Jharkhand news: झारखंड राज्य गठन के बाद से अब तक लगभग 21 सालों में गुमला जिला में जंगली जानवरों विशेषकर हाथी एवं भालू के हमले में 124 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. वहीं, 244 लोग घायल भी हुए हैं. इसके अतिरिक्त फसल, पशु, मकान एवं अनाज क्षति के 3912 मामले हैं. जिसमें मुख्य रूप से हाथियों के झुंड ने 5.04 हेक्टेयर भूमि पर 16 किसानों के लगे फसलों को बरबाद कर चुके हैं. वहीं, दो किसानों के दो गायों को मार चुके हैं और 12 कच्चा एवं 14 पक्का मकानों को साधारण व गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर चुके हैं.
साथ ही 21 किसानों के घर पर 25.370 क्विंटल भंडारित अनाज को भी खा चुके हैं. वहीं, यदि हम सिर्फ इस वर्ष की बात करें तो एक अप्रैल से लेकर अब तक हाथी एवं भालू के हमले से पांच लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. जिसमें तीन लोग चैनपुर निवासी स्वर्गीय सुधनी देवी, मालम निवासी कृष्णा साहू, अमलिया निवासी चेंगड़ा उरांव की हाथी के हमले एवं मंजीरा निवासी विमला देवी व डुमरी निवासी एक व्यक्ति की भालू हमले में जान चली गयी.
इसके अतिरिक्त हाथी के हमले से चार घायल हो चुके हैं. हाथी के 21 किसानों के घरों में लगभग 25 क्विंटल भंडारित अनाज खा चुके हैं. लगभग पांच एकड़ भूमि पर लगे फसल को बरबाद और 26 ग्रामीणों के घर को क्षतिग्रस्त कर चुके हैं. वहीं काफी संख्या में ऐसे लोग भी हैं, जो हाथियों के उत्पात से प्रभावित हो चुके हैं.
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गुमला जिला का क्षेत्रफल पांच लाख 10 हजार 926 वर्ग किमी है. जिसमें लगभग 1.356 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कम घनत्व, मध्यम घनत्व एवं अधिक घनत्व वाला जंगल है. साथ ही गुमला जिला चारों ओर से पहाड़ों से भी घिरा हुआ है. जो हाथियों के रहने लायक काफी उपयुक्त स्थल है. पूर्व में मध्यम घनत्व एवं अधिक घनत्व वाले जंगलों में पड़ोसी जिलों एवं राज्यों से पूर्वज काल से ही हाथियों का आवागमन होता रहा है.
हाथी गुमला जिला के जंगलों में आने के बाद जंगल में ही रहते थे. पर्याप्त मात्रा में भोजन व पानी की उपलब्धता के कारण हाथी जंगल से बाहर नहीं निकलते थे. लेकिन, अब जंगल में हाथियों को पर्याप्त मात्रा में सिर्फ पानी ही मिल पा रहा है. भोजन पर्याप्त मात्रा में नहीं मिलने के कारण हाथी जंगल से निकलकर गांवों में घुस जाते हैं और घरों को क्षतिग्रस्त कर भंडारित अनाज को खा जाते हैं. गांव में घुसने से पहले व निकलने के बाद खेत से होकर गुजरते हैं. जिससे खेतों में लगी फसल भी बरबाद हो जाती है. इसी बीच यदि कोई इंसान अथवा पशु बीच में आ जाये तो उसे भी अपना शिकार बना लेते हैं.
गुमला जिला के जंगलों में हाथी विशेष रूप से छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से आते हैं. हमारा गुमला जिला छत्तीसगढ़ राज्य से सटा होने के कारण हाथी डुमरी, चैनपुर, जारी व रायडीह वनक्षेत्र से घुसते हैं. वहीं, बिशुनपुर प्रखंड से सटा हुआ नेतरहाट एवं बेतला जंगल है. उक्त दोनों जंगलों से भी हाथी बिशुनपुर के जंगलों में घुसते हैं. जिसमें कुछ हाथी सिंगल होते हैं, तो कुछ हाथियों का झुंड रहता है. सिंगल हाथी प्राय: गांवों में घुस जाते हैं उत्पात मचाकर निकल जाते हैं. हाथियों के सुंघने की क्षमत अदभुत है. इसलिए वे प्राय: उसी घरों को अपना निशाना बनाते हैं. जिस घर में हड़िया, दारू और अनाज हो. जिससे कई लोगों को जान-माल की क्षति होती है.
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जंगली जानवरों विशेषकर हाथियों के कहर से लोगों की जान बचाने के लिए वन विभाग गुमला प्रयासरत है. परंतु प्रयासरत रहने के बावजूद वन विभाग कई जगहों पर नाकाम होता रहा है. जिस कारण कई लोगों की जान चली गयी. वहीं, कई लोग घायल हो चुके हैं तो कई लोगों का घर, भंडारित अनाज व खेतों में लगा फसल बरबाद हो चुका है. हालांकि हाथियों के गांव में घुसने के बाद स्थानीय लोगों द्वारा हाथी को भगाने का प्रयास किया जाता है. यहां तक की वन विभाग को भी सूचना दिया जाता है. परंतु जब तक वन विभाग मौके पर पहुंचता है. तब हाथी उत्पात मचाकर दोबारा जंगल में घुस जाते हैं. जंगली हाथी में यदि गांव में घुस जाये तो मशाल जलाकर, पटाखा फोड़कर अथवा तेज आवाज कर हाथी को भगाया जा सकता है. लेकिन, इसमें काफी सावधानी बरतने की जरूरत है.
गुमला वन प्रमंडल के डीएफओ श्रीकांत कहते हैं कि झुंड वाले हाथियों से जान-माल की क्षति नहीं होती है. झुंड वाले हाथियों का एक रूट रहता है. जो गांव और लोगों से काफी दूर रहता है. वे अपने उसी रूट का उपयोग आवागमन में करते हैं. लेकिन, सिंगल रहने वाला हाथी का कोई रूट नहीं होता है. झुंड वाले हाथियों को तो ट्रैक किया जा सकता है. लेकिन, सिंगल हाथी को ट्रैक करना संभव नहीं है. जिस कारण सिंगल हाथी कई बार गांवों में भी घुस जाता है. जिससे लोगों को जान-माल की क्षति होती है. ऐसे तो हाथी किसी को नुकसान नहीं पहुंचते हैं. लेकिन, यदि उसे छेड़ा जाये तो वे उग्र हो जाते हैं. लोगों को हाथियों को नहीं छेड़ना चाहिये.
रिपोर्ट: जगरनाथ पासवान, गुमला.