झारखंड का एक गांव है लालमाटी, जहां 77 साल में नहीं आया कोई उम्मीदवार, बदहाल जीवन जी रहे आदिवासी

झारखंड के गुमला जिले का लालमाटी गांव, जहां 77 साल में कोई उम्मीदवार नहीं आया. यहां पहाड़ पर बसे आदिवासी बदहाल जीवन जी रहे हैं. गांव में चलने लायक सड़क तक नहीं है. किसी ने इनकी सुध नहीं ली.

By Guru Swarup Mishra | May 26, 2024 10:15 PM
an image

गुमला, दुर्जय पासवान: गुमला जिले के रायडीह प्रखंड की ऊपर खटंगा पंचायत में लालमाटी गांव है जो घनघोर जंगल व पहाड़ पर बसा है. यह गांव दुर्गम इलाकों में से एक है. आजादी के 75 साल गुजर गए. आज तक प्रशासन गांव नहीं पहुंचा है. अभी तक इस गांव को सिर्फ नक्सल इलाके के नाम से जाना जाता है. सरकार व प्रशासन ने कभी गांव की छवि बदलने का प्रयास नहीं किया. ना ही गांव के विकास की कोई प्लानिंग बनी. चुनाव के दौरान भी कोई उम्मीदवार आज तक इस गांव में नहीं पहुंचा.

सरकार ने कभी नहीं ली सुध

आज भी गुमला जिले के लालमाटी गांव में रहने वाले 30 परिवारों की जिंदगी गांवों तक सिमटी हुई है. इसमें 15 परिवार कोरवा जनजाति के है, जो विलुप्ति के कगार पर है. 15 मुंडा जनजाति भी हैं जो 200 वर्षों से इस जंगल में रहते आ रहे हैं. ग्रामीण कहते हैं कि अगर यह जंगल नहीं रहता तो हम कबके मर जाते. जंगल से सूखी लकड़ी व दोना-पत्तल बाजारों में बेचकर जीविका चलाते हैं. गांव में रोजगार का साधन नहीं है. सिंचाई नहीं है. बरसात में धान, गोंदली, मड़ुवा, जटंगी की खेती करते हैं, जो कुछ महीने खाने के लिए होता है. जंगली कंदा भी इस गांव के लोगों का भोजन है. गांव की सबसे बड़ी समस्या सड़क है. सड़क के अभाव में बीमार मरीज व गर्भवती की इस क्षेत्र में मौत होती रहती है क्योंकि गांव से निकलने के लिए करीब तीन किमी पहाड़ उतरना पड़ता है. इसके बाद पांच किमी पैदल चलने के बाद पक्की सड़क मिलती है. तब जाकर गाड़ी की व्यवस्था कर मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है.

सड़क इस गांव के विकास में बाधक

लालमाटी गांव में रास्ता नहीं है. लुरू गांव से होकर पैदल पहाड़ के ऊपर आठ किमी चढ़ना पड़ता है. बाइक से अगर गांव जानी है तो चैनपुर प्रखंड के सोकराहातू गांव से होकर जाना पड़ता है. यह सड़क भी खतरनाक है. परंतु सावधानी से सफर करने से गांव तक पहुंच सकते हैं. अभी गांव के लोग सोकराहातू के रास्ते से साइकिल से सफर करते हैं.

खटिया पर लादकर मरीज को उतारते हैं पहाड़ से

गांव में सड़क नहीं है. इसलिए गाड़ी गांव तक नहीं जाती है. मोबाइल नेटवर्क भी नहीं है. अगर कोई बीमार हो गया. गर्भवती है, तो उसे खटिया में लादकर पहाड़ से पैदल उतारा जाता है. चार-पांच किमी पैदल चलने के बाद मुख्य सड़क पहुंचकर टेंपो से मरीज को अस्पताल पहुंचाया जाता है. ग्रामीण कहते हैं कि पहाड़ से उतरने में कई लोगों की मौत हो चुकी है.

बूथ छह किमी दूर, हर घर से वोट देते हैं

लालमाटी गांव से लुरू गांव की दूरी करीब छह किमी है. लुरू गांव में हर चुनाव में बूथ बनता है. लालमाटी गांव के लोग छह किमी पैदल चलकर हर चुनाव में वोट देने जाते हैं. ग्रामीणों ने कहा कि उम्मीदवार कभी गांव नहीं आते. उम्मीदवार की जगह कोई गांव का ही एजेंट रहता है. जो सभी वोटरों के लिए चना, गुड़ या चूड़ा की व्यवस्था कर देता है. वोट देने के बाद यही खाने के लिए मिलता है.

कोई तो हमारी फरियाद सुने

गांव के फलिंद्र कोरवा व प्रियंका देवी ने कहा कि हमलोग गुमला उपायुक्त से मिलकर आवेदन सौंप चुके हैं. गांव की समस्याओं से अवगत कराया गया है. लालमाटी गांव से गुमला की दूरी 25 किमी है. पथरीली सड़कों से होकर गुमला आते-जाते हैं. पहाड़ी व जंगली रास्ता हमारे गांव के विकास में रोड़ा बने हुए हैं. कम से कम प्रशासन हमारे गांव में सड़क बनवा दे, ताकि आने-जाने की समस्या दूर हो. सड़क बन जाने से गांव का विकास भी होगा.

Also Read: झारखंड के दो गांव चुंदरी व आर्या 112 वर्षों से निभा रहे भाई-बहन का रिश्ता, 12 साल पर ही पैदल जाकर करते हैं मुलाकात

Also Read: झारखंड का एक गांव, जिसका नाम लेने में लोगों को आती है शर्म, पता पूछने पर बताने से करते हैं परहेज

Also Read: Jharkhand Village Story: झारखंड के इस गांव का नाम सुनते ही हंसने लगते हैं लोग, आप भी नहीं रोक पाएंगे हंसी?

Also Read: Jharkhand Village Story: झारखंड का एक गांव बालुडीह, जहां अब ढूंढे नहीं मिलते बालू के कण

Exit mobile version