Emergency की यादें : गुमला के सैंकड़ों छात्र और युवाओं ने लाठी खायी, जेल गये, लेकिन नहीं मानी हार

गुमला जिले के सैंकड़ों छात्र और युवा जेपी आंदोलन में शामिल हुए थे. आपातकाल के बावजूद जगह-जगह गुप्त बैठकें हुई. आंदोलन से जुड़े लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. आपातकाल की यादें आज भी कई लोगों के जेहन में है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 25, 2022 6:34 AM

Jharkhand News: मशहूर जयप्रकाश आंदोलन ने जहां पूरे देश को हिला दिया था. वहीं, इस आंदोलन की आग गुमला जिले में भी 1974-1975 ईस्वी में पहुंची थी. इस आंदोलन में गुमला के सैकड़ों युवा एवं छात्र 1974-1975 में कूद पड़े थे. उस समय सरकार ने आपातकाल घोषित कर दिया था. लेकिन, गुमला के युवा इस आपातकाल में भी डरने वाले नहीं थे. जगह-जगह गुप्त बैठकें हुई. सरकार के खिलाफ अंदर ही अंदर आंदोलन की हवा बनायी गयी. उस समय की सरकारी के मुलाजिम भी आंदोलन को दबाने में लगे हुए थे. इसलिए आंदोलन में जिन लोगों की भूमिका अहम दिखी. उन लोगों को प्रशासन ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था.

कई ऐसे शख्सियत जो लाठी खाए, जेल गए, लेकिन हार नहीं मानी

जेपी आंदोलन में शामिल कई लोग आज राजनीति में हैं. या तो फिर कई लोगों ने राजनीति से राह अलग कर व्यवसाय करने लगे हैं. कुछ लोग अधिवक्ता बन गये. यहां तक कि गुमला के दिलीप निलेश, अनूप कुमार साहा एवं स्वर्गीय शिवचरण उरांव पर मीसा कानून (भारतीय आंतरिक सुरक्षा अधिनियम) लगाया गया था. इन तीनों को 78 दिनों तक जेल में रखा गया था. आज हम कुछ ऐसी शख्सियतों से रूबरू करा रहे हैं. जिन्होंने आंदोलन को सफल बनाने के लिए लाठियां खायी. जेल गये. लेकिन हार नहीं मानी.

15 साल की उम्र में जेल गये थे : दिलीप

गुमला शहर के पालकोट रोड निवासी दिलीप निलेश (65 वर्ष) जेपी आंदोलन में 15 वर्ष की उम्र में जेल गये थे. 78 दिनों तक जेल में रहे. जेपी आंदोलन के कारण वे लंबे समय तक राजनीति में रहे. इसके बाद वे दवा के व्यवसाय से जुड़ गये हैं. आंदोलन की यादों को ताजा करते हुए श्री निलेश ने कहा कि वह जब कॉलेज में पढ़ रहा था. तभी जेपी आंदोलन में कूद पड़ा. 27 जुलाई, 1974 को गुमला जेल भेजा गया. छह घंटा तक गुमला जेल में रखने के बाद सेंट्रल जेल, रांची भेज दिया गया. रांची जेल में 22 दिन रखा गया. फिर पटना के बांकीपुर सेंट्रल जेल भेजा गया. जहां 17 दिन रहा. बांकीपुर से वापस रांची जेल लाया गया. जहां सात दिन रखा गया. इसके बाद हजारीबाग जेल भेजा गया. जहां से 13 नवंबर को रिहा कर दिया गया. श्री निलेश ने बताया कि जेल में रहते हुए कई बड़े नेताओं के संपर्क में आया. इनमें देवदास आप्टे, लालू प्रसाद यादव, कर्पूरी ठाकुर, रविशंकर प्रसाद, नीतीश कुमार, सुबोधकांत सहाय, स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी, गौतम सागर राणा, इंदर सिंह नामधारी, अर्जुन सिंह भरोदिया से जेल में मुलाकात हुई थी.

