Jharkhand News (दुर्जय पासवान, गुमला) : छत्तीसगढ़ राज्य से सटे कोंडरा पंचायत में सैंकड़ों लोग बीमार हैं. कइयों के जान चले गये हैं. सभी में कोरोना के लक्षण दिखे हैं. इसके बावूद गांव में स्वास्थ्य कैंप नहीं लग रही है. यहां कोरोना जांच भी नहीं हो रहा है. जिससे कोंडरा की स्थिति भयावह होने का डर बना है.
कोंडरा पंचायत रायडीह प्रखंड में आता है. यह गुमला से करीब 42 किमी दूर है. यह दूरस्थ गांव है. हालांकि, गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क बनी हुई है. इसके बावजूद यहां स्वास्थ्य कैंप नहीं लग रहा है. न ही कोई डॉक्टर इलाज कराने जाता है. जबकि कोंडरा में तीन करोड़ रुपये का अस्पताल भवन बना है. यहां हर दिन एक डॉक्टर रहना है, लेकिन जब से अस्पताल बना है. कभी डॉक्टर नहीं गये हैं. एक नर्स सप्ताह में एक से दो दिन आती है. अभी अस्पताल भवन में पुलिस का कब्जा है. अस्पताल में पुलिस पिकेट स्थापित है. जहां पुलिस फोर्स रहती है.
प्रभात खबर की जांच में पता चला है कि इस पंचायत में दो महीने में 20 से अधिक लोगों की मौत हुई है. सभी में कोरोना के लक्षण थे. सांस लेने की दिक्कत के बाद अधिकांश ग्रामीणों की मौत हुई है. ऐसे प्रभात खबर के पास सात मृतकों की सूची है. इस पंचायत में चार ग्रामीण चिकित्सक हैं जिसके भरोसे पंचायत के 6000 आबादी निर्भर है. बगल पंचायत के लोग भी इलाज कराने आते हैं. ग्रामीण चिकित्सकों के अनुसार, हर दिन 40 से 50 लोग सर्दी, बुखार व खांसी का इलाज कराने आ रहे हैं. दवा की डिमांड बढ़ गयी है. हर दिन 50 हजार रुपये से अधिक की दवा बिक रही है.
Also Read: सिसई प्रखंड का ऐसा गांव जहां न ही दवा-डॉक्टर की व्यवस्था और न ही चिकित्सा की, गांव वाले इसी आस में कि कभी तो होगा शुरूकोनकेल, मोकरा, तारालोया, बाघबोथा, पाकरपानी, कुशनझरिया, बम्बलकेरा, कसीरा, कटासारू, रामडेगा गांव है. इसमें कसीरा व कटासारू गांव छत्तीसगढ़ राज्य के आरा प्रखंड से सटा हुआ है. बगल में लोदाम प्रखंड भी है. वहां से रामरेखा धाम भी नजदीक है. झारखंड व छत्तीसगढ़ के बॉर्डर इलाका में होने के कारण इस क्षेत्र पर स्वास्थ्य विभाग की नजर नहीं है. कटासारू गांव जो जंगल व पहाड़ों के बीच है. यहां के लोगों को स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिल रही है.
यह क्षेत्र नक्सल प्रभावित है. भाकपा माओवादी व पीएलएफआई दोनों सक्रिय हैं. इस कारण कोंडरा में पुलिस पिकेट की स्थापना की गयी है. पुलिस की तैनाती से फिलहाल में नक्सली वरदात कम हो गयी है. इस क्षेत्र से नक्सलियों ने पलायन भी कर लिया है. परंतु अब कोरोना वायरस इस क्षेत्र के लोगों को डरा रहा है. खुद ग्रामीण कहते हैं. सर्दी, बुखार व खांसी होने पर हमलोग जंगल की जड़ी बूटी से इलाज कर रहे हैं. कुछ लोग ग्रामीण चिकित्सक के पास जाते हैं.
कोंडरा पंचायत में कोरोना लक्षण जैसे 7 लोगों के मौत की सूची प्रभात खबर को प्राप्त हुई है. हालांकि, ग्रामीण कहते हैं. कि कई और ग्रामीणों की भी मौत हुई है, लेकिन वे उनका अंतिम संस्कार कर दिये. ग्रामीण कोरोना के डर से प्रशासन को सूचना भी नहीं दे रहे हैं. डर है कि कहीं प्रशासन पूरे गांव के लोगों का कोरोना जांच न करा दें. ग्रामीण की माने, तो दो महीने में 20 से अधिक ग्रामीणों की मौत हो चुकी है.
