Hanuman Jayanti 2021 : गुमला के आंजनधाम में जन्मे थे हनुमान, पंपापुर सरोवर में राम और लक्ष्मण ने किये थे स्नान, जानें यहां की महत्ता

Hanuman Jayanti 2021, Jharkhand News (गुमला) : 27 अप्रैल, 2021 (मंगलवार) को हनुमान जयंती है. श्रीराम भक्त हनुमान का जन्म झारखंड के उग्रवाद प्रभावित गुमला जिले से 21 किमी दूर आंजनधाम में हुआ था. गुमला से 20 किमी दूर आंजन गांव है, जो जंगल व पहाड़ों से घिरा है. आंजन एक अति प्राचीन धार्मिक स्थल है. यहीं पहाड़ की चोटी स्थित गुफा में माता अंजनी के गर्भ से भगवान हनुमान का जन्म हुआ था. जहां आज अंजनी माता की प्रस्तर मूर्ति विद्यमान है. अंजनी माता जिस गुफा में रहा करती थीं. उसका प्रवेश द्वार एक विशाल पत्थर की चट्टान से बंद था. जिसे एक साल पहले खुदाई कर खोला गया है. कहा जाता है कि गुफा की लंबाई 1500 फीट से अधिक है. इसी गुफा से माता अंजनी खटवा नदी तक जाती थीं और स्नान कर लौट आती थीं. खटवा नदी में एक अंधेरी सुरंग है, जो आंजन गुफा तक ले जाता है. लेकिन, किसी का साहस नहीं होता है कि इस सुरंग से आगे बढ़ा जाये क्योंकि काफी दुर्गम गुफा है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 27, 2021 1:19 PM
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Hanuman Jayanti 2021, Jharkhand News ( दुर्जय पासवान, गुमला) : 27 अप्रैल, 2021 (मंगलवार) को हनुमान जयंती है. श्रीराम भक्त हनुमान का जन्म झारखंड के उग्रवाद प्रभावित गुमला जिले से 21 किमी दूर आंजनधाम में हुआ था. आंजन में ही भगवान हनुमान जन्मे हैं. इसके कई प्रमाण गुमला जिला में है. भगवान हनुमान के जन्मस्थली के अलावा गुमला जिले के पालकोट प्रखंड में बालि व सुग्रीव का भी राज्य था. यहां तक की शबरी आश्रम भी यहीं है. जहां माता शबरी ने भगवान राम व लक्ष्मण को जूठे बेर खिलायी थी. पंपापुर सरोवर भी यहीं है. जहां भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ रूक कर स्नान किये थे.

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आंजन गुफा में जन्मे थे हनुमान

गुमला से 20 किमी दूर आंजन गांव है, जो जंगल व पहाड़ों से घिरा है. आंजन एक अति प्राचीन धार्मिक स्थल है. यहीं पहाड़ की चोटी स्थित गुफा में माता अंजनी के गर्भ से भगवान हनुमान का जन्म हुआ था. जहां आज अंजनी माता की प्रस्तर मूर्ति विद्यमान है. अंजनी माता जिस गुफा में रहा करती थीं. उसका प्रवेश द्वार एक विशाल पत्थर की चट्टान से बंद था. जिसे एक साल पहले खुदाई कर खोला गया है. कहा जाता है कि गुफा की लंबाई 1500 फीट से अधिक है. इसी गुफा से माता अंजनी खटवा नदी तक जाती थीं और स्नान कर लौट आती थीं. खटवा नदी में एक अंधेरी सुरंग है, जो आंजन गुफा तक ले जाता है. लेकिन, किसी का साहस नहीं होता है कि इस सुरंग से आगे बढ़ा जाये क्योंकि काफी दुर्गम गुफा है.

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जनश्रुति के अनुसार, एक बार कुछ लोगों ने माता अंजनी को प्रसन्न करने के मकसद से अंजनी की गुफा के समक्ष बकरे की बलि दे दी. जिससे माता अप्रसन्न होकर गुफा के द्वार को हमेशा के लिए चट्टान से बंद कर ली थी. लेकिन अब गुफा खुलने से श्रद्धालुओं के लिए यह मुख्य दर्शनीय स्थल बन गया है.

