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आक्रमणकारी पौधे जंगल के लिए अभिशाप है : डॉ थांगिया

वन प्रमंडल गुमला के तत्वावधान में केओ कॉलेज गुमला के साइंस डिपार्टमेंट में जंगलों की सुरक्षा व संरक्षण को लेकर एक दिवसीय प्रशिक्षण सह कार्यशाला हुआ.

जंगलों की सुरक्षा व संरक्षण को लेकर एक दिवसीय प्रशिक्षण सह कार्यशाला

गुमला. वन प्रमंडल गुमला के तत्वावधान में केओ कॉलेज गुमला के साइंस डिपार्टमेंट में जंगलों की सुरक्षा व संरक्षण को लेकर एक दिवसीय प्रशिक्षण सह कार्यशाला हुआ. उद्घाटन मुख्य अतिथि मुख्य वन संरक्षक डॉक्टर आर थांगिया पांडेयन, डीएफओ अहमद बेलाल अनवर ने किया. मुख्य अतिथि ने कहा कि आक्रमणकारी पौधे जंगल के लिए अभिशाप है. इसकी पहचान कर उसे जंगल से हटाना बहुत जरूरी है. जिससे जंगलों का संरक्षण हो पायेगा. इसके अलावा जंगलों की कटाई के दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को बहुत ही कम जानकारी है. इसलिए इस कार्यक्रम में उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति अपने आसपास के क्षेत्रों में जाकर लोगों को इसके प्रति जागरूकता लाने की आवश्यकता है. डीएफओ ने कहा कि इस हर व्यक्ति लोहे की तरह है जिसे समय-समय पर जंग लगता है, अगर सही समय पर जंग को साफ नहीं किया जाए जो, वह लोहा बर्बाद हो जाता है. इसी प्रकार आज आप सभी लोगों में लगे जंग को हटाने के लिए यह कार्यशाला किया गया है. समय-समय पर इस प्रकार का कार्यशाला का आयोजन कर आपको अपने दायित्वों व कार्यों को बताया जायेगा जिससे आप जंगल के संरक्षण के लिए लोगों में क्रांति लायेंगे. वहीं कई बार देखा गया है कि लोग महुआ चुनने के लिये जंगलों में आग लगा देते हैं, जिस कारण कई छोटे बड़े पेड़ पौधे नष्ट हो जाते हैं. जिसके कारण जंगलों के अलावा पर्यावरण का नुकसान होता है. इसलिए जंगलों को आग से बचाने के लिए हर महुआ के पेड़ में नेट लगाने का योजना है. जिससे महुआ नेट में गिर जायेगा और लोग आसानी से महुआ प्राप्त कर सकेंगे. इस कार्य से जंगलों में आगजनी खत्म हो जायेगा. झारखंड जैव के सदस्य प्रसन्नजीत मुखर्जी ने आक्रमणकारी पौधों की दुष्परिणाम के बारे में बताया. उन्होंने कहा कि जलकुंभी, गाजर घास, क्रोम लेना व पुटस का झांड पर्यावरण के अनुकूल नहीं है. कृषि जैव प्रौद्योगिकी रांची की गीता कुमारी, वन विभाग झारखंड शोधकर्ता पंकज कुमार, औषधीय पौधों के जानकार सत्यनारायण सिंह ने वन अधिनियम, वन को समझाना, इसकी पहचान, सुरक्षा, संरक्षण, सेवाएं वन कानून के बारे में विस्तृत चर्चा किये. मौके पर सुखदेव लकड़ा, गोविंद प्रभात लकड़ा, बुध देव बड़ाइक, चंद्रदेव उरांव, विद्या सागर भगत, पी बाड़ा, प्रेमचंद कुमार साहू, प्रवीण तिर्की, राजेश कुजूर, आनंद प्रकाश लकड़ा, पुना टेटे, अलोइय मिंज, प्रदीप, रजत किरण डुंगडुंग, भीमसेंट एक्का, मनीष गोप, जीतू खड़िया, धानी महतो, अजय खड़िया, सूबेदार उरांव, चरकु खड़िया, सुदर्शन शाह, घुरन खड़िया, भोला उरांव समेत सैकड़ों की संख्या में लोग मौजूद थे.

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