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Happy Holi 2021 : बिल्कुल अलग तरीके से होली खेलते है आदिम जनजाति के लोग, होली से पूर्व करते हैं शिकार, जानें उसके पीछे की मान्यताएं

समय के साथ सब कुछ बदल रहा है. लेकिन आज भी झारखंड राज्य में निवास करने वाले आदिम जनजाति इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. आदिम जनजाति के लोग दिन भर जंगल में शिकार करते हैं और शाम को थकावट दूर करने के लिए नाच गान के साथ खाना पीना करते हैं.

Jharkhand News, Gumla News In Hindi, holi of primitive tribes गुमला : रंगों के पर्व होली को पहाड़ व जंगलों में निवास करने वाली विलुप्त प्राय: आदिम जनजाति के लोग अलग अंदाज में मनाते हैं. जिसे जान कर आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे. ठीक होली के एक दिन पहले आदिम जनजातियों में शिकार (जंगल में घूम कर बंदर, खरगोश, सूकर, सियार व भेड़िया का शिकार) करने की परंपरा है. यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है.

समय के साथ सब कुछ बदल रहा है. लेकिन आज भी झारखंड राज्य में निवास करने वाले आदिम जनजाति इस परंपरा को जीवित रखे हुए हैं. आदिम जनजाति के लोग दिन भर जंगल में शिकार करते हैं और शाम को थकावट दूर करने के लिए नाच गान के साथ खाना पीना करते हैं.

बिरहोर व कोरवा जाति के लोग दिन में शिकार व रात में जश्न मनाते हैं :

बिरहोर व कोरवा ये दोनों जनजातियां विलुप्त प्राय: है. लेकिन हमारे गुमला जिले में इनकी संख्या है, जो आज भी जंगल व पहाड़ों के बीच रहते हैं. होली के एक दिन पहले ये लोग तीर धनुष लेकर घने जंगल में शिकार करते हैं. इनका शिकार मुख्यत: बंदर व खरगोश होता है. दूर से ही निशाना साध कर बंदर या खरगोश को मार गिराते हैं.

इसके बाद देर शाम को गांव लौट कर सभी लोग शिकार किये गये जानवर को बनाकर खाते हैं. शिकार से दिनभर की थकावट को दूर करने के लिए रात को नाच-गान भी होता है. इसमें हर उम्र के लोग भाग लेते हैं. होली पर्व के दिन दोबारा ये लोग एक स्थान पर जुट कर सामूहिक रूप से खाते-पीते व नाचते-गाते हैं.

बिरहोर जाति जिस पेड़ को छू लें, उसमें बंदर नहीं चढ़ता :

कहा जाता है कि बिरहोर जाति के लोग शिकार के दौरान जिस पेड़ को छू लेते हैं. उसमें बंदर नहीं चढ़ता है. विमलचंद्र ने बताया कि अभी तक यह पता नहीं चला है कि आखिर बिरहोर जाति द्वारा छुए गये पेड़ में बंदर क्यों नहीं चढ़ता है. लेकिन पूर्वज कहते हैं कि बंदरों में गंध पहचानने की शक्ति है.

बिरहोर जाति के लोग जिस पेड़ को छूते हैं. उसमें कुछ अलग किस्म का गंध होता है. जिससे सिर्फ बंदर समझ पाते हैं. बंदरों को अहसास हो जाता है कि यहां शिकारी आये हैं. इसलिए वे सुरक्षा के दृष्टिकोण से उस पेड़ में नहीं चढ़ते हैं. यही वजह है, होली में जब बिरहोर के लोग शिकार करने निकलते हैं तो बंदर उनके निशाने में नहीं आते हैं.

असुर जाति में महिलाएं भी शिकार करती हैं :

असुर जनजाति भी जंगल व पहाड़ी क्षेत्र के गांवों में निवास करता है. इस जाति में महिला व पुरुष दोनों शिकार करते हैं. लेकिन इनमें शिकार करने के अलग अलग कायदे कानून हैं. पुरुष वर्ग जंगल में जाकर जंगली सूकर, सियार या फिर भेड़िया का शिकार करते हैं.

इसके लिए 15 दिन पहले से तीर धनुष बनाना शुरू हो जाता है. वहीं महिलाएं तालाब, नदी व डैम में मछली मारती हैं. दिन में इनका पूरा समय घर व गांव से बाहर ही गुजरता है. ये लोग शाम को घर आती हैं और खाना पीना करती हैं. थकावट दूर करने के लिए ये लोग भी नाच गान करती हैं.

Posted By : Sameer Oraon

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