गुमला, दुर्जय पासवान : गुमला के कचहरी परिसर में 1902 ईस्वी में बने पुराने अनुमंडल कार्यालय के संरक्षण की जरूरत है. यह भवन अभी भी मजबूत है. चूंकि पत्थर से बना हुआ है. लेकिन, मरम्मत और रंग रोगन नहीं होने के कारण यह भवन जर्जर दिखने लगा है. यह अपने आपमें गुमला के लिए धरोहर है. क्योंकि 121 साल पहले इस भवन का निर्माण हुआ था और आज भी मजबूती के साथ अपने पैरों पर खड़ा है. कुछ बहुत मरम्मत का काम होने से यह भवन सुंदर दिखने लगेगा.
अब भी कई सरकार विभाग यहां है कार्यरत
अंग्रेजों ने सबसे पहले गुमला में अनुमंडल कार्यालय की स्थापना की थी. 1902 में गुमला जिला, अनुमंडल हुआ करता था. अनुमंडल कार्यालय का भवन आज भी साक्षात और मजबूती के साथ खड़ा है. जबकि इस भवन की उम्र 121 साल हो गयी है. इसके बाद भी इसकी मजबूती देखती बनती है. हालांकि, 2020 में इस पुराने भवन को तोड़ने के लिए भवन प्रमंडल विभाग, गुमला ने योजना बनायी थी. अंग्रेज जमाने में बनीं इस भवन को तोड़कर इसके स्थान पर छह करोड़ रुपये की लागत से जी प्लस-टू भवन का निर्माण करने की योजना थी. लेकिन भवन को धरोहर के रूप में सुरक्षित रखने की मांग उठने के बाद यहां जी प्लस-टू भवन का निर्माण रुक गया है. अभी भी इस पुराने अनुमंडल कार्यालय के भवन में कई सरकारी विभागों के कार्यालय संचालित है.
अनुमंडल भवन के बनने का इतिहास
गुमला जिला, बिहार सरकार की अधिसूचना दिनांक 16 मई 1983 के द्वारा रांची जिले से काटकर बनाया गया था. स्वाभाविक रूप से इसका रिकॉर्ड इतिहास अधिसूचना से पहले रांची जिले के भीतर निहित है. 1899 में गुमला जिला का नाम लोहरदगा से रांची तक बदल दिया गया था. प्राचीन काल में पड़ोसी पश्चिम मार्ग के साथ जिले का क्षेत्र मुंडा और उरांव के निर्विवाद कब्जे में था. आर्यों के समय क्षेत्र को झारखंड या वन क्षेत्र के रूप में जाना जाता था. संभवत: यह क्षेत्र अशोक (273-232 बीसी) के शासनकाल के दौरान मगध साम्राज्य के अधीन आया था. अंग्रेज जमाने में लोहरदगा के अंतर्गत गुमला आता था. बाद में गुमला अलग अनुमंडल बना. इसके बाद इसे 1983 में जिला का दर्जा दिया गया. कहा जाता है कि जब इस क्षेत्र में अंग्रेजों का शासन था. उसी समय 1902 ईस्वी में अंग्रेजों ने गुमला में अनुमंडल भवन का निर्माण कराया था.
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बिना पीलर दिये बना था भवन
पुराने अनुमंडल कार्यालय का भवन बिना पीलर दिये बनाया गया था. बताया जाता है कि अंग्रेजों ने अपने कुशल कारीगरों के माध्यम से इस भवन का निर्माण कराया है. यहां पत्थर का ज्यादा उपयोग हुआ है. भवन के सामने में अंग्रेज जमाने का डिजाइन दिया गया है. 20 पीलर में यह खड़ा जरूर नजर आता है. लेकिन जो पीलर है. वह दरअसर एक पत्थर के ऊपर दूसरे पत्थर को रखकर बनाया गया है. साथ ही छत पर मोटे लोहे को रखकर छत बनाया गया है. जमीन व सीढ़ी में भी चिकना पत्थर रखा गया है. यही वजह है कि यह भवन 121 साल पुराना होने के बाद भी अभी तक मजबूत नजर आता है.