Kargil Vijay Diwas 2020: घरवालों को बिना बताये सेना में शामिल हो गये थे शहीद बिरसा उरांव

साल 1999 भारतीय इतिहास में हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा. क्योंकि यही वो साल है जब भारतीय सेना ने भारत की भूमि मे जबरदस्ती घुस आये पाकिस्तान की सेना को खदेड़ कर भगाया था. आज से 21 बरस पहले हुए इस युद्ध में दुश्मनों से लड़ते हुए देश के कई वीर जवानो ने वीरगति को प्राप्त किया था. इस युद्ध में दुश्मनों से लड़ते हुए झारखंड के गुमला जिले के भी तीन जवान शहीद हुए थे. कारगिल विजय दिवस के इस मौके पर आइये जानते हैं गुमला जिले के सिसई प्रखंड के वीर सपूत बिरसा उरांव की विजय गाथा. साथ ही यह भी समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर इन 21 वर्षों में इनके घर परिवार में गांव में क्या बदलाव हुआ.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 26, 2020 8:43 AM

साल 1999 भारतीय इतिहास में हमेशा सुनहरे अक्षरों में लिखा जायेगा. क्योंकि यही वो साल है जब भारतीय सेना ने भारत की भूमि मे जबरदस्ती घुस आये पाकिस्तान की सेना को खदेड़ कर भगाया था. आज से 21 बरस पहले हुए इस युद्ध में दुश्मनों से लड़ते हुए देश के कई वीर जवानो ने वीरगति को प्राप्त किया था. इस युद्ध में दुश्मनों से लड़ते हुए झारखंड के गुमला जिले के भी तीन जवान शहीद हुए थे. कारगिल विजय दिवस के इस मौके पर आइये जानते हैं गुमला जिले के सिसई प्रखंड के वीर सपूत बिरसा उरांव की विजय गाथा. साथ ही यह भी समझने का प्रयास करते हैं कि आखिर इन 21 वर्षों में इनके घर परिवार में गांव में क्या बदलाव हुआ.

सिसई प्रखंड के शहीद बिरसा उरांव

कारगिल युद्ध की बात हो और गुमला जिले के बिरसा उरांव का जिक्र नहीं हो ऐसा नहीं हो सकता है. बचपन से ही सेना में जाकर देश सेवा का जज्बा रखने वाले बिरसा उरांव का चयन सेना में दसवीं पास करने से पहले ही हो गया था. 12 अक्टूबर 1965 में जन्में बिरसा उरांव उस वक्त लोहरदगा में रहकर नदीया स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे. सेना में उनकी बहाली की खबर उनके घरवालों तक को नहीं थी. जब काफी समय तक घर नहीं आने पर उनसे घर वाले उनसे मिलने गये तब उन्हें पता चला की बिरसा ने सेना में नौकरी ज्वाइन कर ली है. छह महीने का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद घर आकर उन्होंने अपने सेना में शामिल होने की जानकारी दी.

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सिपाही से हवलदार तक का सफर

शहीद बिरसा उरांव प्रथम बिहार रेजीमेंट में हवलदार के पद पर तैनात थे. उनका जन्म गुमला के सिसई प्रखंड के गांव बर्री जतराटोली में हुआ था. उनके पिता का नाम बुदू उरांव था. बिरसा उरांव ने फौज में रहते हुए अपने कर्तव्य निष्ठा के कारण ही साधारण सिपाही से भारतीय सेना में नायक फिर हवलदार के पद को प्राप्त किया था. उनके शहादत का पता उनके घरवालों को एक सप्ताह के बाद पता चला.

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यह सम्मान मिला

सेना में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए उन्हें भारत सरकार द्वारा सामान्य सेवा मेडल, नागालैंड, 9 ईयर लॉन्ग सर्विस मेडल, सैनिक सुरक्षा मेडल और ओवरसीज मेडल- संयुक्त राष्ट्र संघ, बिहार रेजीमेंट की 50 वीं वर्षगांठ पर स्वतंत्रता मेडल उन्हें दिया गया. साथ ही उन्हें विशिष्ट सेवा मेडल दिया गया.

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झारखंड पुलिस में है बेटी

शहीद बिरसा उरांव की बड़ी बेटी हाल ही में झारखंड पुलिस में दारोगा के पद पर वहाल हुई है. शहीद बिरसा की पत्नी बताती है कि शहादत के बाद जो सरकारी सुविधाएं मिलनी चाहिए वो सभी सुविधाएं मिली है. पर दुख की बात यह है कि अभी भी शहीद के गांव तक जाने के लिए पक्की स़ड़क नहीं है. उनकी पत्नी ने कहा कि वो चाहती है घाघरा प्रखंड के गम्हरिया में एक उनके नाम से तोरण द्वार बनाया जाए. ताकि उनकी शहादत को हमेशा याद रखा जाये.

Posted By: Pawan Singh

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