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स्वावलंबी बन अपनी आर्थिक स्थिति में सुधारें महिलाएं : डीसी

पालकोट के कुरा गांव में स्थापित की गयी मछली चारा उत्पादन मशीन

पालकोट (गुमला). अब मछलियों को चारा की परेशानी नहीं होगी. अब अपने ही गांव व घर में मछलियों के लिए चारा मिल जायेगा. यह पहल मत्स्य विभाग गुमला ने की है. पालकोट प्रखंड की बंगरू पंचायत स्थित कुरा गांव में मछली चारा उत्पादन मशीन की स्थापना की गयी है, जिससे अब स्थानीय स्तर पर चारा का उत्पादन हो सकेगा. सबसे अच्छी खबर यह है कि यह चारा उत्पादन मशीन का संचालन खुद गांव की महिलाएं कर रही हैं, जिससे महिलाएं मछली उत्पादन के अलावा चारा उत्पादन में भी स्वावलंबी बन रही हैं. गुरुवार को चारा निर्माण के उत्पादन मशीन का उदघाटन डीसी कर्ण सत्यार्थी व जिला मत्स्य पदाधिकारी कुसुमलता ने किया. डीसी कर्ण सत्यार्थी ने महिलाओं द्वारा बनाये गये समूह खजूर महिला मंडल की दीदियों को अपने आर्थिक स्वरोजगार के क्षेत्र में स्वावलंबी बनने के लिए महिलाओं को प्रेरित करते हुए गांव व ग्रामीण स्तर की महिलाओं को स्वावलंबी बनकर आर्थिक स्थिति में सुधार करने के लिए प्रेरित किया. महिला दीदियों ने उपायुक्त का स्वागत करते हुए मंच तक लाया गया. इसके बाद महिला दीदियों ने स्वागत गान पेश करते हुए अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया. इसके बाद खजूर महिला मंडल की महिलाओं ने बताया कि झारखंड सरकार कृषि, पशुपालन व सहकारिता विभाग (मत्स्य प्रभाग) लघु फिश फील्ड से 30 लाख रुपये का आर्थिक सहयोग महिला मंडल को प्राप्त हुआ है. डीसी ने मछली पालक महिला दीदियों से मिलते हुए मछली उत्पादन से लाभ के बारे में भी जानकारी ली. इसके संचालक सुसेना लकड़ा से उपायुक्त ने सारी बातों से अवगत होते हुए मछली उत्पाद से होने वाले लाभ के बारे में भी जानकारी ली. मौके पर डीएफओ कुसुम लता, मुखिया पूनम एक्का, अर्जुन राम, अभय सिंह, प्रदीप यादव, भूषण सिंह समेत कई लोग मौजूद थे.

बेल्जियम का 27 सदस्यीय छात्र-छात्राओं का दल शैक्षणिक भ्रमण के लिए पहुंचा गुमला

डुमरी(गुमला). बेल्जियम का 27 सदस्यीय छात्र-छात्राओं का दल शैक्षणिक भ्रमण के लिए गुमला पहुंचा. दल में शामिल बच्चे डुमरी के रजावल चर्च पहुंचे, जहां ग्रामीणों ने सभी का गाजे-बाजे के साथ माला पहना कर स्वागत किया गया. छात्र-छात्राओं ने भी ग्रामीणों के साथ मिल कर नये साल को सेलिब्रेट किया. फादर इलियास मिंज ने बताया कि बेल्जियम की ये टीम प्रतिवर्ष शैक्षणिक भ्रमण के लिए रजावल आते हैं. क्योंकि यह क्षेत्र फादर लिवंस की यादों से जुड़ा हुआ है और फादर लिवंस बेल्जियम से थे. बेल्जियम से आये लोग इस क्षेत्र के रहने वाले ग्रामीण लोगों की सभ्यता, संस्कृति, रहन-सहन, खानपान, वेशभूषा, कला संस्कृति समेत अन्य कल्चर को जानने के लिए आते हैं. अर्थात रिसर्च करते हैं. मौके पर फादर दोमनिक तिर्की, फादर एडवर्ड लकड़ा, फादर अलोइस ठीठिओ, फादर अमरदीप किंडो, सिस्टर सिसिलिया, सिस्टर इरमीना किड़ो, सिस्टर प्रेम कुसुम मिंज आदि उपस्थित थे.

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