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Jharkhand Village Story: झारखंड का एक गांव है बटकुरी, जहां नक्सली कभी नहीं दे सके दस्तक

बटकुरी गांव में 115 परिवार निवास करते हैं. यह गांव मॉडल विलेज बन सकता था, परंतु प्रशासन व बाहरी बिचौलियों के कारण यहां विकास ठप था. इस कारण ग्रामीणों ने खुद अपने गांव को सजाने व संवारने का निर्णय लिया. अब बदलाव की बयार बह रही है.

गुमला, दुर्जय पासवान: गुमला से 60 किमी दूर भरनो प्रखंड की अताकोरा पंचायत स्थित बटकुरी गांव बदलाव की कहानी लिख रहा है. एक समय यह उग्रवाद से प्रभावित था, परंतु युवाओं की सोच ने गांव की तस्वीर बदल दी है. ग्रामीणों ने एकजुटता का परिचय देकर कई काम श्रमदान व सामूहिक चंदा के पैसे से किया. प्रशासन ने मदद नहीं की. ऐसा नहीं है कि लोगों ने प्रशासन से मदद नहीं मांगी. प्रशासन ने जब मदद नहीं की तो बटकुरी गांव के लोग खुद अपने गांव को सजाने व संवारने में लग गये हैं. जिस प्रकार के काम गांव में हो रहे हैं. अगर यही रफ्तार रही तो यह झारखंड का पहला गांव होगा जो ग्रामीणों की सोच व एकता से मॉडल विलेज बनेगा. गांव में शिक्षा पर फोकस है. यहां नि:शुल्क रात्रि पाठशाला चलती है. इतना ही नहीं, कई ऐसे सरकारी भवन जो बेकार थे या तो प्रशासन ने अधूरा बनाकर छोड़ दिया था. ग्रामीण खुद के पैसे से ऐसे भवनों की मरम्मत कर उपयोग में ला रहे हैं. पानी संकट को दूर करने के लिए बेकार पड़ी जलमीनार व चापानलों की खुद मरम्मत की. अभी भी कई काम श्रमदान व चंदा के पैसे से लोग कर रहे हैं. सबसे बड़ी बात कि गांव को नशामुक्त व अंधविश्वास मुक्त बनाने की दिशा में भी काम किया जा रहा है.

ह्वाट्सएप ग्रुप बनाकर कर रहे गांव का विकास

बटकुरी गांव में 115 परिवार निवास करते हैं. यह गांव मॉडल विलेज बन सकता था, परंतु प्रशासन व बाहरी बिचौलियों के कारण यहां विकास ठप था. इस कारण ग्रामीणों ने खुद अपने गांव को सजाने व संवारने का निर्णय लिया. इसके लिए बटकुरी गांव के नाम से एक ह्वाट्सएप ग्रुप बनाया गया. इसके बाद इसमें पढ़े लिखे युवक, युवतियों व नौकरी पेशा में रहने वाले लोगों को जोड़ा गया. फिर ह्वाट्सएप ग्रुप के माध्यम से गांव का विकास कैसे हो. इसपर लगातार मंत्रणा करते गये. जिसका परिणाम है. सात-आठ माह में गांव में लोगों की सोच से बदलाव आने लगा है.

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नक्सल व अपराध से मुक्त है गांव

भरनो प्रखंड से 13 किमी दूर बटकुरी गांव नक्सल व अपराध से मुक्त रहा है. इसके बाद भी इस गांव का विकास करने में प्रशासन लगातार फेल रहा है. ग्रामीण कहते हैं कि कभी कोई नक्सली संगठन के उग्रवादी गांव में नहीं घुसे. न ही गांव के युवक कभी मुख्यधारा से भटके. इसके बाद भी गांव के विकास के लिए प्रशासन ध्यान नहीं दे रहा है जो इस क्षेत्र के लिए चिंता की बात है. इसलिए ग्रामीणों ने खुद गांव को सजाने व संवारने का काम किया है.

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ग्रामीण खुद गांव का विकास कर रहे हैं : चंदन

गांव के युवा समाजसेवी चंदन उरांव ने कहा कि गांव के उन सभी संसाधनों पर ध्यान दिया जा रहा है. जिसका उपयोग हम गांव वासी करते हैं. सार्वजनिक संसाधनों की देखभाल सभी लोग मिलकर करते हैं. उन्होंने ग्रामीणों से कहा कि किसी मसीहा का इंतजार ना करें. अपनी जरूरतों एवं संसाधनों की रखरखाव ग्रामवासी स्वयं मिलजुलकर करें. बहुत आसान है. गांव में कई काम हुए हैं. ये सभी काम बिना किसी सरकारी व प्रशासन की मदद से की गयी.

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ग्रामीणों ने खुद किया ये काम

: गांव के खराब पड़े छह चापाकल की मरम्मत करायी.

: दो जलमीनार की मरम्मत कर उपयोग कर रहे हैं.

: अधूरे सामुदायिक भवन की मरम्मत करायी गयी.

: आंगनबाड़ी केंद्र की रंगाई पुताई कर उपयोग में लाया.

: पड़हा भवन क सामने मिट्टी भर साफ़ सफाई की.

: गांव में हर सप्ताह स्वच्छता अभियान चलाया जाता है.

: गांव की नाली की मरम्मत व नालियों की सफाई की गयी.

: हर घर के सामने सोख्ता गड्ढा खोदा गया है, ताकि जलजमाव न हो.

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