गुमला के 18 मजदूरों के साथ तेलंगाना में बदसलूकी की गयी. वे लोग गुमला वापस आना चाहते हैं. परंतु कोई मदद नहीं कर रहा है. पुलिस से मदद मांगने थाने पहुंचे तो वहां से भगा दिया गया. गांव वाले रहने नहीं दे रहे हैं. ऐसे में जब कोई चारा नहीं बचा तो वे मजदूर पैदल ही वहां से गुमला के लिए निकल पड़े. पूरा मामला क्या है, पढ़ें, गुमला से दुर्जय पासवान की रिपोर्ट…
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घर वापस आने के लिए गुमला के 18 मजदूर तेलंगाना के इटुनगरम थाना में मदद मांगने पहुंचे थे. ताकि पुलिस द्वारा बस की व्यवस्था कर उन सभी को गुमला भेजा जा सके. परंतु थाना पहुंचते ही पुलिस के जवानों ने मजदूरों को भगा दिया. थाना में घुसने तक नहीं दिया. थाना के बाहर से ही भगाये जाने के बाद मजदूर इटुनगरम के एक गांव में रात्रि विश्राम के लिए रूके थे. परंतु गांव के लोगों ने मजदूरों को कोरोना संक्रमण फैलने के डर से रूकने नहीं दिया.
शनिवार की पूरी रात मजदूरों ने सड़क के किनारे जंगल में गुजारे और रविवार की सुबह ही पैदल गुमला के लिए निकल पड़े हैं. रास्ते में किस प्रकार संकट झेल रहे हैं. इस संबंध में मजदूरों ने वीडियो भेजकर अपनी पीड़ा बताते हुए झारखंड सरकार से मदद मांगी है. मजदूरों ने प्रभात खबर गुमला में कॉल कर अपनी समस्याओं की जानकारी दी है. साथ ही मजदूरों की बातों को सरकार व गुमला प्रशासन तक पहुंचाने की मांग की है.
मजदूर मकसूदन सिंह ने कहा कि 18 मजदूर तेलंगाना में फंसे हुए हैं. हमलोग सिसई और रकमसेरा गांव के रहने वाले हैं. तेलंगाना में जहां काम करते थे. वहां से कंपनी के मालिक ने कोरोना के डर से निकाल दिया. इसके बाद हमलोग 40 किमी पैदल चल चुके हैं. जहां भी मदद के लिए जा रहे हैं. कोरोना के डर से कोई मदद करने के लिए आगे नहीं आ रहा है. अब झारखंड सरकार व गुमला प्रशासन से मदद की उम्मीद है.
मजदूरों ने यह भी कहा कि लॉकडाउन के कारण मजदूरी का पैसा खत्म हो गया. तीन दिन का जुगाड़ है. अगर तीन दिन के अंदर मदद नहीं मिली तो भूखे रहना पड़ेगा. ऐसा पहला मामला नहीं है जब मजदूरों की कहीं से मदद नहीं मिली और वे पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़े. रेलवे ट्रैक पर और सड़कों पर ऐसे मजदूर दुर्घटना के शिकार भी हो चुके हैं. हांलाकि झारखंड सरकार ने पहले ही कहा है कि कोई भी मजदूर पैदल घर की ओर नहीं जायेगा, सरकार उनकी मदद करेगी.
Posted By: Amlesh Nandan Sinha.