जाये. यह काम सरकार का है. सरकार भवन बना रही है, तो मेन पावर भी दें. तभी तो भवनों का उपयोग हो सकेगा. इधर, जो भवन बेकार पड़े हैं. इसपर सवाल खड़ा हो रहा है कि इसका उपयोग होगा या नहीं या फिर इसी प्रकार बिना उपयोग के करोड़ों रुपये के भवन खंडहर होकर ध्वस्त हो जायेगा.
3 करोड़ का भवन बेकार पड़ा हैबसिया प्रखंड के कुम्हारी गांव स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का भवन है. अस्पताल मुख्य सड़क के किनारे है. 2 साल पहले यह भवन बनकर तैयार हो गया है, लेकिन दुर्भाग्य है अभी तक इस भवन का कोई उपयोग नहीं हो रहा है. जबकि 2 चुनावों में ये मुद्दा भी बना था. चुनाव खत्म होने के बाद न तो स्थानीय सांसद और न ही स्थानीय विधायक इस अस्पताल को चालू कराने की पहल कर रहे हैं. चुनाव के बाद किसी नेता ने इस अस्पताल की और ध्यान नहीं दिया. अभी स्थिति यह है कि अस्पताल का भवन ठीक है, लेकिन अंदर जीतने भी कीमती सामान थी, सभी की चोरी हो गयी है. अब तो असामाजिक तत्व खिड़की और दरवाजा तक तोड़ कर ले जा रहे हैं. यहां कभी कभार उग्रवादी भी रात में आश्रय लेते हैं.
गुमला जिले के सभी 242 स्वास्थ्य सब सेंटर समस्या से जूझ रही है. कई सेंटर बगैर पानी- बिजली के हैं. अगर कहीं पानी के लिए चापाकल खोदा भी गया है, तो वह बेकार पड़ा है. इसका मुख्य कारण स्थानीय प्रशासन की उपेक्षा है. 100 सब सेंटर ऐसे हैं जो सुनसान जगह पर बना है. जहां किसी प्रकार की सुविधा नहीं है. बिजली गांव तक नहीं गयी है. अगर गयी है तो केंद्र से काफी दूर है. इससे सब सेंटर में काम करने वाली एएनएम और नर्स को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है. रात में अगर किसी रोगी को पानी भी चढ़ाना हो, तो लालटेन से इलाज किया जाता है. पानी के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. 242 में से 120 सेंटर ऐसे हैं, जहां भवन पर काम नहीं हो रहा है. गांव की घनी आबादी के बीच अभी भी भाड़े के मकान में केंद्र संचालित हो रहा है.
कोरोना काल में हो सकता था उपयोगअभी कोरोना वायरस संक्रमण का संकट है. ऐसे में प्रशासन कोरेंटिन सेंटर बना रही है. कई जगह पंचायत भवन, स्कूल भवन, हॉस्टल तो कहीं विज्ञान भवन को सेंटर बनाया गया है. अगर ये सभी अस्पताल भवन अभी चालू स्थिति में रहता, तो प्रशासन को आइसोलेशन सेंटर बनाने में परेशानी नहीं होती. लेकिन, गुमला में जितनी तेजी से भवन बने हैं. उनका उपयोग नहीं होता है और कुछ दिन बाद खंडहर हो तब्दील हो जाता है.
– डुमरी प्रखंड के आकासी गांव में 2017 में 40 लाख रुपये की लागत से और दीना गांव में 2013 में 22.50 लाख से भवन बन कर तैयार है, लेकिन आज तक बेकार पड़ा है.
– सिसई प्रखंड के पंडरानी में 2019 में 2 करोड़, पुसो में 2018 में 3 करोड़, लोहंजारा गांव में 2013 में 22 लाख और गम्हरिया में 2018 में 22 लाख रुपये से बना भवन बेकार है.
– भरनो प्रखंड के रायकेरा गांव में 2011 में 30 लाख रुपये से बना भवन बेकार पड़ा है. अस्पताल को हैंड ओवर नहीं किया गया है.
– पालकोट प्रखंड के टुकूटोली गांव में 2015 में 1.50 करोड़ रुपये से बना भवन बेकार पड़ा है. अब खंडहर हो रहा है.
– घाघरा प्रखंड के पुटो में 2009 में 60 लाख रुपये और बेलागढ़ा गांव में 2016 में 40 लाख रुपये से बना भवन बेकार पड़ा हुआ है.
– बसिया प्रखंड के कुम्हारी सूरजपुर मोड़ के समीप 2018 में 3 करोड़ और कुम्हारी खास में 2012 में 15 लाख से बना भवन बेकार है.
– नागफेनी गांव में वर्ष 2011 में 61 लाख 17 हजार रुपये की लागत से बना भवन बेकार पड़ा है. अब यह खंडहर हो गया है.
– अलबर्ट एक्का जारी प्रखंड में वर्ष 2011 में 5 करोड़ रुपये की लागत से भवन बनना शुरू हुआ था. अधूरा काम कर छोड़ दिया गया.
– रायडीह प्रखंड के कोंडरा में 3 करोड़, परसा में 25 लाख, टुडूरमा में 25 लाख, लौकी में 25 लाख, जरजटटा में 25 लाख और ऊपरखटंगा में 25 लाख रुपये से बना भवन बेकार है.
Posted By : Samir Ranjan.