गुमला, दुर्जय पासवान :
देश में गुमला जिले का नाम बॉक्साइड नगरी के लिए जाना जाता है. नक्सलवाद भी एक पहचान बन गयी है. परंतु, अब यहां की फिजा बदल रही है. यह बदलाव आम की बागवानी से हो रहा है. जहां कल तक बारूद की गंध आती थी, वहां अब आम की सुगंध से इलाका महक रहा. इन्हीं में, गुमला जिले का रायडीह प्रखंड है, जहां बड़े पैमाने पर आम्रपाली, मल्लिका, मालदा व दशहरी आम की खेती की जा रही है.
रायडीह प्रखंड के 50 गांवों में आम के पेड़ दिखेंगे. मालदा व आम्रपाली आम के पेड़ यहां की तस्वीर बदल रहे हैं. रायडीह प्रखंड में 500 से अधिक किसान आम की बागवानी की हैं. करीब तीन करोड़ रुपये का आम का व्यवसाय होता है, जिसमें सिर्फ परसा पंचायत में 200 से अधिक किसान हैं. आम के बाग से प्रत्येक किसान को हर साल 50 हजार रुपये से एक लाख रुपये की आमदनी होती है.
परसा पंचायत के रघुनाथपुर गांव के फिलोस टोप्पो डेढ़ एकड़, सुशील तिर्की एक एकड़, रजत मिंज 75 डिसमिल, प्रकाश टोप्पो एक एकड़, जैतून टोप्पो एक एकड़, मसीह प्रकाश खाखा डेढ़ एकड़, अनिल खाखा 50 डिसमिल, अलफ्रेड खाखा 50 डिसमिल, समीर किंडो 50 डिसमिल, बिलकिनिया टोप्पो 50 डिसमिल, प्रीतम टोप्पो 50 डिसमिल, दिलीप टोप्पो एक एकड़, टुकूटोली गांव के दामू उरांव एक एकड़,
बेरनादेत एक एकड़, सोबियर तिर्की एक एकड़, वैशाली तिर्की एक एकड़, परसा नवाटोली के धर्मा मुंडा एक एकड़, तेलेया गांव के किसान आरती सिंह एक एकड़, रमेश उरांव एक एकड़, टेंबू उरांव 50 डिसमिल, शशि उरांव 50 डिसमिल, रमेश उरांव एक एकड़, जितिया उरांव एक एकड़, कंचन उरांव एक एकड़, देवदास उरांव एक एकड़, कुंती देवी 50 डिसमिल, संजय उरांव 50 डिसमिल, विनोद उरांव एक एकड़, अनिता उरांव एक एकड़, पोगरा के किसान संजय केरकेट्टा एक एकड़, प्लादीयुस एक्का एक एकड़, ज्योतिष मिंज एक एकड़, विनोद एक्का एक एकड़, संजय केरकेट्टा 50 डिसमिल समेत 200 किसान आम की खेती कर रहे हैं.
30 से 50 रुपये किलो बिक रहा आम: गुमला के लोकल बाजार में 30 से 50 रुपये किलो तक आम बेच रहे हैं. परसा पंचायत का आम छत्तीसगढ़, ओड़िशा, बंगाल व रांची की मंडी में बिकता है. महिला किसान जशमनी तिर्की ने कहा कि पेड़ से आम तोड़ कर घर पर पकाते हैं. इसके बाद लोकल बाजार में बेच रहे हैं. इधर, तीन दिन से लगातार बारिश से आम की बिक्री प्रभावित हो रही है.
परसा पंचायत घोर नक्सल इलाका माना जाता है. भाकपा माओवादी इस क्षेत्र के गांवों में आते-जाते रहते हैं. परंतु समय बदला व पुलिस दबिश बढ़ी, तो नक्सल के बादल छटने शुरू हो गये. वर्ष 2000-2010 तक इस क्षेत्र में नक्सल गतिविधि काफी तेज थी. धीरे-धीरे नक्सल गतिविधि कम हुई. सरकार की बागवानी योजनाओं से किसान जुड़े. वर्ष 2010 से किसानों ने आम्रपाली, मालदा व मल्लिका आम के पौधे लगाये. अब ये पौधे पेड़ बन गये, जिससे किसानों की तकदीर व तस्वीर दोनों बदलने लगी है. अब किसानों के बच्चे अच्छे स्कूलों में पढ़ रहे हैं.