Thunderstorm In Jharkhand, चाईबासा न्यूज (अभिषेक पीयूष) : झारखंड में आपदा के रूप में घोषित होने के बाद भी वज्रपात से सुरक्षा को लेकर माकूल इंतजाम नहीं किये गये हैं. यही वजह है कि पिछले 9 वर्षों में जहां 1568 लोगों की मौत हो गयी, वहीं पश्चिमी सिंहभूम में 5 वर्षों में 36 लोगों ने जान गंवा दी.
वज्रपात के लिहाज से झारखंड का पश्चिमी सिंहभूम जिला काफी संवेदनशील माना जाता है. पश्चिमी सिंहभूम जिले में वर्ष 2016 से 2020 तक वज्रपात से कुल 36 लोगों की मौत (death due to thunderstorm) हो चुकी है, जबकि दस लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए हैं. जिला आपदा प्रबंधन (District Disaster Management) के आंकड़ों पर गौर करें, तो इनमें वर्ष 2017 में वज्रपात के कारण जिले में सर्वाधिक 10 लोग काल के गाल में समा गए.
वर्ष 2016 में 09 लोगों की मौत हुयी है. इसके बाद 2018-19 में 06-06 लोगों को वज्रपात के चलते जान से हाथ धोना पड़ा है जबकि 2020 में भी 05 लोगों ने वज्रपात (thunderclap) के कारण जान गंवायी है. दरअसल झारखंड प्रदेश में वज्रपात को राज्य सरकार ने विशिष्ट आपदा (specific disaster) घोषित कर रखा है. राज्य में वज्रपात के पीड़ितों के लिए मुआवजे का भी प्रावधान (provision of compensation) है, लेकिन वज्रपात से बचाव और ससमय लोगों को सूचना देना का तंत्र अब भी नाकाफी है.
समतली इलाकों की तुलना पहाड़ी व जंगलों में अधिक खतरा
छोटी पहाड़ियां, लंबे पेड़, जंगल, दलदली क्षेत्र, ऊंचे-ऊंचे टावर और बड़ी इमारतें वज्रपात के लिहाज से अधिक संवेदनशील मानी जाती है. यहां पर वज्रपात समतली इलाकों की तुलना में अधिक होता है. समुद्र तट से अधिक ऊंचाई पर होने व पठारी और जंगली क्षेत्रों में विशेषकर जहां जमीन की ऊंचाई में अचानक परिवर्तन आ जाता है. वहां वाष्प कण आपस में टकरा कर अत्यधिक ऊर्जा का सृजन करते हैं, जो कि खनिज भूमि की ओर आकर्षित होकर वज्रपात का रूप धारण कर लेता है.
मई से जून व सितंबर से नवंबर तक वज्रपात का अधिक खतरा
वज्रपात मई से जून व सितंबर से नवंबर तक सर्वाधिक होता है. जानकारों के अनुसार वज्रपात पूर्वाह्न की तुलना अपराह्न में अधिक होता है. इसके लिए गर्म हवा में आर्द्रता व अस्थिर वायुमंडल अवस्था वैसे बादलों के बनने में सहायक है. जिससे वज्रपात की आशंका अधिक रहती है.
कैसे लिया जा सकता है मुआवजा
वज्रपात से प्रभावित होने वाले व्यक्ति या फिर संपत्ति के मुआवजा भुगतान के लिए थाने में प्राथमिकी (एफआइआर) और पोस्टमार्टम रिपोर्ट का होना अनिवार्य है. इसके अतिरिक्त अंचल अधिकारी या जिले के आपदा प्रबंधन अधिकारी अन्यथा उपायुक्त के लिखित आवेदन देकर मुआवजा संबंधि राहत कोष के लिए अविलंब संपर्क किया जाना चाहिए. तभी समय पर प्रभावित परिवार को मुआवजा का भुगतान हो सकेगा.
खेतों में काम करने वक्त ऐसे करें खुद की रक्षा
वज्रपात के दौरान खेत-खलिहान में काम करने के कारण सुरक्षित स्थान पर नहीं जा पा रहे हैं, तो पैरों के नीचे सूखी चीजें जैसे लकड़ी, प्लास्टिक और बोरा में से कोई एक अपने पैरों के नीचे रख लें. साथ ही दोनों पैरों को आपस में सटा लें. वहीं दोनों हाथों को घुटने पर रखकर अपने सिर को जमीन की ओर यथासंभव झुका लें, लेकिन सिर को जमीन से ना छुआएं. ना ही जमीन पर लेटें. ऐसा कर खुद को सुरक्षित कर सकते हैं.
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राज्य में 9 सालों में 1568 लोगों ने गंवा दी जान
झारखंड में पिछले 9 सालों में वज्रपात के कारण 1568 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि झारखंड राज्य बने 19 साल होने को हैं, लेकिन मौसम की सटीक सूचना एकत्र करने के लिए अब तक डॉपलर रडार स्थापित नहीं किया जा सका है. जिसका खामियाजा राज्य की जनता भुगत रही है.
