-
हाथ, मुंह, पैर, छाती में खसरा के कारण जख्म हो गया
-
एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में यह बीमारी फैल रही है
-
सोलर जलमीनार बेकार, कुआं का दूषित पानी पी रहे लोग
-
कोरवा लोग नदी में बांध बना कर उसी में सभी नहाते हैं
Jharkhand News, Gumla News गुमला : गुमला से 25 किमी दूर आंजन पंचायत के हरिनाखाड़ गांव में विलुप्त प्राय: कोरवा जनजाति के 27 परिवार रहते हैं. यह जाति आज संकट में है. गांव में खसरा बीमारी फैल गयी है. गांव की सहायिका से लेकर कई छोटे बच्चे इस बीमारी से ग्रसित हैं. हाथ, मुंह, पैर, छाती व शरीर के अन्य हिस्सों में खसरा बीमारी के बाद जख्म हो गया है. 27 परिवार में 10 से 12 लोगों को यह बीमारी हुई है. यह फैलने वाली बीमारी है.
धीरे-धीरे यह पूरे गांव को चपेट में ले सकती है. इसकी जानकारी स्वास्थ्य विभाग को दी गयी है. परंतु नक्सल प्रभावित इलाका होने के कारण गुमला स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव नहीं जा रही है. हालांकि दो दिन पहले डब्ल्यूएचओ (वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन) की टीम गांव गयी थी. कई लोगों का सैंपल लिया. लैब में सैंपल की जांच में खसरा बीमारी की पुष्टि हुई है. परंतु गांव के लोग गरीब हैं.
अस्पताल आने के लिए पैसा नहीं है. इस कारण कोई इलाज कराने गुमला अस्पताल नहीं आ रहा है. ग्रामीणों ने गांव में ही इलाज की व्यवस्था की मांग की है. परंतु गुमला से स्वास्थ्य विभाग की टीम गांव नहीं जा रही है. गुरुवार को पुन: सात लोगों खसरा से पीड़ित मिले हैं. इनमें करीना कुमारी, पवन कोरवा, लालमुनी कोरवाईन, पंकज कोरवा, करिश्मा कुमारी, करमचंद व सहायिका रामझारी कोरवाईन है.
हरिनाखाड़ गांव जंगल व पहाड़ों के बीच है. आंजन से गांव तक जाने के लिए सड़क नहीं है. बड़ी मुश्किल से लोग सफर करते हैं. कई छोटी बड़ी नदियां हैं. जिसमें तीन नदियों में पुल बन रहा है. परंतु अधूरा है. बरसात में लोगों को परेशानी होती है. राशन सामग्री लाने के लिए कोरवा जाति को डीलर के पास जाना पड़ता है. जबकि नियम के अनुसार डीलर को इनके घर तक राशन पहुंचा कर देना है. लोग खुले में शौच करते हैं. सड़क व पुल के अभाव में गर्भवती महिलाएं अस्पताल नहीं पहुंच पाती. गांव के सभी बच्चों का जन्म अपने घर पर हुआ है.
कोरवा जनजाति धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है. सरकारी सुविधा नहीं मिलने से ये लोग धर्म बदल ले रहे हैं. या फिर दूसरे राज्य पलायन कर जा रहे हैं. सरकार इस जनजाति को बचाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रही है. ताकि सरकारी योजनाओं से जोड़ कर इस जाति को बचाया जा सके. परंतु गुमला प्रशासन व आइटीडीए विभाग की लापरवाही से इस जाति तक सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पा रहा है. उदाहरण सामने है. हरिनाखाड़ गांव के लोगों को प्रशासन शुद्ध पानी की उपलब्ध नहीं कर पा रहा है. सोलर जलमीनार की मरम्मत का भी पहल नहीं हो रही है.
सरकार ने कोरवा जनजाति के लिए पक्का आवास बनाने के लिए आइटीडीए विभाग को राशि दी है. परंतु विभाग के अधिकारी के लापरवाही के कारण इस गांव के लोगों के लिए पक्का घर नहीं बना है. ग्रामीण कहते हैं. विभाग में पहले घूस मांगा जाता है. घूस नहीं देने के कारण घर नहीं बन रहा है. अभी भी बिरसा आवास के लिए विभाग के पास लाखों रुपये पड़ा हुआ है. अगर किसी को घर मिला भी है, तो विभाग के इंजीनियर व बिचौलियों के कारण पूरा नहीं बन पाया है.
गुमला सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ एके उरांव ने कहा कि खसरा वायरल डिजीज है. जिसे खसरा है. वह सामाजिक दूरी का पालन करें. चिकित्सक के निर्देश पर दवा लें. यह इलाज से ठीक हो सकता है. परंतु अगर समय पर इलाज नहीं हुआ तो यह घातक हो सकता है. खसरा वायरस बीमारी है. यह बहुत ही घातक है. नवजात बच्चों में अधिक होता है. खसरा में ब्रोंकोनिमोनिया होना अति घातक होता है. जिससे बच्चा कुपोषित भी हो सकता है. बिना इलाज के ठीक नहीं हो सकता है. इससे जान भी जा सकती है. इसलिए खसरा पीड़ित मरीज जरूर अस्पताल या किसी डॉक्टर से जांच करा लें.
गांव में शुद्ध पेयजल की समस्या है. कुछ साल पहले एक सोलर जलमीनार बना था. परंतु यह लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है. जलमीनार से कई बार दूषित पानी निकलता है. कभी कभार शुद्ध पानी मिलता है. ऐसे ग्रामीणों की माने तो अधिकांश समय गंदा पानी निकलता है. इसलिए इस पानी को नहीं पीते हैं. गांव में एक पुराना दाड़ी कुआं है. वह पानी भी दूषित है. परंतु मजबूरी में इसी पानी को लोग पीते हैं.
गांव से कुछ दूरी पर नदी है. ग्रामीणों ने बांध बना कर नदी के पानी को जमा किया है. इसी पानी में सभी लोग नहाते हैं. पशु पक्षी भी इसी पानी को पीते हैं. घर के कई काम नदी के जमा पानी से होता है. डब्ल्यूएचओ के सदस्य ने कहा कि एक ही पानी का उपयोग सभी लोग कर रहे हैं. इस कारण खसरा बीमारी फैल रही है.
Posted By : Sameer Oraon