कौन थे आदिवासियों की जमीन बचाने के लिए आंदोलन करने वाले ‘काला हीरा’, ऐसे करते थे चुनाव प्रचार

Kartik Oraon कार्तिक उरांव ने सबसे पहले आदिवासियों की जमीन को लूटने से बचाने के लिए आंदोलन किया था.आदिवासी समाज के पहले इंजीनियर रहे कार्तिक उरांव ने 1959 में दुनिया के सबसे बड़े ऑटोमेटिक पावर स्टेशन का प्रारूप ब्रिटिश सरकार को दिया था.

By Nitish kumar | October 24, 2024 10:06 AM

Kartik Oraon| Jharkhand Assembly Election|गुमला| दुर्जय पासवान: पंडित जवाहर लाल नेहरू के कहने पर कार्तिक उरांव राजनीति में आये थे. वे तीन बार लोहरदगा सीट से सांसद व एक बार बिशुनपुर सीट से विधायक बने. 1977 में वह साइकिल से चुनाव प्रचार कर बिशुनपुर विधानसभा से विधायक चुने गये थे. उनका गांव गुमला प्रखंड के लिटाटोली है. वहीं से वह हर दिन साइकिल से चुनाव प्रचार करने निकलते थे. वे जिस गांव में जाते थे, वहीं रुक जाते थे. लोग उनका उस समय आदरपूर्वक स्वागत करते थे. कार्तिक उरांव ने सबसे पहले आदिवासियों की जमीन को लूटने से बचाने के लिए आंदोलन किया था. 1968 में भूदान आंदोलन के समय आदिवासियों की जमीन कौड़ी के भाव बिक रही थी. तब कार्तिक उरांव ने इंदिरा गांधी से आदिवासियों की जमीन को लूटने से बचाने की अपील की थी.

नेहरू के कहने पर आये थे राजनीति

आदिवासी समाज के पहले इंजीनियर रहे कार्तिक उरांव ने 1959 में दुनिया के सबसे बड़े ऑटोमेटिक पावर स्टेशन का प्रारूप ब्रिटिश सरकार को दिया था. वह पावर स्टेशन अब हिंकले न्यूक्लियर पावर प्लांट के नाम से जाना जाता है. कार्तिक उरांव नौ वर्षों तक विदेश में रहे. विदेश प्रवास के बाद 1961 के मई माह में एक कुशल व दक्ष अभियंता के रूप में अपने स्वदेश लौटे. उन्होंने रांची के एचइसी में सुपरिटेंडेंट कंस्ट्रक्शन डिजाइनर के पद पर काम किया. बाद में उन्हें डिप्टी चीफ इंजीनियर डिजाइनर के पद पर प्रोन्नति मिली. कार्तिक उरांव को काला हीरा भी कहा जाता था। विदेश से पढ़ कर जब कार्तिक उरांव अपने देश लौटे, उस समय दक्षिणी छोटानागपुर के आदिवासियों की हालत को देख कार्तिक उरांव ने समाज के लिए काम करने का दृढ़ संकल्प लिया और जवाहर लाल नेहरू के कहने पर वर्ष 1962 में एचइसी के बड़े पद को छोड़ कर राजनीति में कदम रखा.

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