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78 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था : अनूप

गुमल के अनूप कुमार साहा (65 वर्ष) जो वर्तमान में कोलकाता में कपड़ा व्यवसाय कर रहे हैं. वे जेपी आंदोलन में 78 दिनों तक जेल में रहे थे. जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाने वाले श्री साहा ने राजनीति से हटकर अब वे व्यवसाय से जुड़ गये हैं. उन्होंने जेपी आंदोलन की घटना को याद करते हुए कहा कि 27 जुलाई को पुलिस ने उसे पकड़कर जेल भेजा था. उनपर मीसा कानून लगाया गया था. 78 दिन जेल में रहने के बाद 13 नवंबर को हजारीबाग जेल से उसे रिहा किया गया था. उन्होंने कहा कि वह गुमला कॉलेज में पढ़ रहा था. तभी जेपी आंदोलन शुरू हुआ. वह अपने कई साथियों के साथ इस आंदोलन में कूछ पड़ा. गुमला प्रशासन ने मुझपर कई प्रकार के केस लगाये. पुलिस की लाठी खानी पड़ी. फिर भी हमलोग अपने आंदोलन से पीछे नहीं हटे. जेपी आंदोलन के बाद कोई दूसरा आंदोलन नहीं देखा.

34 दिनों तक जेल में रहना पड़ा था : स्वरूप

गुमला शहर के जशपुर रोड निवासी 80 वर्षीय स्वरूप कुमार जिला बार एसोसिएशन गुमला के अध्यक्ष रह चुके हैं. उन्होंने जेपी आंदोलन का स्मरण करते हुए कहा है कि 1974 में जयप्रकाश आंदोलन में वे अध्यक्ष पद पर थे. उस दौरान उन्हें गुमला जेल में चार दिनों तक रखा गया. उसके बाद उसे रांची के सेट्रल जेल में करीब एक माह तक रखा गया. उन्होंने अपनी बातों को साझा करते हुए बताया कि जेपी आंदोलन के दौरान 1974 में गुमला में डर का माहौल बन गया था. उस दौरान हम लोग सरकार के विरोध में काम कर रहे थे. चूंकि सरकार ठीक से नहीं चल रही थी. लोग सरकार के तौर तरीकों से नाराज थी. 1974 ईस्वी में गुमला अनुमंडल के एसडीओ को उनके कार्यालय में प्रवेश रोकने के लिए स्वरूप कुमार ने धरना दिया था. जिसके बाद प्रशासन द्वारा उन्हें जेल भेज दिया गया था. वह दौर मेरे जीवन का कठिन दौर था. 1974 के समय में जेपी आंदोलन की बैठक पालकोट रोड, सिसई रोड व मेन रोड में रखा गया था. पुलिस की पैनी नजर थी. उसके बाद भी मेन रोड के समीप पहुंच कर लोगों को आंदोलन से जुड़ने का अपील मैंने किया था. गुमला में जेपी आंदोलन को सफल बनाने व सरकार के खिलाफ पंपलेट भी बांटा गया था. बिहार से पंपलेट गुमला भेजा गया था. गुमला में हमारे आंदोलन को रोकने की प्रशासन ने पूरी तैयारी की थी. लेकिन हम भी किसी से डरने वाले नहीं थे. गुमला में आंदोलन हुआ. लेकिन जेल जानी पड़ी.

68 दिनों तक जेल में रहा था : भैरव

जेपी आंदोलन की यादों को ताजा करते हुए गुमला शहर के घाटो बगीचा निवासी अधिवक्ता भैरव प्रसाद ने कहा कि गुमला जिले से 20 लोगों को जेल हुआ था. सभी को गुमला के बाद रांची, फिर भागलपुर, बांकापुर, हजारीबाग के जेल में रखा गया था. इन्हीं में अधिवक्ता भैरव प्रसाद को पुलिस के द्वारा पकड़ कर 68 दिनों तक जेल में रखा गया था. श्री प्रसाद ने बताया कि नौ जून 1975 को जेल भेजा गया था. उसके बाद 16 अगस्त 1975 को छोड़ा गया था. जेपी आंदोलन को देखते हुए उसे जेल में रखा गया था. उस समय गुमला में भय का माहौल था. पर सभी लोगों ने शांति से एकता का परिचय दिया. आज भी उस समय की घटना को याद कर मुझे डर लगता है. क्योंकि उस समय प्रशासन के तेवर कड़क थे. आंदोलन कर रहे छात्रों व युवाओं को प्रशासन खोजकर जेल भेज रही थी.

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रिपोर्ट : दुर्जय पासवान, गुमला.

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