आंजन में है प्राचीन सप्त जनाश्रम

जनश्रुति के अनुसार, आंजन पहाड़ पर रामायण युगीन ऋषिमुनियों ने जन कोलाहल से दूर शांति की खोज में आये थे. यहां ऋषिमुनियों ने सप्त जनाश्रम स्थापित किया था. यहां सभी आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध थीं. इसलिए जनाश्रम स्थापित किया गया. यहां 7 जनजातियां निवास करतीं थीं. इनमें शबर, वानर, निषाद्, गृद्ध, नाग, किन्नर व राक्षस थे. आश्रम के प्रभारी को कुलपति कहा जाता था. कुलपतियों में अगस्त्य, अगस्त्यभ्राता, सुतीक्ष्ण, मांडकणि, अत्रि, शरभंग व मतंग थे. छोटानागपुर में दो स्थानों पर आश्रम है. इनमें आंजन व टांगीनाथ धाम है.

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आंजन में शिव की पूजा की परंपरा प्राचीन है. अंजनी माता प्रत्येक दिन एक तालाब में स्नान कर शिवलिंग की पूजा करती थी. यहां 360 शिवलिंग व उतने ही तालाब होने की संभावना है. अंजनी माता गुफा से निकलकर प्रत्येक दिन एक शिवलिंग की पूजा करती थी. अभी भी उस जमाने के 100 से अधिक शिवलिंग व दर्जनों तालाब साक्षात उपलब्ध है.

चक्रधारी मंदिर की तरह अति प्राचीन नकटी देवी की मंदिर

आंजन में नकटी देवी नामक देवी स्थान है. यह चक्रधारी मंदिर की तरह अति प्राचीन है. अंजनी माता के मंदिर के नीचे सर्प गुफा है, जो काफी प्राचीन है. अंजनी माता के दर्शन के बाद लोग सर्प गुफा का दर्शन करते हैं. गुफा में मिट्टी का एक टीला है. वहीं, सांप को देखा जाता है. लोगों का मानना है कि यह नागदेव हैं.

माता अंजनी का कोषागार भी है

आंजन गुफा से सटा एक पहाड़ है. जिसे धमधमिया पहाड़ कहा जाता है. इस पहाड़ का आकार बैल की तरह है. इसमें चलने से एक स्थान पर धमधम की आवाज होती है. कहा जाता है कि माता अंजनी का यह कोषागार था. जहां बहुमूल्य वस्तुएं माता रखती थीं.

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रामायण काल में किश्किंधा वानर राजा बलि का राज्य था. यह आज भी पंपापुर (अब पालकोट प्रखंड) में विद्यमान है. किश्किंधा ऋष्यमुख पर्वत है, जो पालकोट प्रखंड के उमड़ा गांव के समीप है. बालि ने अपने भाई सुग्रीव को किश्किंधा से मारकर भागा दिया था. इसके बाद बालि यहां हनुमान व अन्य वानरों के साथ रहने लगा था.

पंपापुर स्थित गुफा में सुग्रीव छिपे थे

किश्किंधा (उमड़ा गांव) से कुछ दूरी पर एक गुफा है. जब बालि ने सुग्रीव को भागा दिया, तो सुग्रीव उसी गुफा में आकर छिप गया. आज भी यह गुफा साक्षात है और इसे सुग्रीव गुफा कहा जाता है. सुग्रीव ने गुफा के अंदर अपने आवश्यक सभी वस्तुएं उपलब्ध करायी थी. गुफा के अंदर उस जमाने का बनाया गया जलकुंड भी है. वहां गुफा से दूसरे छोर पर एक सुरंग है.

राम व लक्ष्मण रुके थे पंपापुर में

वृद्ध अजीत कुमार विश्वकर्मा के मुताबिक, जनश्रुति व पूर्वजों ने जो बताया है उसके अनुसार सुग्रीव गुफा के समीप ही पंपापुर नामक स्थान है. यहां सरोवर भी है. रावण द्वारा माता सीता का हरण करने के बाद राम व लक्ष्मण इसी स्थान पर आकर रुके थे. यहीं पास में राम व लक्ष्मण की मुलाकात सुग्रीव से हुआ था. सुग्रीव ने भगवान राम को अपनी पूरी कहानी सुनायी. इसके बाद राम के कहने पर सुग्रीव ने बालि को ललकारा और राम ने छिपकर बालि को तीर मार दिया. जिससे वह मर गया. तब लक्ष्मण द्वारा सुग्रीव का अभिषेक कराया गया.

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पालकोट प्रखंड के पंपापुर पहाड़ में शबरी आश्रम भी है. सीता की खोज करते हुए राम व लक्ष्मण शबरी की कुटिया में आये थे. तब शबरी ने बेर खिलाकर उनका आदर सत्कार किया था. आज भी शबरी आश्रम यहां है.

Posted By : Samir Ranjan.

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