क्या है सरकारी मुआवजा पाने का प्रावधान
– वज्रपात से एक व्यक्ति की मौत पर मृतक के आश्रित को 4 लाख का मुआवजा मिलता है.
– वज्रपात से घायल व्यक्ति को स्थिति के अनुरूप 4300 से अधिकतम 2 लाख रुपये तक का मुआवजा.
– वज्रपात से कच्चा या पक्का घर पूर्ण रूप से क्षतिग्रस्त होने पर प्रति मकान 95,100 रुपये मुआवजा.
– झोपड़ीनुमा मकान के क्षति पर प्रति झोपड़ी 2,100 रुपये मुआवजा.
– दुधारू गाय, भैंस की मौत पर प्रति पशु 30 हजार रुपये मुआवजा.
– बैल, भैंसा दैसे पशु की मौत पर प्रति पशु 25 हजार रुपये मुआवजा.
– भेड़ व बकरी समेत अन्य पशु की मौत पर प्रति पशु 3 हजार रुपये मुआवजा.
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वज्रपात से बचने को ये बरतें सावधानी
– वज्रपात के दौरान मजबूत छत वाला पक्का मकान सबसे सुरक्षित स्थान है.
– वज्रपात से बचने के लिए घरों में तड़ित चालत लगाया जाना चाहिए.
– वज्रपात के दौरान घर में पानी का नल, फ्रिज, टेलीफोन आदि इलेक्ट्रिक उपकरण को ना छुएं.
– वज्रपात के दौरान बिजली से चलने वाले उपकरणों को अवश्य बंद कर दें.
– यदि दो पहिया वाहन, साइकिल, ट्रक, ट्रेक्टर व नौका आदि पर सवार हैं, तो तत्काल उतरकर सुरक्षित स्थान पर चले जाना चाहिए.
– टेलीफोन व बिजली के पोल के अलावा मोबाइल फोन और टेलीविजन के टावर से दूर रहे.
– कपड़ा सुखाने के लिए मेटल के किसी भी तार का प्रयोग न करे, जूट या सूतरी के रस्सी का प्रयोग करें.
– बिजली के चमकने व गरजने पर ऊंचे और एकांत पेड़ के नीचे भूल से भी ना छिपे.
– यदि आप वज्रपात के दौरान जंगल में हैं, तो कम ऊंचाई या फिर घने पेड़ के नीचे चले जाये.
– वज्रपात के दौरान वृक्षों, दलदल वाले स्थान व जलस्त्रोत से दूर रहने का प्रयास करें.
– वज्रपात के दौरान यदि तैराकी कर रहे हो, या फिर मछुआरे अविलंब पानी से बाहर निकल आये.
– गीले खेतों में हल चलाने या रोपनी करने वाले किसान व मजदूर सूखे स्थानों पर चले जायें.
– ऊंचे पेड़ के तनों या टहनियों में तांबे का एक तार बांध उसे जमीन पर काफी गहराई तक दबा दें. इससे पेड़ सुरक्षित हो जायेगा.
वज्रपात के प्रमुख लक्षण
– जून से सितंबर का समय मॉनसून के लिए खास माना जाता है. मानसून की तुलना में प्री-मानसून (अप्रैल से मध्य जून) अवधि में वज्रपात की घटनाएं सर्वाधिक और घातक होती है.
– मानसून या प्री मानसून के दौरान 10 से 15 दिनों की गर्मी के बाद पहली में वज्रपात अवश्यंभावी होती है.
– यदि आकाश में अचानक कम ऊंचाई वाले घने काले एवं लटकते बादल दिखायी दें, तो पहली बूंद के एक घंटे के बाद कभी भी और कहीं भी वज्रपात संभव है.
– बारिश के दौरान आप जहां कहीं भी मौजूद हैं, वहां से 5 किलोमीटर की परिधि के भीतर कहीं पर भी बिजली गिरती है या वज्रपात होता हैं, तो आप यह जान ले कि अलला झटका आपके आसपास कहीं भी हो सकता है.
– बिजली चमकने और गड़गड़ाहट के बीच का अंतराल 30 सेंकेंड से भी कम हो या आपके सिर का बाल खड़ा हा जायें, साथ ही आकाश में गहरे आसमानी रंग का घेरा दिखायी दें, तो समझ लें कि तुरंत वज्रपात होने वाला है.
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पश्चिमी सिंहभूम में किस वर्ष कितने लोगों की मौत, कितने हुए घायल
वर्ष मृत घायल
2016 09 05
2017 10 00
2018 06 03
2019 06 01
2020 05 01
Posted By : Guru Swarup Mishra