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Jharkhand Assembly Election: इस विधानसभा सीट पर 2000 के बाद लगातार दूसरा टर्म नहीं जीत सका है कोई विधायक

झारखंड बनने के बाद कोई विधायक लगातार दूसरी बार चुनाव नहीं जीत सका है. सिसई विधानसभा 1951 ई. में बना था. यह अनुसूचित जनजाति सीट है. अब तक इस क्षेत्र की जनता ने 17 विधायक चुने. सिसई विस के पहले विधायक बलिया भगत थे.

Jharkhand Assembly Election, गुमला, दुर्जय पासवान: सिसई विधानसभा 1951 ई. में बना था. यह अनुसूचित जनजाति सीट है. अब तक इस क्षेत्र की जनता ने 17 विधायक चुने. सिसई विस के पहले विधायक बलिया भगत थे. परंतु झारखंड बनने के बाद कोई विधायक लगातार दूसरी बार चुनाव नहीं जीत सका है. क्योंकि सिसई विस क्षेत्र की जनता एक चुनाव के बाद दूसरे चुनाव में विधायक को हरा देते हैं. इसलिए वर्तमान विधायक जिग्गा सुसारन होरो के सामने लगातार दूसरी बार विधायक बनने की चुनौती रहेगी. क्योंकि सिसई विस क्षेत्र की जनता का मूड हर पांच साल में बदल जाता है.

चार बार विधायक रहे बंदी उरांव

हालांकि झारखंड गठन से पहले के विधायकों पर गौर करें, तो सिर्फ बंदी उरांव एक ऐसे नेता हैं, जिन्होंने दो-दो बार लगातार चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बनाया है. उन्होंने सिसई विस सीट से चार बार विधायक रहे हैं. 1980 व 1985 में लगातार दो बार बंदी उरांव विधायक बने. परंतु हैट्रिक नहीं मार सके. परंतु पुन: 1991 व 1995 में दो बार वे विधायक बनने का रिकॉर्ड अपने नाम किया है. बंदी उरांव ने विधायक बनने का जो रिकॉर्ड बनाया है, उसे आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है. क्योंकि उन्होंने नौकरी छोड़ राजनीति में आये और अपने कार्यकाल में जनता के लिए कई महत्वपूर्ण काम किये हैं.

पुलिस की नौकरी छोड़ कर आये हैं राजनीति में

बताते चलें कि सिसई विस क्षेत्र में सिसई, भरनो, कामडारा व बसिया प्रखंड आता है. इस सीट पर भाजपा व यूपीए गठबंधन के बीच अक्सर टक्कर होती रही है. ऐसे सिसई सीट से जिग्गा सुसारन होरो अब तक तीन बार चुनाव लड़े हैं. तीसरी बार में 2019 में वे चुनाव जीते थे, जबकि 2009 व 2014 के चुनाव में वे हार गये थे. इधर, 2024 में वे सीटिंग विधायक होने के नाते पुन: चुनाव मैदान में हैं. अब देखना है कि वे लगातार दूसरी जीत दर्ज कर रिकॉर्ड बना पाते हैं या नहीं. क्योंकि भाजपा के डॉ अरुण उरांव इस क्षेत्र के रहने वाले हैं और उनके पिता स्व बंदी उरांव चार बार विधायक रह चुके हैं. डॉ अरुण उरांव पुलिस की नौकरी छोड़ कर राजनीति में आये हैं.

कौन-कौन कब जीता

नामपार्टीवर्ष
बलिया भगत जेएचपी 1951
कृपा उरांवजेएचपी1957
सीताराम भगत स्वतंत्र 1962
एस भगत कांग्रेस 1967
सुकरू भगत कांग्रेस 1972
ललित उरांव जेएचपी1977
बंदी उरांव कांग्रेस 1980
बंदी उरांव कांग्रेस1985
ललित उरांव भाजपा1990
बंदी उरांव कांग्रेस1991
बंदी उरांव कांग्रेस1995
दिनेश उरांव भाजपा 2000
समीर उरांव भाजपा 2005
गीताश्री उरांव कांग्रेस 2009
दिनेश उरांव भाजपा 2014
जिग्गा सुसारन झामुमो 2019

पिछले चार चुनावों की स्थिति

वर्ष 2005

जीते समीर उरांव (भाजपा)प्राप्त वोट : 34217
हारे शशिकांत भगत (कांग्रेस)प्राप्त वोट : 33574
तीसरे नंबरसूर्या (निर्दलीय)प्राप्त वोट : 6056

वर्ष 2009

जीते गीताश्री उरांव(कांग्रेस) प्राप्त वोट : 3926
हारेसमीर उरांव(भाजपा) प्राप्त वोट : 24319
तीसरे नंबर जिग्गा सुसारन (झामुमो) प्राप्त वोट : 17427

वर्ष 2014

जीते दिनेश उरांव (भाजपा)प्राप्त वोट : 44472
हारे जिग्गा होरो (झामुमो)प्राप्त वोट : 41879
तीसरे नंबर गीताश्री उरांव (कांग्रेस)प्राप्त वोट : 26128

वर्ष 2019

जीते जिग्गा सुसारन होरो (झामुमो)प्राप्त वोट : 93591
हारे डॉक्टर दिनेश उरांव (भाजपा)प्राप्त वोट : 55151
तीसरे नंबरलोहरमैन उरांव (झाविमो)प्राप्त वोट : 2140

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सिसई विस के अपने एजेंडे व मुद्दे

भरनो में करोड़ों रुपये की लागत से बनी ग्रामीण जलापूर्ति योजना बीते दो साल से बंद है. प्रखंड मुख्यालय के सैकड़ों घरों में पानी सप्लाई होती थी. अब योजना बंद होने से लोगों को पेयजल की किल्लत हो गयी है. बसिया प्रखंड के कोनबीर में करोड़ों रुपये से बनी जलमीनार से अब तक पानी की सप्लाई शुरू नहीं हुई है. बसिया प्रखंड में गर्मी शुरू होते जल संकट गहरा जाता है. विधायक उक्त योजना को झांकने तक नहीं आये बसिया प्रखंड में करोड़ों की लागत से बना पॉलिटेक्निक कॉलेज का भवन बन कर तैयार है. परंतु अब तक चालू नहीं किया गया है. जबकि छात्र कॉलेज तैयार होने का इंतजार कर रहे हैं. अब तो बिल्डिंग खंडहर हो रहा है.

सिसई में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा है. यहां विकास योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गयी हैं. बालू की चोरी व तस्करी भ्रष्टाचार की हद पार कर दी है. बालू की चोरी व तस्करी से कई लोगों तक कमीशन पहुंचता है.सिसई में सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है. कई छोटी बड़ी नदिया बहती है. जगह-जगह पर चेकडैम व छोटी नहर बनवा दिया जाये, तो पलायन में कमी आ सकती है. लेकिन यहां कमीशन वाली योजनाओं में अधिक ध्यान दिया जाता है.

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