कोंडरा पंचायत में 6 ग्रामीण चिकित्सक है. अलग-अलग गांव में इनकी दवा दुकान है. अगर इनकी माने, तो प्रत्येक दिन 50 से 60 लोग जांच कराने आ रहे हैं. इसमें अधिकांश लोगों को सर्दी, खांसी व बुखार है. दवा की बिक्री बढ़ गयी है. प्रत्येक दिन 50 हजार रुपये से अधिक की दवा बिक जा रही है. बगल पंचायत के लोग भी कोंडरा में ही आकर इलाज करा रहे हैं. कोंडरा के ग्रामीण चिकित्सक गोविंदा मंडल ने कहा कि अभी सर्दी, खांसी व बुखार के अधिक मरीज हैं. मेरे पास हर दिन 30 से 40 लोग जांच कराने आ रहे हैं. गांव में तीन ग्रामीण चिकित्सक और हैं. वहां भी लोग जांच कराने जा रहे हैं. प्रतिदिन 50 हजार रुपये की दवा बिक रही है.
कैसे जी रहे हैं. यह गांव के लोगों की जुबानी सुनें. कोंडरा गांव की नूतन डुंगडुंग, मुकेश बड़ाइक, सुशील बाखला व सुगंती बाखला ने कहा कि हमारे पंचायत में अस्पताल बना है. लेकिन यहां पुलिस का कब्जा है. सिर्फ दो कमरे में स्वास्थ्य विभाग का कार्यालय संचालित है. एएनएम सप्ताह में एक-दो दिन आती है. अस्पताल से गांव वालों को कोई लाभ नहीं मिला. पंचायत में हर घर में किसी ने किसी को सर्दी, बुखार व खांसी है. अधिकांश लोग कोरोना निकलने के डर से जांच कराने अस्पताल नहीं जा रहे हैं. कहीं साधारण खांसी को भी डॉक्टर कोरोना न कह दें.
सुगंती व सुशील ने कहा कि हमने कोरोना का टीका ले लिया है. जब बुजुर्ग टीका ले सकते हैं, तो युवा क्यों डर रहे हैं. उन्हें टीका लेना चाहिए. क्योंकि हमलोग टीका लेने के बाद स्वस्थ हैं. हमारे गांव में आज भी ग्रामीण चिकित्सक ही हमारी जान बचा रहे हैं. अगर ये नहीं रहते, तो इस कोरोना काल में हमें परेशानी होती. रायडीह से कोंडरा 28 किमी दूर है. इतनी दूरी तय करना वह भी कोरोना काल में मुश्किल है. ऊपर से ई-पास का पेंच भी है. हमलोग छोटा मोबाइल यूज करते हैं. ई-पास कहां से बनवाये. प्रशासन से अपील है कि सप्ताह में एक डॉक्टर गांव भेंजे. अस्पताल चालू करने की पहल हो.
इस संबंध में रायडीह प्रखंड के बीडीओ मिथिलेश कुमार सिंह कहते हैं कि कोंडरा पंचायत में अभी तक कोरोना जांच कैंप का आयोजन नहीं किया गया है. गांव में कैंप लगाने की तैयारी चल रही है. बहुत जल्द पंचायत के हरेक गांव के लोगों की जांच होगी. जिससे ग्रामीणों को कोरोना वायरस से बचाया जा सके. ग्रामीणों से अपील है. जांच कराने से न डरे.
वहीं, कोंडरा पंचायत की प्रधान कमला देवी कहती हैं कि कोंडरा में तीन करोड़ रुपये का अस्पताल भवन बना है. लेकिन यहां डॉक्टर नहीं आते हैं. जबकि एक डॉक्टर हर दिन यहां रहना है. लंबे समय से भवन बेकार रहने के कारण यहां पुलिस का कब्जा है. दो कमरे खाली है. जहां एक नर्स सप्ताह में एक-दो दिन आकर दवा व बच्चों की सूई देती है.
Posted By : Samir Ranjan.