Kali Puja 2022: गुमला शहर के जशपुर रोड स्थित काली मंदिर में बिराजी काली मां के दरबार से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा है. यहां मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है. यह कहना श्रद्धालुओं व पुजारी का है. बनारस, देवघर, रजरप्पा, रामेश्वरम व उज्जैन की तरह यह भी शक्ति पीठ के रूप में प्रसिद्ध है. गुमला में मां काली मंदिर में मूर्ति की स्थापना 1948 में की गयी थी. तब से यह हिंदुओं के लिए श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है.
काली पूजा पर लगती है भीड़
गुमला शहर के जशपुर रोड स्थित काली मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए आते हैं. काली पूजा के अवसर पर यहां भक्तों की भीड़ देखते ही बनती है. ऐसे यहां हर रोज सुबह-शाम भक्तों की लंबी कतार देखी जा सकती है. मंदिर के सामने से गुजरने वाला हर शख्स एकबार जरूर मां के दरबार में सिर झुका कर गुजरता है. यहां मां काली की मूर्ति व मंदिर निर्माण की पुरानी कहानी है.
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गंगा महाराज ने की थी मंदिर की स्थापना
काली मंदिर के पुजारी ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय गंगा महाराज ने यहां सबसे पहले खपड़ानुमा मंदिर में मां काली की मूर्ति स्थापित की थी. उसके बाद 1970 में मंदिर का निर्माण हुआ. यहां मां काली के अलावा भगवान शिव व अन्य देवी देवताओं की मूर्ति है. जानकारी के अनुसार अंग्रेजों से बचने के लिए 1945 में गंगा महाराज गुमला आ गये. वे रायडीह प्रखंड के कांसीर गांव में बस गये. अभी जो काली मंदिर के समीप से गुजरने वाली नदी पर पुल है. उस समय पुल नहीं था. नदी से पार करके लोग आते-जाते थे.
नदी किनारे पूजा करते थे गंगा महाराज
गंगा महाराज अपने कुछ साथियों के साथ 35 किमी पैदल चलकर हर रोज कांसीर से गुमला आते थे और नदी के किनारे पूजा पाठ करते थे. उसी समय उनके मन में मां काली की मूर्ति स्थापित करने का मन आया. कुछ लोगों के सहयोग से उन्होंने मां काली की मूर्ति स्थापित की और यहां पूजा पाठ करने लगे. मंदिर के सबसे पुराने पुजारी गंगा महाराज थे.
रिपोर्ट : जगरनाथ/जॉली, गुमला