डुमरी प्रखंड में ढिबरी युग में जी रहे कोरवा जनजाति के लोग, न बिजली, पानी, सड़क और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं
परंतु बिजली नहीं है. ग्रामीण ढिबरी युग में जी रहे हैं. साफ पानी पीने के लिए सोलर जलमीनार व चापाकल भी नहीं है. पानी के लिए दो किमी दूरी तय करनी पड़ती है. पहाड़ की तलहटी पर पझरा में पानी जमा होता है. उसी पानी को कोरवा जनजाति के लोग पीते हैं. बरसात के दिनों में बस्ती व डाड़ी के आसपास पानी का जमाव हो जाता है. जिससे बीमारी होने की आशंका बनी रहती है.
डुमरी : डुमरी प्रखंड के करनी पंचायत में मिरचाईपाठ गांव है. इस गांव में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव है. गांव में बिजली, पानी, सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य, आंगनबाड़ी भवन नहीं है. गांव में 30 घर हैं. जिसमें कोरवा जनजाति के 14 परिवार, यादव के 10 परिवार व मुंडा जाति के छह परिवार रहते हैं. गांव की आबादी 160 है. गांव के मुन्ना यादव, दिलमन मुंडा, अशोक यादव, लौवा कोरवा ने बताया कि हमारा गांव झारखंड व छत्तीसगढ़ राज्य की सीमा पर बसा है.
परंतु बिजली नहीं है. ग्रामीण ढिबरी युग में जी रहे हैं. साफ पानी पीने के लिए सोलर जलमीनार व चापाकल भी नहीं है. पानी के लिए दो किमी दूरी तय करनी पड़ती है. पहाड़ की तलहटी पर पझरा में पानी जमा होता है. उसी पानी को कोरवा जनजाति के लोग पीते हैं. बरसात के दिनों में बस्ती व डाड़ी के आसपास पानी का जमाव हो जाता है. जिससे बीमारी होने की आशंका बनी रहती है.
वनोत्पाद बेचकर जीवन जी रहे हैं
गांव में शिक्षा के लिए स्कूल व आंगनबाड़ी केंद्र भवन नहीं है. स्वास्थ्य सेवा का अभाव है. बीमार होने पर मरीजों को इलाज के लिए जशपुर ले जाते हैं या पहाड़ी रास्तों से गेरूवा में ढोकर सीएचसी डुमरी लेकर जाते हैं. ग्रामीणों का मुख्य रोजगार खेतीबारी है. पहाड़ी क्षेत्र में होने से मकई, मडुआ, गोंदली की खेती करते हैं.
आदिम जनजाति लोग दतून, पतई और वनोत्पाद बेचकर जीवन यापन करते हैं. शिक्षा व रोजगार के लिए युवा बाहर जाते हैं. राशन लेने के लिए पांच किमी दूर बस्ती से जंगल पहाड़ के बीच पगडंडी रास्ते से होकर कड़रवानी गांव जाना पड़ता हैं. इतनी दूर से कुछ लोग राशन घोड़े में लादकर लाते हैं. तो कुछ लोग अपने कंधे में ढोकर लेकर आते हैं.