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करम पर्व : कुंवारी लड़की व लड़के करते हैं करम की पूजा

करम पर्व झारखंड के उरांव आदिवासियों का दूसरा मुख्य पर्व है जो प्रतिवर्ष भादो एकादशी को मनाया जाता. उसके साथ साथ गुमला जैसे उरांव जनजाति क्षेत्र में दसई करम दशहरा के समय मनाया जाता है.

दुर्जय पासवान, गुमला : करम पर्व झारखंड के उरांव आदिवासियों का दूसरा मुख्य पर्व है जो प्रतिवर्ष भादो एकादशी को मनाया जाता. उसके साथ साथ गुमला जैसे उरांव जनजाति क्षेत्र में दसई करम दशहरा के समय मनाया जाता है. करम पर्व को मुंडा, खड़िया, आदिम जनजाति एवं सदान भी बड़े धूमधाम से मनाते हैं. तथा यह पर्व छत्तीसगढ़, उड़ीसा, बंगाल, मध्यप्रदेश इत्यादि जगहों पर भी मनाया जाता है. रोपा डोभा एवं कृषि कार्यों से निवृत्त होने के बाद यह पर्व बड़े हर्ष उल्लास के साथ मनाया जाता है.

अनेक कार्यों विधियों और रितियों के बाद करमा की पूजा की जाती है. करमा पर्व की तैयारी नौ दिन पूर्व ही प्रारंभ कर दी जाती है. लड़कियों के द्वारा तीज के दूसरे दिन उरद, मक्का, जटंगी को बालू में रखकर हल्टी पानी के साथ बीज को बोया जाता है. जिसे जावा कहा जाता है. जावा उठाने की के दिन से ही लड़के और लड़कियां अपने गांव के अखाड़ों में करम पर्व की तैयारी के लिए अभ्यास करते हैं एवं रात में कुछ देर अभ्यास करतें हैं. गुमला के देवेंद्रलाल उरांव ने कहा कि करमा के दिन गांव के लड़के प लड़कियां या छात्रावास के छात्र छात्राएं और अभिभावक गण अखाड़े को सजाने संवारने में लग जाते हैं.

गांव की उपासीन लड़कियां सामूहिक रूप से तालाबों में जाकर स्नान करती हैं एवं शाम के समय युवक व युवितयां आदिवासी जनजाति वेशभूषा में सज धज कर करम राजा को लाने के लिए ढोल मांदर नगाड़ा, गीत संगीत रीझ रंग के साथ करम राजा को लाने जाते हैं. करम काटने से पूर्व गांव के पहान पुजार द्वारा अग्नि, जल, तपान अर्पित किया जाता है. उपवास रहने वाली युवितयों को करम पेड़ में तीन बार घुमाया जाता है. उनके भाइयों के द्वारा और युवक पेड़ में चढ़कर तीन करम की डाली को काटते हैं और फिर रीझ रंग साथ करम की डाली को अखाड़ा में लाया जाता है और वहां भी बैगा पहान पुजार द्वारा हड़िया, अग्नि अर्पन कर विधि विधान से करम की डाली को गाड़ा जाता है. इसके बाद पूजा की जाती है.

इस दौरान करम की कहानी भी सुनायी जाती है. यह पूजा मुख्यत: कुंवारी लड़की व लड़के करते हैं. शाम के समय गांव के सभी युवक युवतियां सज धज कर अखाड़ा में पहुंचते हैं. माताएं अपने उपवास करने वाले बच्चे अर्थात महादेव पार्वती को लेकर उनके पूजा की सामग्री खीरा, अरवा चावल, जल धूप धुवन, दीया, सिंदूर, दूध, फल फूल घर में बनी रोटी जावा इत्यादि को डलिया/ टोकरी में सजाकर माताएं अपने सिर में रख कर अखाड़ा में लाते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में पहान पुजारियों के द्वारा एवं शहरी क्षेत्रों के सदान के घर में पंडितों के द्वारा विधि विधान से पूजा अर्चना कराया जाता है.

पूजा के दौरान सबसे पहले पहान करमा की डाली को दूध और जल से नहलाने को कहते हैं. फिर करम डाली के नीचे दीपक जलवाते हैं जो रोशनी का प्रतीक होता है. इस प्रकार से पूजा के अन्य कार्यक्रम को पूरा करवाते हैं. पूजा की बीच-बीच में वह अरवा चावल और जावा को करम डाली पर छिटने को कहते हैं. यह क्रिया सात बार लड़कियों द्वारा किया जाता है और उनसे पूछते हैं कि तुम्हें पूजा करने पर क्या मिला, तो वह कहती हैं अपन करम भैया का धरम अपन करम भैया का धरम, खीरा जैसन बेटा पाली. इस शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है कि लड़की का काम करमा पूजा करना है.

भाई का काम पूजा में सहयोग देना एवं इस पूजा से पार्वती के फल के रूप में खीरे के समान स्वास्थ्य सुख समृद्धि अच्छे वर दूल्हा कि मनोकामना पूर्ण हो एवं सुंदर पुत्र की प्राप्ति हो हर त्यौहार अथवा पूजा के पीछे कोई ना कोई कहानी प्रचिलत होती है. ठीक उसी प्रकार से करमा पूजा के संबंध में भी कहानी प्रचिलत है जो अनेक तरह से करमा पूजा के क्रम में सुनाए जाते हैं. पूजा के उपरांत पुजार, पहान बुजुर्गों, पंडितों के द्वारा करम की कहानी सुनाई जाती है. करम की कहानी हर क्षेत्र में अलग-अलग सुनाई पड़ती है.

कहीं साथ भाई बहन की कहानी तो कहीं करमा और धरमा की कहानी सुनाई जाती है. कथा कहानी के उपरांत सभी पार्वती करम के जावा को सभी लोगों तक बांटते हैं एवं उन्हे बड़ों का आशीर्वाद मिलता है. अच्छा वर मिले घर में सुख समृद्धि हो एवं अच्छे पुत्र की प्राप्ति हो. तत्पश्चात माताएं डलिया को अपने सिर में धोकर नृत्य करती हैं पुरुष अभिभावक भी मांदर टांग कर अखाड़ों में झूमते नाचते हैं एवं साथ-साथ बच्चे बूढ़े सभी लोग पूरी आस्था निष्ठा के साथ करम गीत के साथ रिझ रंग त्यौहार मनाते हैं. रात भर धूमधाम से लोग नाचते गाते सुबह करते हैं एवं सुबह सूर्योदय से पूर्व झूमते नाचते करमा की डाली को नदी तालाब में विसर्जित करते हैं.

Post by : Pritish Sahay

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