22.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गुमला के 200 गांव बरसात में बन जाते हैं टापू, ग्रामीण तीन से चार माह नहीं निकल पाते हैं बाहर

गुमला में कुछ गांव की सड़कों में कटाव होने से गड्ढा बन जाता है, जिससे आवागमन ठप हो जाता है. कई गांवों तक जाने के लिए पांच-छह साल पूर्व पुल-पुलिया का निर्माण हुआ था, लेकिन बरसात में पुल ध्वस्त हो गया है

दुर्जय पासवान, गुमला:

गुमला जिले के करीब 200 गांव बरसात में टापू बन जाते हैं, जो गांव टापू बन जाते हैं, उन गांवों के लोगों की जिंदगी पूरी तरह थम जाती है. तीन से चार माह तक लोग गांव से निकल नहीं पाते हैं. मानसून शुरू होते इन गांव के लोग तीन-चार महीने के लिए राशन का जुगाड़ कर लेते हैं. टापू होने का मुख्य कारण गांव जाने वाली नदियों में पुल व पुलिया नहीं बनना है. कई गांव पहाड़ के ऊपर है. बरसात में पहाड़ से नीचे उतर नहीं सकते हैं.

कुछ गांव की सड़कों में कटाव होने से गड्ढा बन जाता है, जिससे आवागमन ठप हो जाता है. कई गांवों तक जाने के लिए पांच-छह साल पूर्व पुल-पुलिया का निर्माण हुआ था, लेकिन बरसात में पुल ध्वस्त हो गया है. वहीं कुछ पुल अभी भी ऐसे हैं, जो कभी ध्वस्त हो सकते हैं. इस कारण गांव के लोग डर से इन पुलों से सफर नहीं करते हैं. जरूरत होने पर लोग जान हथेली पर रख कर सफर करने को मजबूर होते हैं. जानकारी के अनुसार बिशुनपुर के 30, डुमरी के 30, चैनपुर के 20, जारी के 40, रायडीह के 20, घाघरा के 20, गुमला के 10 गांव समेत पालकोट, कामडारा के कुछ गांव हैं जो टापू बन जाते हैं.

डुमरी प्रखंड : पुल ध्वस्त हुआ, तो बना ही नहीं :

चरकाटोली नदी में पुल नहीं है, जिससे कठगांव, बतसपुर, गनीदरा, नवाटोली, सरईटोली, महुआटोली, डुमरतोली, दर्रीटोली, पहाड़दीना, बेलटोली, बैगाटोली, लिटिया चुआ टापू बन जाता है. वहीं करमटोली ढोड़हा, चीडरा नदी, लफरी नदी, हगरी नाला में पुल नहीं रहने से करमटोली, हथलादा, साईंटोली, पहाड़ सुवाली, ढोठीपाठ, मिरचईपाठ समेत एक दर्जन गांव टापू बन जाते हैं. इन गांवों के लोग टापू होने से पहले खाने पीने का सामान की जुगाड़ पहले कर लेते हैं. अगर कोई बीमार हो गया या गर्भवती महिला है, तो नदी का जलस्तर कम होने के बाद पार करते हैं या फिर जान हथेली पर रख कर लोग नदी पार करते हैं.

सिसई प्रखंड : खिजरगाढ़ा में पुल नहीं :

सिसई प्रखंड के बरगांव, बुड़ूटोली से राव टोली सड़क में खिज्जरगाढ़ा में पुल नहीं है. सैकड़ों लोग बरसात में पांच किमी चक्कर लगा कर मुख्यालय पहुंचते हैं. इसके अलावा सिसई के कई ऐसे गांव हैं, जहां की सड़कें खराब है. बरसात में सड़कों पर सफर नहीं कर सकते हैं.

खेतीबारी का लेते हैं लोग:

जो गांव टापू बन जाते हैं, उस गांव के लोग बरसात शुरू होने से पूर्व राशन का जुगाड़ कर लेते हैं. अगर बीच में राशन खत्म हो जाता है, तो लोग वनोत्पाद पर निर्भर रहते हैं या तो जान हथेली पर रख कर नदी पार करते हैं. खेती-बारी का समान भी किसान पहले ही खरीदकर रख लेते हैं.

रिपोर्ट संकलन में सहयोगी : बिशुनपुर से बसंत, डुमरी से प्रेमप्रकाश, जारी से जयकरण, सिसई से प्रफुल, घाघरा से अजीत.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें