भाकपा माओवादियों के कोयल शंख जोनल कमेटी ने कुजाम माइंस में पोस्टर छोड़ा है. साथ ही कई माइंस को बंद करने की चेतावनी दी है. पोस्टर में कहा गया है कि हिंडालको कंपनी व उनके अधीनस्थ एनकेसीपीएल, बीकेबी, जीओ मैक्स आदि ग्रुपों द्वारा बॉक्साइट इलाके में लीज के अलावा सार्वजनिक एवं निजी स्थानों से बॉक्साइट पत्थर निकालने के चक्कर में बड़े पैमाने पर जंगल उजाड़ कर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया जा रहा है.
इसलिए माओवादी ने बॉक्साइट खनन से प्रभावित परिवारों, इलाके की जनता को तमाम बुनियादी सुविधा, न्यूनतम अधिकारों से वंचित करने और लूट व शोषण के खिलाफ यह कार्रवाई की गयी है. यह महज एक चेतावनी है. एनकेसीपीएल, बीकेबी, जीओ मैक्स आदि ग्रुपों द्वारा बॉक्साइट खनन व ढुलाई का कार्य तत्काल पार्टी बंद हो. नहीं तो अंजाम बड़ा होगा.
कुजामपाठ, अमतीपानी, चौरापाठ, डुमरपाठ, सखुआपाठ, बीजापाठ, सेरेंगदाग, बगड़ू पाखर, विमरला आदि बॉक्साइट माइंस के बगल में मौजूद जंगल को उजाड़कर बॉक्साइट पत्थर निकालना व पर्यावरण में प्रदूषण फैलाना बंद हो. कंपनी द्वारा बॉक्साइट खनन क्षेत्रों में प्रोटेक्शन के नाम पर दिये गये सभी पुलिस पिकेट को अविलंब हटाये.
बॉक्साइट खनन के लिए कंपनी द्वारा इलाके के भोले भाले अनपढ़ व आदिवासी रैयतों से पूर्व में किये गये सभी असमान समझौतों, नौकरी व तमाम बुनियादी सुविधा की गारंटी दें. कंपनी द्वारा भोले भाले ग्रामीण जनता को थोड़े पैसे की लालच देकर कौड़ी के भाव में जिन किसी भी जनता की निजी जमीन से बॉक्साइट पत्थर निकलवाया गया है. उस जमीन को समतलीकरण करे. उन्हें उचित मुआवजा दें. जंगली जमीन पर पेड़ लगाये.
बाक्साइट पत्थर का खनन व लोडिंग का काम मशीन से नहीं स्थानीय मजदूरों से कराया जाये. बाक्साइट खनन से विस्थापित व प्रत्येक प्रभावित परिवारों को जमीन के बदले जमीन दें. आवास के बदले आवास निर्माण के लिए कम से कम दस लाख रुपया मुआवजा दें.
साथ ही हर गांव में कम से कम प्राथमिक स्तर की शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, बिजली सहित सभी प्रकार की सुविधा सुनिश्चित करें. कंपनी व उनके अधीनस्थ आदि ग्रुपों के बॉक्साइट माइंस में तमाम कर्मचारियों, निजी ट्रक ऑनर व ड्राइवरों से कंपनी बॉक्साइट खनन व ढुलाई कार्य को तत्काल बंद करने की चेतावनी दी गयी. मजदूरों से कहा गया है कि पार्टी से अनुमति मिलने तक दैनिक कामों में मजदूर न लगे. इधर, माइंस क्षेत्र के मजदूर टीना के बने झोपड़ीनुमा घर में रहते हैं. बरसात, ठंडा व गर्मी के दिनों में मजदूरों को परेशानी होती है.
रिपोर्ट – बसंत साहू