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आदिम जनजातियों में आज भी जीवित है डोल जतरा की परंपरा, होली से शुरू होकर 3 दिन चलता है उत्सव

Holi in Tribes: होली का त्योहार देश भर में मनाया जाता है. रंगों के इस उत्सव को आदिम जनजातियां अपने अलग अंदाज में मनाती हैं. असुर जनजाति के लोग इस दौरान क्या करते हैं, जानने के लिए पढ़ें.

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Holi in Tribes| गुमला, दुर्जय पासवान : दक्षिणी छोटानागपुर का गुमला जिला जंगल और पहाड़ों से घिरा है. गुमला में कई परंपराएं अब विलुप्त हो रही हैं. हालांकि, आदिम जनजातियों की परंपराएं आज भी जीवित हैं. सबसे खुशी की बात यह है कि परंपराओं को जीवित रखने में आदिम जनजाति के युवक-युवतियों ने अहम भूमिका निभायी है. आज भी पढ़े-लिखे युवा अपने पूर्वजों से सुनी कहानियों और संस्कृति के आधार पर प्राचीन परंपरा को बचाये रखा है. हर साल उस परंपरा को उत्सव के रूप में मनाते हैं. इन्हीं परंपराओं में एक है- डोल जतरा.

होली से शुरू होकर 3 दिन तक चलता है डोल जतरा

डोल जतरा होली पर्व के दिन शुरू होता है. यह 3 दिन तक चलता है. डोल जतरा का उत्साह आदिम जनजातियों में देखते ही बनता है. बिशुनपुर प्रखंड के पठारी इलाके के पोलपोल पाट में हर साल डोल जतरा का आयोजन किया जाता है. इस बार 15, 16 और 17 मार्च को पोलपोल पाट में असुर जनजाति के लोगों ने डोल जतरा का आयोजन किया है.

असुर जनजाति के गांवों एक सप्ताह पहले से दिखने लगता है उत्साह

असुर जनजाति के गांवों में डोल जतरा का उत्साह एक सप्ताह पहले से देखा जा रहा है. डोल जतरा की तैयारी की खुशी में आदिम जनजातियों में नये परिधान पहनने की परंपरा है. समय बदला है, तो पारंपरिक परिधान की जगह नये परिधान ने ले ली है. नये युग के कपड़े, फैशनेबल कपड़े आदिम जनजाति के युवा पहनने लगे हैं.डोल जतरा में पूजा, पाठ की जो पद्धति है, वह आज भी पुरानी है.

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पारंपरिक खान-पान होता है आकर्षण

बिशुनपुर के राजू असुर, शांति असुर, कविता असुर कहते हैं कि समय के साथ-साथ परंपरा, संस्कृति, रहन-सहन, खान-पान और वेश-भूषा में बदलाव आया है, लेकिन पूर्वजों के समय से चली आ रही परंपराएं आज भी जीवित हैं. डोल जतरा का अपना एक महत्व है. लोगों का मिलना-जुलना होता है. शादी-ब्याह की बातें होतीं हैं. लड़के-लड़की एक-दूसरे को देखते हैं. डोल जतरा में पारंपरिक खान-पान के स्टॉल लगाये जाते हैं. इसका उद्देश्य वर्तमान पीढ़ी को डोल जतरा के महत्व और उसकी मान्यताओं के बारे में समझाना है.

होली के दिन से डोल जतरा शुरू होगा. इसकी तैयारी शुरू हो गयी है. इसमें आदिम जनजातियों की संस्कृति और प्राचीन परंपराएं देखने को मिलेंगी. डोल जतरा को लेकर लोगों में उत्साह है.

प्रियंका असुर, मुखिया

एक समय था, जब डोल जतरा लगाने की परंपरा खत्म हो रही थी. बुजुर्गों से प्राचीन परंपराओं की जानकारी लेकर फिर से डोल जतरा लगाने की परंपरा की शुरुआत की गयी है. इसे आगे भी जारी रखेंगे.

विमल असुर, अध्यक्ष

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