स्कूल की छत ने गिर जाये, इसलिए गांव के बच्चे खुले आसमान के नीचे बैठ कर पढ़ते हैं. अगर तेज धूप हो या फिर बरसात का मौसम, तो स्कूल के बरामदे में जान हथेली पर रख कर बैठते हैं. यह कहानी गुमला से 26 किमी दूर कुटवां गांव के शिक्षा के मंदिर की है. गांव के राजकीयकृत उत्क्रमित मवि कुटवां का भवन जर्जर हो गया है. छत का प्लास्टर टूट कर गिर रहा है. दीवार भी कमजोर हो गयी है. कई बार तो स्कूल की छत का प्लास्टर टूट कर गिर चुका है, जिसमें बच्चे घायल भी हुए हैं.
परंतु, शिक्षा विभाग भवन की मरम्मत या फिर नया भवन बनाने की पहल नहीं कर रहा है. कुटवां गांव रांची विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एनएन भगत का पैतृक गांव है. यहां के लोग शिक्षा को अधिक महत्व देते हैं, परंतु, बच्चों की पढ़ाई में जर्जर भवन बाधा बन रही है. स्कूल के एचएम व ग्राम शिक्षा समिति ने कई बार शिक्षा विभाग को आवेदन देकर भवन की मरम्मत कराने की मांग की है.
नर्सरी से कक्षा आठ तक होती है पढ़ाई: कुटवां स्कूल 1952 से चल रहा है. उस समय गांव के बगीचा में पेड़ के नीचे स्कूल चलता था. 10 से 12 बच्चे पढ़ने आते थे. इसके बाद 1993 में दो कमरों का स्कूल भवन बना. धीरे-धीरे छात्रों की संख्या बढ़ते गयी. भवन भी बने. हालांकि 1993 में बना भवन ध्वस्त हो गया. इसके बाद अलग-अलग वर्षों में आठ कमरे बने, परंतु, अब ये भवन भी जर्जर हो गये हैं. कुटवां स्कूल, जहां 2002 में मात्र 75 बच्चे थे.
आज (2022) स्कूल में 240 बच्चे हैं. सरकार की नजर में यह विशेष स्कूल है. क्योंकि यहां नर्सरी की भी पढ़ाई शुरू की गयी है. नर्सरी से लेकर कक्षा आठ तक पढ़ाई होती है. यहां 240 छात्रों में से 98 बच्चे कमजोर हैं. इन 98 बच्चों को दूसरों बच्चों की तरह पढ़ाई में मजबूत करने के लिए अलग से पढ़ाया जा रहा है.
स्कूल भवन जर्जर हो गया है. कई बार इसकी मरम्मत या फिर नये सिरे से बनाने की मांग की गयी, परंतु, अबतक प्रशासन द्वारा किसी प्रकार की पहल नहीं की गयी. वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव को भी आवेदन सौंप कर बनाने की मांग की है.
राजेश साहू, उपाध्यक्ष, ग्राम शिक्षा समिति