Loading election data...

विलुप्तप्राय आदिम जनजाति कोरवा समुदाय के संरक्षण के लिए लाखों का फंड, लेकिन मूलभूत सुविधाएं भी मयस्सर नहीं, पढ़िए ये कैसे कर रहे बदहाली में गुजर-बसर

Jharkhand News, गुमला (दुर्जय पासवान) : झारखंड के गुमला जिले के घाघरा प्रखंड में झलकापाठ गांव है. जंगल व पहाड़ों के बीच स्थित है. इस गांव में 15 परिवार कोरवा जनजाति के रहते हैं. यह जनजाति विलुप्तप्राय है. इस जनजाति को बचाने के लिए सरकार कई प्रकार की योजनाएं चला रही है, लेकिन झलकापाठ गांव की हालत सरकारी योजनाओं की पोल खोल रही है. जिस आदिम जनजाति के लिए सरकार ने करोड़ों रुपये गुमला जिला को दिया है. उस आदिम जनजाति को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं. आज भी ये आदिम युग में जी रहे हैं. किस प्रकार कोरवा जनजाति के 15 परिवार जी रहे हैं, प्रस्तुत है यह रिपोर्ट.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 4, 2021 6:20 PM

Jharkhand News, गुमला (दुर्जय पासवान) : झारखंड के गुमला जिले के घाघरा प्रखंड में झलकापाठ गांव है. जंगल व पहाड़ों के बीच स्थित है. इस गांव में 15 परिवार कोरवा जनजाति के रहते हैं. यह जनजाति विलुप्तप्राय है. इस जनजाति को बचाने के लिए सरकार कई प्रकार की योजनाएं चला रही है, लेकिन झलकापाठ गांव की हालत सरकारी योजनाओं की पोल खोल रही है. जिस आदिम जनजाति के लिए सरकार ने करोड़ों रुपये गुमला जिला को दिया है. उस आदिम जनजाति को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं. आज भी ये आदिम युग में जी रहे हैं. किस प्रकार कोरवा जनजाति के 15 परिवार जी रहे हैं, प्रस्तुत है यह रिपोर्ट.

झलकापाठ गांव के हर एक परिवार के युवक-युवती काम करने के लिए दूसरे राज्य पलायन कर गये हैं. इसमें कुछ युवती लापता हैं तो कुछ लोग साल-दो साल में घर आते हैं. पलायन करने की वजह, गांव में काम नहीं है. गरीबी व लाचारी में लोग जी रहे हैं. पेट की खातिर व जिंदा रहने के लिए युवा पढ़ाई लिखाई छोड़ पैसा कमाने गांव से निकल गये हैं. गांव में तालाब, कुआं व चापानल नहीं है. इसलिए गांव के लोग पहाड़ की खोह में जमा पानी से प्यास बुझाते हैं. अगर एक पहाड़ की खोह में पानी सूख जाता है तो दूसरे खोह में पानी की तलाश करते हैं. गांव से पहाड़ की दूरी डेढ़ से दो किमी है. हर दिन लोग पानी के लिए पगडंडी व पहाड़ से होकर पानी खोजते हैं और पीते हैं. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है. पैदल जाना पड़ता है. गाड़ी गांव तक नहीं पहुंच पाती.

Also Read: जामताड़ा के पूर्व विधायक विष्णु प्रसाद भैया के निधन पर अंतिम दर्शन करने पहुंचे सीएम हेमंत सोरेन, परिवार को बंधाया ढाढ़स, कोरोना की दूसरी लहर को लेकर की ये अपील

गांव के किसी के घर में शौचालय नहीं है. लोग खुले में शौच करने जाते हैं, जबकि गुमला के पीएचईडी विभाग का दावा है कि हर घर में शौचालय बन गया है. परंतु इस गांव के किसी के घर में शौचालय नहीं है. सरकार ने कहा है कि आदिम जनजाति परिवार के घर तक पहुंचाकर राशन दें, परंतु इस गांव में आज तक एमओ व डीलर द्वारा राशन पहुंचाकर नहीं दिया गया है. डीलर के पास से राशन लाने के लिए 15 कोरवा परिवारों को 10 किमी पैदल चलना पड़ता है. बिरसा आवास का लाभ नहीं मिला है. झोपड़ी के बने घर में लोग रहते हैं. यह गांव पूरी तरह सरकार व प्रशासन की नजरों से ओझल है.

Also Read: झारखंड के पलामू में सब्जी खरीदने के लिए घर से बाहर निकली महिला की छज्जा गिरने से मौत, गंभीर रूप से घायल सब्जी विक्रेता हॉस्पिटल में भर्ती

गांव के सुकरा कोरवा, जगेशवर कोरवा, पेटले कोरवा, विजय कोरवा, लालो कोरवा, जुगन कोरवा, भिनसर कोरवा, फुलो कोरवा ने कहा कि हमारी जिंदगी किसी तरह कट रही है, परंतु हमारा दुख दर्द देखने व सुनने वाला कोई नहीं है. लोकसभा हो या विधानसभा या फिर पंचायत चुनाव. हर चुनाव में हम वोट देते हैं. हम भारत के नागरिक हैं, परंतु हमें जो सुविधा मिलनी चाहिए. वह सुविधा नहीं मिल पाती है. गांव के बच्चे चौथी व पांचवीं क्लास में पढ़ने के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं और कामकाज में लग जाते हैं.

Also Read: लातेहार जिले का स्थापना दिवस आज, अमर सेनानी नीलांबर-पीतांबर की धरती का रहा है गौरवशाली इतिहास, आज भी शान है पलामू किला

Posted By : Guru Swarup Mishra

Next Article

Exit mobile version