गुमला, दुर्जय पासवान: गुमला जिले के सभी 12 प्रखंडों में करम परब धूमधाम के साथ मनाया गया. भाई बहन के प्यार व प्रकृति पर्व के रूप में करम परब पारंपरिक तरीके से मनाया गया. जहां मंदिरों में शाम चार बजते ही पुजारियों द्वारा पूजा शुरू करा दी गयी थी. वहीं गुमला शहर के गांव-घर, छात्रावास व गैर सरकारी संस्थानों में पहान पुजार द्वारा पूजा करायी गयी. छात्रावासों में रात आठ बजे से पूजा शुरू हुई जो देर रात तक चला. करम डाली के समीप बैठकर बहनों ने करमा व धरमा की कहानी सुनी. विधि विधान के साथ करम डाली की पूजा की. पूजा संपन्न होने के बाद रातभर करम डाली के समीप नाचने व गाने का दौर चला. पूरा गुमला मांदर, ढोल व नगाड़ा की आवाज से गूंज उठा. जिले के सभी 948 गांवों में करम परब का उत्साह रहा. वहीं गुमला शहर के सभी मुहल्ले में घरों में करम डाली गाड़ी पूजा की गयी. इससे पहले शाम चार बजे गुमला शहर के छात्रावासों के छात्र व छात्राएं पारंपरिक वेशभूषा में करम डाली लाने जंगल गये. मांदर की थाप पर नाचते गाते करम डाली लेकर पूजा स्थल पहुंचे. पूजा स्थल में विधि विधान के साथ करम डाली को गाड़ा गया.
एसएस बालक छात्रावास में की गयी पूजा
गुमला शहर के आदिवासी एसएस बालक छात्रावास में धूमधाम से करमा परब मनाया गया. सबसे पहले छात्रों ने करम डाली लाने के लिए आदिवासी परिधान में नगाड़ा, मांदर, झांझर व घंट बजाते हुए छात्रावास से निकल कर एसएस बालिका उच्च विद्यालय पहुंचे. जहां से करम डाल लेकर पुन: छात्रावास पहुंच कर करम डाल को विधि-विधान से पूजा-अर्चना की. इसके बाद अतिथियों के आगमन पर रात भर छात्र मांदर की थाप पर नृत्य करते हुए करमा पररब मनाया. वहीं दूसरी ओर बहने करम डाल लेकर मंदिर पहुंची जहां अपने भाइयों की लंबी उम्र की कामना की. इस दौरान पालकोट रोड स्थित रौनियार मंदिर में आचार्य कमलेश मिश्रा द्वारा विधि विधान पूर्वक पूजन संपन्न कराया गया.
करम परब परंपरा से जुड़ा हुआ है : सुदर्शन
सांसद सुदर्शन भगत ने कहा है कि करम परब आदिवासी व सदानों की परंपरा, आस्था व विश्वास से जुड़ा हुआ है. इस परब की काफी महत्व है. परब का प्रकृति से जुड़ाव के अलावा भाई बहन के अटूट प्यार का भी परब है. उन्होंने कहा कि करम आपसी भाईचारगी का परब है. हम सब लोग मिलजुल कर करम परब मनाते हैं. यह परब प्राकृतिक, कृषि कार्य, सुख दुःख से जुड़ा हुआ है. प्रकृति के प्रति अपना आस्था, प्रेम और विश्वास को बनाये रखे. यही हमलोगों का जीवन दाता है. करम परब आदिवासियों की परंपरा, रीति रिवाज और प्रकृति से जुड़ा पर्व है. करम पर्व हमारी धरोहर है.
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पर्यावरण संरक्षण का हम संकल्प लें : सुखदेव
पूर्व विधायक सुखदेव भगत ने कहा है कि हम करम परब पर पर्यावरण संरक्षण का संकल्प लें. करमा प्रकृति पर्व है. हमें सभी चीजें प्रकृति से मिलती है जो हमें सारी सुख सुविधा देता है. हम उसकी पूजा करते हैं. साथ ही दूसरी ओर यह पर्व भाई बहनों का पर्व है. इस पर्व पर बहनें निर्जला उपवास कर अपने भाइयों की लम्बी उम्र की कामना करती है. जिस प्रकार करम डाली को धरमा द्वारा अखरा से उखड़कर फेंक दिया गया था. उसके बाद आपदा आयी. पुन: करम डाली को गाड़कर पूजा पाठ की गयी. उसके बाद सुख शांति व समृद्धि आयी. इसलिए करम परब का विशेष महत्व है.