Jharkhand News (दुर्जय पासवान, गुमला) : गुमला से 10 किमी की दूरी पर है लिटाटोली गांव. इसी गांव में प्रतिभा के धनी व कुशाग्र बुद्धि के कार्तिक उरांव का जन्म हुआ था. स्वर्गीय कार्तिक उरांव ने इंजीनियरिंग के क्षेत्र में महारत हासिल कर गुमला जिले का नाम रोशन किये थे. लेकिन दुर्भाग्य है कि दुनिया के सबसे बड़े ऑटोमेटिक पावर स्टेशन का प्रारूप ब्रिटिश सरकार को देने वाले कार्तिक उरांव के गांव में स्थित प्रोजेक्ट कार्तिक उरांव हाई स्कूल, लिटाटोली की स्थिति ठीक नहीं है.
कारण, स्कूल का भवन जर्जर हो गया है. वर्ष 1990 में बना स्कूल भवन बेकार हो गया. भवन टूटकर गिर रहा है. जर्जर भवन के कारण ही यहां आठवीं कक्षा में इस वर्ष एक भी नामांकन नहीं हुआ. इस कारण आठवीं में पढ़ाई बंद कर दी गयी. जबकि छठवीं व सातवीं कक्षा में दो साल पहले ही पढ़ाई बंद कर दी गयी थी. अभी सिर्फ नौवीं व दसवीं कक्षा में पढ़ाई हो रही है. फिलहाल में नौवीं व दसवीं कक्षा में 200 छात्र हैं.
भौतिकी, संस्कृत, इतिहास, नागरिक शास्त्र व खेल विषय के शिक्षक नहीं हैं. अब सवाल यह है कि जिस गांव के बेटे ने देश- विदेश में नाम कमाया. आज भी उन्हें आदिवासी समाज के लोग भगवान की तरह पूजते हैं. उन्हीं के गांव के बच्चे आज के इस हाईटेक व वैज्ञानिक युग में कई विषयों की शिक्षा से वंचित हैं. गांव के स्कूल में जिस प्रकार की समस्या है. सवाल खड़ा होता है. बच्चों का भविष्य किस मोड़ में जायेगा. स्कूल में शिक्षकों की स्वीकृत पद 8 है. इसमें 6 शिक्षक हैं.
Also Read: रिश्वत लेने के आरोपी रंका थाना के ASI को पकड़ने गयी ACB टीम पर हमला, डीएसपी को खदेड़ा, इंस्पेक्टर की पिटाई कीस्कूल में एक चापाकल है. गरमी में पानी नहीं निकलता है. छठवीं, सातवीं व आठवीं कक्षा में पढ़ाई बंद होने के बाद यहां मध्याह्न भोजन योजना भी बंद कर दिया गया है. हालांकि, भोजन बनाने के बर्तन अभी भी रखे हुए हैं. स्कूल की चहारदीवारी नहीं हुई है. असामाजिक तत्व व जानवर स्कूल में घुस जाते हैं. स्कूल की खिड़की व दरवाजे गायब हो रहे हैं. बेंच-डेस्क की कमी है. बच्चों को बैठकर पढ़ने में दिक्कत होती है. सबसे बड़ी समस्या पानी की है. अगर बच्चों को प्यास लगती है, तो नजदीक के गांव में पानी पीने जाने को मजबूर होना पड़ता है. शौचालय का मरम्मत हुआ, लेेकिन पानी संकट के कारण उपयोग नहीं हो पाता है.
स्कूल परिसर में वर्ष 2012 में 12 कमरों का भवन बनना शुरू हुआ था. वर्ष 2015 में भवन बनकर तैयार हो गया. भवन 64 लाख रुपये की लागत से बना है. भवन बना, लेकिन खिड़की व दरवाजा नहीं लगाये गये. इस कारण अभी तक स्कूल को हैंड ओवर नहीं किया गया है. 6 साल में स्कूल भवन जर्जर व भूत बंगला हो गया है. खिड़की व दरवाजा नहीं लगा है. अगर कुछ बहुत लगा था, तो उसकी चोरी हो गयी है.
स्कूल के बगल में स्कूल के नाम से अपनी जमीन है, लेकिन यह उबड़-खाबड़ है. छात्रों का कहना है कि अगर इस ग्राउंड को समतल कर दिया जाता, तो यहां विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिता का आयोजन किया जा सकता है. खेल ग्राउंड के अभाव में छात्र किसी प्रतियोगिता में भाग नहीं ले पाते हैं.
Also Read: सिसई, बिशुनपुर, चैनपुर में धनतेरस की हो रही तैयारी, व्यापारी ग्राहकों को लुभाने के अपना रहे हैं ये तरकीबप्रभारी एचएम संदीप टोप्पो ने बताया कि स्कूल में समस्याओं को अंबार है. कई बार समस्या दूर करने की मांग की गयी, लेकिन कोई ध्यान नहीं देते हैं. इस कारण हमारे पास जो संसाधन व सुविधा है. उसी के अनुसार स्कूल का संचालन कर रहे हैं. राज्यसभा सांसद, डीसी व डीइओ को पत्र लिखकर स्कूल में चहारदीवारी, भवन व चापाकल बनवाने की मांग की है.
– वर्ष 1990 में बने स्कूल भवन की छत का प्लास्टर क्लास रूम में टूटकर गिर रहा है. प्राचार्य कार्यालय का दीवार व छत दोनों का प्लास्टर टूट गया है. इस कारण भवन को शिक्षकों ने खाली कर दिया.
– वर्ष 2005 में सांसद मद से तीन कमरों का स्कूल भवन बना था, लेकिन घटिया निर्माण के कारण एक दिन भी पढ़ाई नहीं हुई क्योंकि छत का प्लास्टर टूट रहा है. कुछ दिन के लिए रसोईघर बनाया गया था. अभी जैसे- तैसे यूज हो रहा है.
– वर्ष 2015 में 12 कमरों का भवन बना है, लेकिन खिड़की व दरवाजा नहीं लगाया. हैंड-ओवर भी नहीं किया गया है. 12 कमरे के इस भवन में सुरक्षा कारणों से नहीं होती पढ़ाई.
Posted By : Samir Ranjan.